पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन को चुनौती कहा, यह एक और लक्ष्मण रेखा को पार करने जैसा
LiveLaw News Network
19 March 2020 10:11 AM GMT
![National Uniform Public Holiday Policy National Uniform Public Holiday Policy](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2020/02/19/750x450_370427-national-uniform-public-holiday-policy.jpg)
Supreme Court of India
मधु पूर्णिमा किश्वर ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किए जाने के सरकार के क़दम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिका में कहा गया है कि इससे न्यायपालिका में लोगों का विश्वास ख़तरे में पड़ गया है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर यह लांछन है। इस स्थिति में याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि वह गोगोई को राज्यसभा जाने से रोके।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि गोगोई ने ख़ुद ही न्यायाधीश रहते हुए कहा है कि "रिटायर होने के बाद नियुक्ति देश में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए बड़ा कलंक है और इस स्थिति में इस तरह का निर्णय तो और ज़्यादा विवादास्पद हो जाता है।
मधु किश्वर, याचिकाकर्ता ने कहा है कि इससे 'भारत-विरोधी ताक़तों' को और ज़्यादा बाल मिलेगा क्योंकि टुकड़े-टुकड़े गैंग ने देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को पहले ही बदनाम करने की भरसक कोशिश की है।
"इसने भारत के बाहरी दुश्मनों और देश के अंदर उसको टुकड़े टुकड़े करने वाली ताक़तों को देश की सर्वोच्च न्यायपालिका को बदनाम और कलंकित करने का एक और मौक़ा मिल जाएगा।
राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस नियुक्ति के बारे में जिस तरह से प्रतिकूल चर्चा हो रही है उससे यह पूरी तरह स्पष्ट है।
किश्वर ने याचिका में कहा,
"न्यायमूर्ति बहरूल इस्लाम जो सुप्रीम कोर्ट से 1983 में रिटायर हुए, उन्हें इंदिरा गांधी की सरकार ने जून 1983 में राज्यसभा में मनोनीत किया। इस नियुक्ति को भी न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला बताया गया था"।
उन्होंने गोगोई की नयुक्ति के बारे में कहा है कि एक बार फिर, "लक्ष्मण रेखा" को पार किया गया है और इस तरह की नियुक्ति संविधान की मूल भावनाओं के बाहर है।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्टों के रिटायर हुए जजों की नियुक्ति लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुरूप होना चाहिए।
सोमवार को केंद्र ने अधिसूचित किया कि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने गोगोई को राज्यसभा में मनोनीत किया है। इस अधिसूचना की व्यापक पैमाने पर यह कहते हुए आलोचना हुई कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है।
याचिका में कहा गया है कि यह नियुक्ति "राजनीतिक नियुक्ति" के रंग में रंग गया है और इससे उनके नेतृत्व में जो फ़ैसले दिए हैं उसकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई है।
यह कहा जाता है कि समाज के सभी वर्गों ने न्यायमूर्ति गोगोई के "ऐतिहासिक फ़ैसलों" का स्वागत किया था और अदालत की गरिमा को स्वीकार किया था।
याचिका में कहा गया है कि अब वे सारे फ़ैसले इस "राजनीतिक नियुक्ति के कारण" संदेह के घेरे में आ गए हैं।
यह कहा जाता है कि न्यायमूर्ति गोगोई का नामांकन (उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ले ली है) इसलिए विवादित है क्योंकि उन्होंने ख़ुद ही कहा कहा था कि रिटायर होने के बाद की नियुक्ति न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए कलंक है।
उन्होंने कहा कि राज्यसभा में नामांकन को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करनेवाले गोगोई से उन्हें काफ़ी निराशा हुई है।