गृहमंत्री अनिल देशमुख और परम बीर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच कराने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

LiveLaw News Network

23 March 2021 1:07 PM GMT

  • गृहमंत्री अनिल देशमुख और परम बीर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की स्वतंत्र जांच कराने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका

    बॉम्बे हाईकोर्ट में महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के प्रकाश में सीबीआई, ईडी या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की मांग वाली याचिका दायर की गई है।

    याचिका में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर और वर्तमान में होमगार्ड और सिविल डिफेंस के कमांडेंट जनरल परमबीर सिंह की भूमिका पर सवाल उठाते हुए जांच की मांग की गई है।

    हाईकोर्ट के अधिवक्ता डॉ. जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल ने याचिका दायर की है।

    पृष्ठभूमि

    आईपीएस कैडर के अधिकारी परमबीर सिंह ने हाल ही में आरोप लगाया था कि महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख नियमित रूप में अधिकारियों को बुलाते थे और अधिकारियों से उनके आधिकारिक कर्तव्यों के पालन करने के संबंध में इस तरह के काम करने का निर्देश देते थे।

    परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के सीएम को सौंपी गई एक रिपोर्ट में यह आरोप लगाया गया था कि गृह मंत्री अनिल देशमुख अधिकारियों को बिना उनकी जानकारी के अपने निवास पर बुलाते थे। इस दौरान वे उन्हें ऑफिशियल असाइनमेंट और फाइनेंशियल ट्रांजेक्शंस से रिलेटेड आदेश दिया करते थे, जिसमें फंड कलेक्शन भी शामिल है।

    परमबीर सिंह ने आगे आरोप मे कहा था कि पिछले कुछ महीनों में गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुंबई पुलिस के क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट के प्रमुख सचिन वाजे को कई बार फोन किया और उन्हें फंड कलेक्शन में सहायता करने का निर्देश दिया था।

    गृहमंत्री अनिल देशमुख ने सचिन वाजे को हर महीने 100 करोड़ रूपए जमा करने का टारगेट दिया था। गृहमंत्री ने उपरोक्त टारगेट को प्राप्त करने के लिए वाजे से कहा था कि मुंबई के 1750 बार रेस्टोरेंट और अन्य प्रतिष्ठान से हर महीने प्रत्येक से 2-3 लाख रुपये कलेक्ट करने होंगे। इसके साथ ही गृहमंत्री ने कहा था ऐसा करके 40-50 करोड़ रूपए हर महीने आसानी से एकत्र किए जा सकते हैं। गृहमंत्री ने आगे कहा था कि बाकी का कलेक्शन दूसरे चीजों से किया जाएगा।

    परमबीर सिंह ने आरोप में लिखा था कि सचिन वाजे उसी दिन मेरे पास आए और यह चौंकाने वाला खुलासा किया। यह सुनकर मैं स्तब्ध हो गया था और इस स्थिति से निपटने के बारे में सोचने लगा।

    कोर्ट से वर्तमान याचिकाकर्ता ने इस पृष्ठभूमि में इस मामले में जांच का निर्देश देने का आग्रह किया है।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि परमबीर सिंह के खिलाफ भी जांच होनी चाहिए, क्योंकि उनकी रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि वह खुद एक साल तक मुंबई पुलिस के प्रमुख के रूप में कार्य किए, लेकिन इस दौरान उन्होंने कानून के समक्ष ऐसे जघन्य अपराध को नहीं लाया सिर्फ चुपचाप बैठे रहे।

    याचिका में आगे कहा गया है कि,

    "यह उनकी भूमिका को दर्शाता है और वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारी थे और सीआरपीसी की धारा 154 के तहत कानून के अनुसार उचित कदम उठाने की शक्तियां रखते थे, लेकिन वह किन कारणों से ऐसा करने में विफल रहे, यह एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच का विषय बन गया है।

    कोर्ट से याचिकाकर्ता पाटिल ने जांच अधिकारी को निर्देश देने का आग्रह किया है कि वे परमबीर सिंह की रिपोर्ट में उल्लिखित तारीखों के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित करने और आपराधिक साजिश रचने की योजनाओं के स्थानों का खुलासा करने के निर्देश दें।

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि उसने मुंबई के मालाबार हिल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है। हालांकि, कथित रूप से अनुचित प्रभाव के कारण पुलिस प्राधिकरण एफआईआर दर्ज करने में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल रहा है।

    याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी गृहमंत्री अनिल देशमुख की बाहुबल, धनबल और राजनीतिक बल के कारण अपने शक्तियों का प्रयोग करने में विफल हैं।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि,

    "ऐसे अपराध में पुलिस प्राधिकरण द्वारा एफआईआर दर्ज से इनकार करना संवैधानिक जनादेश और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 154 के खिलाफ है।"

    याचिकाकर्ता ने ललिता कुमारी बनाम उत्तप्रदेश सरकार और अन्य मामले में दिए गए कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इसमें कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर को अनिवार्य रूप से दर्ज किया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की जाती है तो भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा महत्वपूर्ण जांच को बर्बाद किया जा सकता है।

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