सब्ज़ी और किराना की सभी दुकानों को बंद करने के अहमदाबाद निगम आयुक्त के आदेश के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

12 May 2020 3:30 AM GMT

  • सब्ज़ी और किराना की सभी दुकानों को बंद करने के अहमदाबाद निगम आयुक्त के आदेश के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका

    Gujarat High Court

    अहमदाबाद निगम आयुक्त के सभी दुकानों/पार्लरों को 9 दिनों के लिए बंद करने के आदेश के ख़िलाफ़ गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस आदेश के अनुसार सिर्फ़ दूध और दवा बेचने वाली दुकानें ही खुली रहेंगी।

    अहमदाबाद निगम आयुक्त ने 6 मई को एक सर्कुलर जारी किया जिसमें सब्ज़ी और किराने की सभी दुकानों को बंद करने का आदेश दिया गया और कहा गया कि सिर्फ़ दूध और दावा की दुकानें ही खुली रहेंगी। यह आदेश को 7 मई से 15 मई तक लागू रहेगा। यह आदेश 6 मई को 5 बजे शाम को जारी किया गया।

    यह याचिका एडवोकेट नील लखनी ने एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता हर्षित इंद्रवदन शाह की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि अचानक यह आदेश जारी करने की वजह से सब्ज़ी और किराने की दुकानों पर लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई, क्योंकि केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार 7 बजे के बाद दुकानें खुली नहीं रह सकतीं।

    याचिका में कहा गया कि

    "इस तरह के आदेश की वजह से अचानक हाज़ारों लोग बाज़ार की ओर भागे और ऐसे में सामाजिक दूरी के नियम का कोई मतलब नहीं रह गया और पूरे शहर में जगह-जगह भारी संख्या में लोग जमा हो गए।"

    याचिका में कहा गया है कि प्रतिवादी के असावधानिपूर्ण क़दम की वजह से लोगों को भारी शारीरिक और मानसिक परेशानी हुई है। फिर, लोगों के पास घर में खाने-पीने की वस्तुओं का अपर्याप्त स्टॉक नहीं है और यह एक सप्ताह तक नहीं चल सकता और इसका कोई इंतज़ाम वे नहीं कर सकते।

    याचिका में कहा गया है कि

    "अहमदाबाद में रहने वाले अधिकांश लोग मध्य वर्ग के हैं और इस तरह उनके घर में इतना राशन नहीं होगा कि वह एक सप्ताह चल जाए और उस स्थिति में उन्हें ज़रूरी वस्तुओं की ख़रीद के लिए फिर सड़कों पर उतरना पड़ेगा।"

    याचिका में कहा गया है कि जब प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को 8 बजे शाम को लॉकडाउन की घोषणा की थी, उस समय भी यही हालात पैदा हुए थे और प्रवासी मज़दूरों को अपने घर तक पहुंचने का पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था और इस वजह से लोगों की भारी भीड़ जमा हो गयी थी।

    यह भी कहा गया है कि इसके बावजूद कि अधिकारियों ने कहा है कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने वालों के लिए अस्पतालों में पर्याप्त जगह उपलब्ध है, याचिकाकर्ता को मालूम हुआ है कि ऐसे बहुत मरीज़ हैं, जिनको अस्पताल में जगह नहीं होने की वजह से वापस लौटा दिया गया और घर में ही क्वारंटाइन में रहने को कहा गया, जबकि ये लोग कोरोना से संक्रमित थे। इसलिए प्रतिवादी के क़दम से लोगों की जान को ख़तरा बढ़ गया है।

    याचिका में पूछा गया है कि

    I. क्या सरकारी अमला अपना काम करने में विफल रहा है?

    II. क्या सरकारी अमला लोगों को संरक्षण देने और लोगों के जीवन को सुरक्षित और संरक्षित करने में विफल रहा है?

    III. क्या सरकारी अधिकारी के क़दम से लोगों की जान को ख़तरा बढ़ गया है?

    IV. जल्दबाज़ी में लिए गए इस क़दम को क्या लोगों को अनावश्यक रूप से परेशान करने वाला कहा जा सकता है?

    उपरोक्त प्रश्नों के आलोक में याचिकाकर्ता ने अदालत से प्रतिवादी को पर्याप्त समय देने का निर्देश देने को कहा है या फिर इस तरह का आदेश देने से पहले लोगों को वैकल्पिक समाधान उपलब्ध कराने का आदेश देने का आग्रह किया गया है और मांग की है कि 6 मई के आदेश को वह निरस्त कर दे।

    याचिका में कहा गया है कि इस आदेश की वजह से अगर लोगों की भीड़ जमा होने के कारण कोरोना संक्रमण बढ़ता है तो इसके लिए केवल प्रतिवादी भी ज़िम्मेदार होगा।

    याचिका डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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