नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में आता हैः मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति को जमानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

21 Nov 2021 5:22 AM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (ग्वालियर बेंच) ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर अपनी 'पत्नी' के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने का आरोप लगाया गया है, जो कथित अपराध के समय 18 वर्ष से कम उम्र की थी और इसलिए उसके खिलाफ का मामला दर्ज किया गया है।

    न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की खंडपीठ ने कहा कि इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया व एक अन्य (2017) 10 एससीसी 800 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के प्रावधान को पढ़ने के बाद यह माना था कि एक नाबालिग पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना भी (यानी 18 वर्ष से कम उम्र) बलात्कार की श्रेणी में आएगा।

    इंडिपेंडेंट थॉट (सुप्रा) में, सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 (जो बलात्कार को परिभाषित करती है) के अपवाद 2 को पढ़ा है (जैसा कि आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 द्वारा संशोधित किया गया था), जो इस तरह के यौन कृत्य की अनुमति देता है। इन मामलों में सहमति की उम्र 15 से 18 साल कर दी गई थी।

    न्यायालय एक अजय जाटव की पांचवीं जमानत याचिका पर विचार कर रहा था, जिसे 31 जनवरी, 2021 को गिरफ्तार किया गया था। अजय के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)की धारा 363, 376, 366 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत अपराध करने के संबंध में केस दर्ज किया गया था।

    अजय की तरफ से यह प्रस्तुत किया गया था कि यद्यपि न्यायालय ने चौथी जमानत अर्जी पर निर्णय लेते समय, पीड़िता के साक्ष्य पर विचार किया था। उसके बाद, उसके पिता का भी बयान दर्ज किया गया था और उन्होंने अपने बयान में कहा था कि कथित अपराध के समय पीड़िता की आयु लगभग 17 वर्ष और 6 महीने थी।

    आगे यह भी प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक ने पीड़िता से शादी कर ली है और इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई थी कि उसे जमानत दी जाए, हालांकि पीड़िता के पिता की गवाही को अदालत द्वारा एक बदली हुई परिस्थिति के रूप में नहीं माना गया जो उसे जमानत पर रिहा करने की अनुमति देती थी।

    महत्वपूर्ण रूप से, चौथी जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान, आवेदक के वकील ने दलील दी थी कि पीड़िता की गवाही हो चुकी है और उसने अपने बयान में यह कहा है कि उसके बालिग होने और आवेदक से शादी करने के बाद ही शारीरिक संबंध बनाए गए थे।

    हालांकि, उस याचिका का राज्य के वकील और शिकायतकर्ता के वकील ने विरोध किया था।

    यह प्रस्तुत किया गया था कि अस्पताल की रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता ने 16 सितंबर, 2020 को एक बच्चे को जन्म दिया था और इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि वह दिसंबर 2019 के महीने में ही गर्भवती हो गई थी और पीड़िता की जन्म तिथि 01 फरवरी, 2002 है। ऐसे में यह साफ है कि गर्भवती होने के समय पीड़िता नाबालिग थी।

    इन परिस्थितियों में, अदालत ने 31 जुलाई 2021 को आवेदक की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, इसके बाद उसने अपनी पांचवीं जमानत याचिका, यानी तत्काल जमानत याचिका दायर की।

    21 अक्टूबर को आवेदक की पांचवीं जमानत पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की पीठ ने कहा था कि परिस्थितियों में किसी भी बदलाव के अभाव में, जमानत देने के लिए कोई मामला नहीं बनता है और इसलिए, उसकी जमानत पांचवीं बार खारिज कर दी गई।

    केस का शीर्षक - अजय जाटव बनाम एमपी राज्य व अन्य

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