"तब्लीगी जमात के सदस्यों में COVID-19 का खुलासा होने के बाद दिए गए बयान और मीडिया रिपोर्ट से बनता है 'हेट स्पीच' का मामला," कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

14 May 2020 5:30 AM GMT

  • तब्लीगी जमात के सदस्यों में COVID-19 का खुलासा होने के बाद दिए गए बयान और मीडिया रिपोर्ट से बनता है हेट स्पीच का मामला, कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका

    कर्नाटक हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि उन सभी मीडिया हाउस और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिया जाएं जिन्होंने तब्लीगी जमात के कई सदस्यों में कोरोना वायरस के पाॅजिटिव केस पाए जाने के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ 'घृणित बयान' दिए हैं।

    कैंपेन अगेंस्ट हेट स्पीच ने अपने संस्थापक सिद्धार्थ जोशी, ए.आर. वासवी और एस स्वाथी शेषाद्रि के जरिए अदालत में याचिका दायर कर दावा किया है कि प्रतिवादी मीडिया में छपी विभिन्न घृणित रिपोर्ट और राजनीतिज्ञों द्वारा दिए गए कई घृणित बयानों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहे हैं। इनके परिणामस्वरूप बहुत सारे लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, विशेष रूप से जीवन और आजीविका का अधिकार।

    मुख्य न्यायाधीश अभय ओका की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सोमवार को रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह इस मामले को आगे सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति बी वी नागरथन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष रखें।

    इस याचिका में निजी टेलीविजन चैनलों के माध्यम से की गई भड़काऊ टिप्पणियों के उदाहरण भी दिए गए हैं ---उनमें से कुछ टिप्पणियां इस प्रकार हैं।

    ''कोरोना सुपर स्प्रेडर्स ...... उन्हें इस मिट्टी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है।''

    ''हमने कोरोना खलनायकों की पहचान की है और हमें केवल इतना करना है कि पहले उनको अलग-थलग किया जाए, दूसरा उन्हें पकड़ा जाए, तीसरा उन्हें दंडित किया जाए और अंतिम में उन्हें हराया जाए और यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।''

    ''सरकार को इन्हें सबक सिखाने के लिए कड़े व निर्मम कदम उठाने चाहिए.... उन्हें भुगतान करना होगा, उनके वित्तीय आधार को नष्ट किया जाए, उन पर भारी जुर्माना लगाया जाए, उनके नेताओं को जेल में बंद किया जाए।''

    याचिकाकर्ता की तरफ से समद पार्टनर्स के वकील हरीश बी नरसापा और वकील पूर्णिमा हट्टी पेश हुए और दलीलें पेश की।

    याचिका के साथ समाचार चैनल जैसे टाइम्स नाउ, रिपब्लिक टीवी, सीएनएन-न्यूज 18 में आयोजित किए गए डिबेट या वाद-विवाद की क्लिपिंग और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर दिए गए बयानों और समाचार चैनलों में सांसदों व एमएलए द्वारा दिए गए साक्षात्कारों की क्लिपिंग भी संलग्रक या पेश की गई हैं।

    याचिका में कहा गया है कि

    ''उक्त मीडिया के बयानों और रिपोर्ट में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर जानबूझकर COVID-19 महामारी फैलाने का आरोप लगाकर उन्हें निशाना बनाया है।

    प्रवासी भारतीय संगठन बनाम भारत संघ (एआईआर 2014 एससी 1591) में माननीय सर्वोच्च न्यायालय दी गई परिभाषा के तहत यह सभी बयान और रिपोर्ट स्पष्ट रूप से 'हेट स्पीच' का गठन करते हैं, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा दिए गए भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे से बाहर हैं।''

    यह भी कहा गया है कि मीडिया रिपोर्ट और राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए गए बयानों में यह झूठा आरोप लगाया गया है कि केवल एक समुदाय ही देश में महामारी के प्रसार के लिए जिम्मेदार है, जिसका परिणाम यह हुआ कि कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां समुदाय के सदस्यों का सामाजिक और आर्थिक रूप से बहिष्कार कर दिया गया और और कई मामलों में उन पर शारीरिक हमला भी किया गया है।

    आम जनमानस ने मीडिया के जरिए फैलाई इन पक्षपाती रिपोर्ट पर विश्वास करते हुए समुदाय के सदस्यों को समय पर चिकित्सा देखभाल और राशन सहित अन्य कल्याणकारी उपायों तक पहुंचे से रोका है।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि

    ''राष्ट्रीय और क्षेत्रीय टेलीविजन पर समाचार चैनलों और विभिन्न प्रकाशनों में दिए गए इन अपमानजनक बयानों से यह स्पष्ट है कि वे कुछ समुदायों के खिलाफ घृणा को उकसाने के एकमात्र इरादे और उद्देश्य से दिए गए थे।

    इस तरह बार-बार की गई पक्षपातपूर्ण और यहां तक कि इन झूठी कवरेज ( वैज्ञानिक और चिकित्सा तथ्यों के स्पष्ट प्रकाश में) के कारण आईपीसी की धारा 153 ए के तहत एक स्पष्ट अपराध बनता है क्योंकि यह विभिन्न धर्मों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने वाली थी।''

    प्रतिवादियों की अपनी निरंतर निष्क्रियता ''कानून के शासन'' को बनाए रखने में विफल रही है। जबकि वह संविधान की बुनियादी संरचना का एक हिस्सा है।

    प्रतिवादी उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने में भी विफल रहे। जिसने उस व्यवहार को प्रोत्साहित किया,जो सामाजिक बहिष्कार के नए रूपों जन्म दे रहा था। जबकि इन नए रूपों ने न केवल भ्रातृत्व या बिरादरी के सिद्धांत का उल्लंघन किया है, बल्कि विशेष रूप से संविधान के अनुच्छेद 17 का भी उल्लंघन किया है।

    याचिका में यह भी मांग की गई है कि प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वह उन मीडिया हाउस और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कानून के अनुसार दंडात्मक कार्रवाई करें,जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया था और अभी भी ऐसा कर रहे हैं।

    प्रतिवादी नंबर एक (कर्नाटक राज्य) को निर्देश दिया जाए कि वह विशिष्ठ समुदायों को लक्षित करने वाले भड़काऊ वीडियो और बयानों को हटाने के लिए कदम उठाए।

    वहीं पुलिस महानिदेशक और पुलिस महानिरीक्षक को भी निर्देश दें कि वे उन मीडिया घरानों और राजनीतिक नेताओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू करें, जिन्होंने आईपीसी और अन्य लागू दंड कानूनों के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।

    इसके अलावा, केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि वह केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम 1995 रिड विद केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) नियम 1994 व जारी की गई विभिन्न एडवाईजरी के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले मीडिया हाउसों के खिलाफ उचित आदेश जारी करें।

    याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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