फायरआर्म्स के साथ वर्दी में पुलिस द्वारा एंटी-सीएए स्कूल ड्रामा के बच्चों से पूछताछ प्रथम दृष्टया जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, बाल अधिकार का उल्लंघन है: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

16 Aug 2021 5:54 PM IST

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया अवलोकन किया कि पिछले साल बीदर में शाहीन एजुकेशन सोसाइटी में एक एंटी-सीएए नाटक के मंचन पर देशद्रोह के मामले में बच्चों से पूछताछ करते समय फायरआर्म्स लेकर वर्दी में पुलिसकर्मियों की उपस्थिति जुवेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन है।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एन एस संजय गौड़ा की खंडपीठ ने कहा कि,

    "हमने 16 मार्च के बसवेश्वर के उपाधीक्षक द्वारा दायर हलफनामे का अध्ययन किया है। हलफनामे में उन्होंने प्रत्युत्तर से जुड़ी तस्वीरों से निपटा नहीं है, उन्होंने जांच अधिकारी 1, 2020 में संलग्न तस्वीरों से निपटा है। 1 अप्रैल, 2020 की दूसरी तस्वीर दिखाती है कि इन स्कूली बच्चों (2 लड़के, 1 लड़की) से पांच पुलिस अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं, जिनमें से चार वर्दी में हैं और उनमें से कम से कम दो के पास फायरआर्म्स हैं। हलफनामे में बसवेश्वर ने संलग्न तस्वीरों को स्वीकार किया है। आई.ए. प्रत्युत्तर के साथ संलग्न तस्वीरों को अस्वीकार न करके यह स्पष्ट किया कि उन्होंने तस्वीरों की सत्यता को स्वीकार कर लिया है।"

    पीठ ने कहा कि,

    "प्रथम दृष्टया यह बच्चों के अधिकारों और जेजे एक्ट 2016 की धारा 86(5) के प्रावधानों के उल्लंघन का गंभीर मामला है।"

    अधिनियम के उप-नियम 5 में बच्चों के लिए एक विशेष किशोर पुलिस इकाई के गठन पर धारा 86 में कहा गया है कि,

    "बच्चों के साथ बातचीत करने वाला पुलिस अधिकारी जहां तक संभव हो सादे कपड़ों में होंगे न कि वर्दी में और बालिका से पूछताछ करने का काम महिला पुलिस करेगी।"

    अदालत ने कहा कि,

    "हम राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह वरिष्ठ अधिकारी का एक हलफनामा दाखिल करके रिकॉर्ड पर बताए कि स्कूली बच्चों पूछताछ करने के दौरान से वर्दी पहने और आग्नेयास्त्र ले जाने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई शुरू की गई है। कार्रवाई की रिपोर्ट रखने के अलावा राज्य सरकार पूरे राज्य में पुलिस को निर्देश जारी करने पर विचार कर सकती है जो यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चों के अधिकारों का ऐसा उल्लंघन दोबारा न हो।"

    सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि,

    "अगर हम इस कृत्य को माफ कर देते हैं, तो इसे दोहराया जाएगा। हम इस तरह के कृत्य को बिल्कुल भी माफ नहीं कर सकते।"

    बेंच ने कहा कि,

    "बच्चों को यह सब क्यों झेलना पड़ता है? इसे ठीक करना होगा। यह इस तरह नहीं चल सकता।"

    वकील नयना ज्योति झावर और साउथ इंडिया सेल फॉर ह्यूमन राइट्स एजुकेशन एंड मॉनिटरिंग द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की गई, जिसमें कहा गया कि लगभग 85 बच्चे, जिनमें से कुछ 9 साल से कम उम्र के हैं, से पुलिस पूछताछ की गई। याचिका में कहा गया कि इससे माहौल बहुत प्रतिकूल हो गया और बच्चों के मानसिक मनोविज्ञान पर असर पड़ा।

    शाहीन एजुकेशन सोसाइटी के कक्षा 4, 5 और 6 के छात्रों ने पिछले साल सीएए और एनआरसी पर एक नाटक का मंचन किया था। इसके बाद, कार्यकर्ता नीलेश रक्षला की एक शिकायत के आधार पर, "राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों" को करने और संसदीय कानूनों के बारे में नकारात्मक विचार फैलाने के लिए स्कूल अधिकारियों के खिलाफ देशद्रोह के लिए, बीदर न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    प्राथमिकी के आधार पर स्कूल की प्रधानाध्यापिका और एक बच्चे के माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

    याचिका में कहा गया है कि पुलिस की कार्रवाई कानून के नियम और सीआरपीसी, किशोर न्याय अधिनियम और संवैधानिक मानदंडों के विभिन्न प्रावधानों का घोर उल्लंघन है।

    याचिका में कहा गया है कि,

    "प्रतिवादी पुलिस ने शाहीन एजुकेशन सोसाइटी और प्रशासन, बीदर के छात्रों से किशोर न्याय अधिनियम, 2015 और नियम 2016 के प्रावधानों के साथ-साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 और सबसे महत्वपूर्ण भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 सहित कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए माता-पिता या शिक्षकों की उपस्थिति के बिना और छात्रों के बिना सहमति के पूछताछ की।"

    याचिका में आपराधिक कार्यवाही में नाबालिगों की जांच के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया गया था, जो कि बाल पीड़ितों और अपराध के गवाहों से जुड़े मामलों में न्याय संबंधी दिशानिर्देशों के अनुरूप है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2005 में जारी किया गया था। इसने जिन छात्रों की अवैध जांच की गई है, उनके अभिभावकों को मुआवजे के भुगतान की भी मांग की है।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पुलिस की ज्यादती की पूरी घटना जैसा कि मीडिया ने रिपोर्ट किया है और इसकी पुष्टि स्कूल में लगे सीसीटीवी कैमरों में रिकॉर्ड किए गए फुटेज से हो सकती है।

    अदालत ने अब पुलिस महानिदेशक को दो सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी को नामित करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा अधिकारी बसवेश्वर, उपाधीक्षक से रैंक में उच्च अधिकारी होना चाहिए।

    मामले की अगली सुनवाई 3 सितंबर को होगी।

    केस का शीर्षक: नयना ज्योति झावर बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: WP 3485/2020

    Next Story