'एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट' लागू करने मांग वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज किया, कहाः कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता

LiveLaw News Network

14 Jan 2021 7:53 AM GMT

  • एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने मांग वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज किया, कहाः कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह राज्य में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं के संरक्षण के लिए "अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम" बनाने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी। याचिका में यह मांग की गई थी कि अदालत राज्य को एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने का निर्देश दे।

    मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा,

    "हम किसी भी कानून के विधान के लिए कोई निर्देश देने के लिए खुद को कानूनी रूप से उचित नहीं पाते हैं।"

    यह अवलोकन सुनीता शर्मा और एक अन्य की याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने प्रमुख सचिव, विधि और न्याय, उत्तर प्रदेश को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वह "एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट" बिल लाए।

    याचिका खारिज करते हुए न्यायालय ने टिप्पणी की,

    "याचिकाकर्ता इस न्यायालय द्वारा एक विधायी कार्य के लिए इच्छुक हैं, जो अनिवार्य रूप से विधानमंडल का काम है।"

    इसलिए, रिट याचिका को खारिज कर दिया गया है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट कर्मचारी कल्याण संघ बनाम भारत संघ और एक अन्य एआईआर 1990 एससी 334 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि कोई भी अदालत किसी विशेष कानून को बनाने के लिए विधायिका को निर्देश नहीं दे सकती है।

    इसी प्रकार, वी.के. नस्वा बनाम गृह सचिव, भारत संघ और अन्य (2012) 2 एससीसी 542 सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह विधायिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्देश जारी नहीं किया जा सकता है और यदि जारी किया गया है तो ऐसी कोई भी निर्देश अनुचित होगा।

    इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2020 में एक वकील की याचिका को खारिज कर दिया था, जो हिंसा और अन्य त्रासदियों से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए एक समान मुआवजा योजना बनाने के लिए संसद को निर्देश देने की मांग कर रहे थे।

    जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा ​​और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कहा था,

    "कोई कानून बनाने के लिए संसद को निर्देश जारी नहीं किये जा सकते हैं।"

    इसी तरह, सितंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अश्विनी कुमार की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें केंद्र सरकार को कस्टोडियल टॉर्चर के खिलाफ अकेले एक व्यापक कानून बनाने का निर्देश देने की मांग की थी।

    केस शीर्षक - सुनीता शर्मा और एक अन्य बनाम भारत संघ और 3 अन्य [जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या - 2021 का नंबर]

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