दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO मामले में खराब आचरण पर एसएचओ के निलंबन की सिफारिश करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

Shahadat

16 Sept 2022 12:04 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO मामले में खराब आचरण पर एसएचओ के निलंबन की सिफारिश करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाई

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कालकाजी पुलिस स्टेशन के एसएचओ (State House Officer) को निलंबित करने की सिफारिश करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। इसके साथ ही यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत दर्ज मामले में पीड़िता को पेश न करने पर उसके खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने 25 नवंबर तक आदेश पर रोक लगा दी, यह देखते हुए कि निलंबन का आदेश अनुशासनात्मक प्राधिकरण के क्षेत्र में आता है और संबंधित एसएचओ को अवसर दिए बिना इसकी सिफारिश की गई।

    अदालत ने कहा,

    "इस तरह की कोई भी अपमानजनक टिप्पणी करने से पहले न्याय को बढ़ावा देने और अन्याय की रोकथाम के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत को परिप्रेक्ष्य में रखा जाना चाहिए, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति के आधिकारिक करियर पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। न्यायिक घोषणाओं, मॉडरेशन और रिजर्व को आम तौर पर संयम से अलग नहीं होना चाहिए।"

    अदालत इंस्पेक्टर बलबीर सिंह द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363 और 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दर्ज एफआईआर में दायर जमानत याचिका के संबंध में ट्रायल कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को हटाने की मांग की गई।

    ट्रायल कोर्ट ने 20 अगस्त, 2022 को एसएचओ के खिलाफ आदेश पारित किया, जिसमें कहा गया कि उनके आचरण में सुधार करने में उनकी ओर से पूर्ण विफलता है, न्यायिक आदेशों का बार-बार पालन न करना, अदालत में पेश न होना और जमानत का जवाब दाखिल नहीं करना।

    याचिकाकर्ता का मामला यह है कि ट्रायल कोर्ट ने अपनी शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के दायरे से बाहर काम किया और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन किया गया, क्योंकि उन्हें न तो स्पष्टीकरण देने का कोई अवसर दिया गया और न ही कोई कारण बताओ नोटिस दिया गया।

    आक्षेपित आदेश पर अगले आदेश तक रोक लगाते हुए हाईकोर्ट का विचार था कि इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ता को निलंबित करने के साथ-साथ उसके खिलाफ विभागीय विभागीय कार्रवाई शुरू करने के लिए अपमानजनक टिप्पणियों और निर्देशों का उसके आधिकारिक करियर पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

    अदालत ने कहा,

    "जाहिर है कि जब मामले को शुरू में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनवाई के लिए लिया गया तो उस वक्त एसएचओ/आईओ मौजूद नहीं थे और एसएचओ के आचरण पर गंभीर आरोप लगाए गए। साथ ही याचिकाकर्ता को निलंबित करने के लिए पुलिस आयुक्त को निर्देश जारी किए गए। ट्रायल कोर्ट के समक्ष पूर्वाह्न लगभग 10:35 बजे दर्ज की गई स्टेटस रिपोर्ट दर्शाती है कि मामले को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए जांच एजेंसी द्वारा उठाया गया। हालांकि उठाए गए कदम ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए नहीं है, जो आईपीसी की धारा 363/376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत जघन्य अपराध के मुकदमे से निपटने के लिए है।"

    कोर्ट ने पाया कि हालांकि ट्रायल कोर्ट आईओ या एसएचओ की ओर से खामियों को इंगित करने के लिए सक्षम है, यदि अभियोक्ता की उपस्थिति के लिए कदम उठाने के प्रयासों में कमी है। हालांकि, प्रथम दृष्टया यह माना गया कि निलंबन के आदेश अनुशासनात्मक प्राधिकार के क्षेत्राधिकार में आता है और याचिकाकर्ता को अवसर दिए बिना इसकी सिफारिश की गई।

    कोर्ट ने कहा,

    "स्पष्टीकरण के किसी भी अवसर के अभाव में निलंबन की सिफारिश के साथ याचिकाकर्ता की निंदा करना प्राकृतिक न्याय के मौलिक सिद्धांतों की पूर्ण अस्वीकृति है। हालांकि यह किसी भी तरह से जांच एजेंसी की ओर से चूक को माफ नहीं करता, जिस पर विस्तृत जवाब रिकॉर्ड में दर्ज होने के बाद विचार किया जा सकता है।"

    चूंकि कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी गई, इसलिए उसने जांच एजेंसी को कानून के अनुसार ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमा लंबित एफआईआर के अभियोजन के संबंध में आवश्यक कदम उठाने को कहा।

    अदालत ने निर्देश दिया,

    "इस आदेश की प्रति ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ पुलिस आयुक्त, दिल्ली को सूचना और अनुपालन के लिए भेजी जाए।"

    केस टाइटल: बलबीर सिंह इंस्पेक्टर बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य।

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