POCSO Act| प्रवेशन यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक शर्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

21 Dec 2023 6:53 AM GMT

  • POCSO Act| प्रवेशन यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक शर्त नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में 8 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO Act) की धारा 6 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। कोर्ट ने कहा कि प्रवेशन यौन उत्पीड़न को साबित करने के उद्देश्य से वीर्य का होना आवश्यक शर्त नहीं है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा,

    "सिर्फ इसलिए कि वीर्य का पता नहीं चला, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कोई प्रवेश नहीं हुआ। यह सब एक्ट की धारा 3 के तहत परिभाषित प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराध को साबित करने के लिए आवश्यक है। POCSO Act के अनुसार, किसी बच्चे की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में लिंग या किसी वस्तु या शरीर के किसी हिस्से का प्रवेश मात्र या किसी भी हद तक, किसी भी वस्तु या शरीर के किसी हिस्से को, जो कि लिंग नहीं है, प्रवेश कराना है। यहां तक कि अगर आरोपी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में हेरफेर करता है, जिससे बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश कर सके। उक्त प्रवेशन यौन उत्पीड़न का अपराध बनता है।"

    पेनेट्रेटिव यौन हमले की परिभाषा पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए आरोपी, जिसने आठ साल से कम उम्र की पीड़िता की योनि में अपना पुरुष अंग प्रवेश कराया है, उसने गंभीर प्रवेशन यौन हमला किया, जो POCSO Act की धारा 6 के तहत दंडनीय है।"

    खंडपीठ ने आगे कहा कि उपरोक्त धारा को पढ़ने से पता चलता है कि प्रवेशन यौन हमले को साबित करने के लिए वीर्य का स्खलन आवश्यक पूर्व-आवश्यकता नहीं है। वीर्य स्खलन के बिना भी, यदि रिकॉर्ड पर साक्ष्य से पता चलता है कि किसी नाबालिग लड़की की योनि में आरोपी के लिंग या किसी वस्तु या शरीर के हिस्से का प्रवेश हुआ है, तो यह POCSO Act की धारा 3 के तहत परिभाषा के अनुसार प्रवेशन यौन हमले का अपराध बनने के लिए पर्याप्त है।

    ये टिप्पणियां आरोपी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए की गईं, जिसे आईपीसी की धारा 365 और POCSO Act की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया गया। आईपीसी की धारा 365 के तहत उसे 05 साल के कठोर कारावास और POCSO Act की धारा 6 के तहत 12 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    तथ्य संक्षेप में

    अभियोजन पक्ष के मुताबिक, 2016 में 7 साल और 9 महीने की पीड़िता का पड़ोसी उसे अपने साथ ले गया था। जब पीड़िता बरामद हुई तो मेडिको-लीगल टेस्ट आयोजित किया गया। आरोपी के प्रकटीकरण बयान के अनुसार, उसने झाड़ियों में पीड़िता के साथ बलात्कार करने की बात स्वीकार की।

    मुकदमे के अंत में दोनों पक्षकारों को सुनने और रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सराहना करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को आईपीसी की धारा 365 और POCSO Act की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी पाया।

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि पीड़िता की जांच के समय वीर्य का पता नहीं चला, इसलिए यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि आरोपी ने पीड़िता के खिलाफ कोई प्रवेशात्मक यौन हमला नहीं किया।

    उसने आगे तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद मेडिकल सबूतों की ठीक से सराहना नहीं की और गलत निष्कर्ष पर पहुंची कि आरोपी द्वारा पीड़िता के खिलाफ यौन उत्पीड़न किया गया। इसलिए ट्रायल कोर्ट के दोषसिद्धि और सजा के आदेश पर फैसला सुनाया गया, जो कानून के तहत टिकाऊ नहीं।

    दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि पीड़िता हालांकि बाल गवाह है, लेकिन उसे भरोसेमंद गवाह पाया गया, जिसने घटना के बारे में विस्तार से बताया। इससे पता चलता है कि वह सक्षम गवाह है और उसका बयान सच है।

    अपीलकर्ता के वकील के तर्क खारिज करते हुए पीठ ने कहा,

    "...इस मामले में वास्तविक संभोग और वीर्य का स्त्राव नहीं हुआ, लेकिन एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार सलवार, शर्ट और हाइमनल और योनि स्वाब पर खून पाया गया। इसलिए केवल इस तथ्य के लिए कि फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की पूर्व पीए रिपोर्ट से पता चला कि पीड़िता के सामान पर कोई वीर्य नहीं पाया जा सकता, उसके बयान पर संदेह नहीं किया जा सकता है।"

    इसमें आगे कहा गया कि केवल इसलिए कि वीर्य का पता नहीं चला, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि कोई प्रवेश नहीं हुआ।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वीर्य स्खलन के बिना भी यदि रिकॉर्ड पर साक्ष्य से पता चलता है कि किसी नाबालिग लड़की की योनि में आरोपी के लिंग या किसी वस्तु या शरीर के हिस्से का प्रवेश हुआ है, तो यह प्रवेशन POCSO Act की धारा 3 के तहत परिभाषित यौन उत्पीड़न का अपराध बनने के लिए पर्याप्त है।

    यह कहते हुए कि डॉक्टर के साक्ष्य यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि आरोपी द्वारा पीड़िता के खिलाफ यौन उत्पीड़न का कृत्य किया गया, कोर्ट ने कहा,

    “फोर्चेट और योनि के निचले हिस्से पर चोट पीड़िता के साथ बलात्कार के अपराध का सुझाव देती है। "

    तमिलनाडु बनाम रवि @ नेहरू [2006(3) आर.सी.आर (आपराधिक) 500] पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए गुप्तांगों पर कोई चोट पहुंचाए बिना कानूनी रूप से बलात्कार, या कोई वीर्य संबंधी दाग छोड़ने का अपराध करना काफी संभव है। ऐसे मामले में मेडिकल अधिकारी को अपनी रिपोर्ट में निगेटिव तथ्यों का उल्लेख करना चाहिए, लेकिन अपनी राय नहीं देनी चाहिए कि कोई बलात्कार नहीं किया गया है। बलात्कार, अपराध है और कोई मेडिकल स्थिति नहीं है।"

    न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने वाहिद खान बनाम मध्य प्रदेश राज्य [(2010) 2 एससीसी 9] कहा था,

    "अविवाहित लड़की के लिए उपयुक्त दूल्हा ढूंढना मुश्किल होगा। इसलिए जब तक वास्तव में कोई अपराध न हुआ हो लड़की या महिला यह स्वीकार करने में भी बेहद अनिच्छुक होगी कि ऐसी कोई घटना घटी है, जिससे उसकी पवित्रता पर असर पड़ने की संभावना है।"

    उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने दोषसिद्धि बरकरार रखी और अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल: एक्स बनाम हरियाणा राज्य

    अपीलार्थी की ओर से एडवोकेट गीता सिंघवाल पी.पी.चाहर, डीएजी हरियाणा।

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