ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों पर हमला करने वाले आरोपी को गिरफ्तारी पूर्व जमानत दिये जाने से समाज में गलत संदेश जाता है, लोकसेवक हतोत्साहित होते हैं :  पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 Sep 2020 10:17 AM GMT

  • ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारियों पर हमला करने वाले आरोपी को गिरफ्तारी पूर्व जमानत दिये जाने से समाज में गलत संदेश जाता है, लोकसेवक हतोत्साहित होते हैं :  पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि "यदि ड्यूटी पर तैनात लोक सेवकों पर हमले के आरोपियों को गिरफ्तारी - पूर्व जमानत की राहत दी जाती है तो इससे आगे भी लोगों को कानून अपने हाथ में लेने और ऐसी गतिविधियों में आगे भी भाग लेने का हौसला बढ़ेगा, जिसके परिणमस्वरूप लोक सेवकों, खासकर कानून पालन कराने वाली एजेंसियों से जुड़े अधिकारी हतोत्साहित होंगे।"

    न्यायमूर्ति एच एस मदान दो पुलिस अधिकारियों के साथ कथित मारपीट के लिए भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 353, 186, 188, 342, 323, 149 तथा आपदा प्रबंधन कानून की धारा 51 के तहत दर्ज एक प्राथमिकी के सिलसिले में अग्रिम जमानत याचिकाओं पर विचार कर रहे थे।

    आईपीसी की धारा 188 और आपदा प्रबंधन कानून की धारा 51 को बाद में जोड़ा गया था। पुलिस अधिकारियों के साथ इसलिए मारपीट की गई थी, क्योंकि उन्होंने सड़क पर झगड़ रहे कुछ पुरुषों और महिलाओं को हटाने के लिए बीच बचाव किया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार आरोपी हमलावरों ने न केवल पुलिस अधिकारियों के साथ मारपीट की थी, बल्कि उन्होंने खुद को जख्मी भी कर लिया था ताकि संबंधित पुलिस अधिकारियों को झूठे मुकदमों में फंसाया जा सके।

    एकल पीठ के जज ने पाया कि अभियोजन पक्ष की कहानी पर अविश्वास करने और फिलवक्त याचिकाकर्ताओं के बयान पर भरोसा करने का कोई कारण नजर नहीं आता, वह भी सिर्फ इसलिए कि मौजूदा याचिकाकर्ताओं में से एक महिला सह - आरोपी, शिकायतकर्ता - पुलिस अधिकारी के अस्पताल में भर्ती होने से पहले से भर्ती हुई थी।

    एकल पीठ ने कहा,

    "(याचिकाकर्ताओं का) यह दावा कि शिकायतकर्ता ने किसी और के कहने पर याचिकाकर्ताओं और उनके परिजनों को जख्मी किया था, बहुत प्रभावशाली और स्पष्ट नजर नहीं आता।"

    बेंच ने कहा कि ड्यूटी पर तैनात पुलिस अधिकारी की बेरहमी से की गई पिटाई को हल्के में नहीं लिया जा सकता अन्यथा इससे समाज में गलत संदेश जाएगा कि इस तरह की गतिविधियों में शामिल आरोपी छूट ही जाते हैं।

    बेंच ने कहा,

    "याचिकाकर्ताओं से हिरासत में पूछताछ यह पता लगाने के लिए आवश्यक है कि क्या घटना पूर्व नियोजित थी या मौके पर ही सब कुछ घटित हुआ था और उसमें प्रत्येक आरोपी की क्या भूमिका थी।" बेंच ने आगे कहा कि यदि जांच एजेंसी को मामले के याचिकाकर्ताओं को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की इजाजत नहीं दी जाती है, तो यह जांच को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा, जो उचित नहीं होगा।"

    तदनुसार, याचिकाकर्ताओं को अग्रिम जमानत मंजूर करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया गया कि इस तरह की राहत प्रत्येक मामलों में दिए जाने के लिए नहीं होती है, बल्कि केवल उन मामलों में ही दी जाती है जिसमें यह पाया जाता है कि आपराधिक मामलों को उत्पीड़न और परेशान करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया गया हो, ना कि तथ्यात्मक आधार पर।

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