दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान पुलिस द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की रिहाई की मांग, दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका
LiveLaw News Network
1 Feb 2021 7:34 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें न सिर्फ किसानों को बल्कि सभी व्यक्तियों को रिहा करने की मांग की गई है, जिन्हें कथित तौर पर 26 जनवरी को या उसके बाद राजधानी दिल्ली में आयोजित किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली पुलिस द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है।
याचिकाकर्ता जो कानून के छात्र है, उसने अधिवक्ता आशिमा मंडला और एडवोकेट मंदाकिनी सिंह के माध्यम से याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की गिरफ्तारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता के अनुसार, उनके पास पीआईएल दायर करने के लिए लोकस स्टैंडी है क्योंकि 26/27 जनवरी , 2021 के बाद से किसान सहित लगभग 200 लोग गायब हैं, और बंदी प्रत्यक्षीकरण के लिए याचिका किसी भी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति की ओर से लगाई जा सकती है।
याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत सर्वेक्षण, समाचार पत्रों की रिपोर्टों, मीडिया रिपोर्टों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से जानकारी प्राप्त की कि लोगों को सिंघू बॉर्डर, गाजीपुर बार्डर और टिकरी बॉर्डर से किसी भी प्राथमिकी की अनुपस्थिति में, और स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन में अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है। याचिकाकर्ता के पास 15 व्यक्तियों के नाम भी हैं जो 26/27 जनवरी 2021 से लापता और हिरासत में हैं। 4 दिन से अधिक समय बीतने के बावजूद भी हिरासत की कोई कानूनी वजह सामने नहीं आई है।
याचिका में कहा गया है कि 27 जनवरी को मीडिया में प्रसारित किया था कि दिल्ली पुलिस ने किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में कथित हिंसा के संबंध में 200 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया था और 22 प्राथमिकी दर्ज की गई थीं। लेकिन दिल्ली पुलिस गिरफ्तारी ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने, 8-12 घंटे की अवधि के भीतर परिजनों को सूचित करने और मजिस्ट्रेट के सामने सीआरपीसी की धारा 167 के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को पेश करने जैसी प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं का पालन करने में विफल रही। इसलिए दिल्ली पुलिस की यह विफलता 'अवैध हिरासत' के रूप में आती है।
याचिका में लिखा है कि,
"यह उल्लेख करना उचित है कि बिना प्राथमिकी दर्ज किए पुलिस ने व्यक्तियों को हिरासत में रखा। इसके साथ ही सीआरपीसी की धारा 167 का भी उल्लंघन किया गया है। धारा 167 के मुतबिक हिरासत में लिए गए व्यक्ति की पेशी मजिस्ट्रेट के सामने गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर होनी अनिवार्य है।
डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों की प्रक्रिया का अनुपालन न होना अवैध हिरासत कहलाएगी। इसके साथ ही इस तरह का हिरासत भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 22 का उल्लंघन माना जाएगा।"
याचिका के अनुसार, आपात स्थिति में भी स्वतंत्रता की धारणा को अलग नहीं किया जा सकता है। संविधान, भूमि का सर्वोपरि और सर्वोच्च कानून है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार हिरासत में लिया जाता है, तो संवैधानिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को लागू करना जरूरी है।
चित्र सौजन्य: हिंदुस्तान टाइम्स