पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विवाह के पंजीकरण की अनुमति दी; एकल पीठ के निर्णय को पलटा
LiveLaw News Network
19 March 2021 5:48 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एकल पीठ के फैसले को पलटते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक जोड़े के विवाह के पंजीकरण की अनुमति दी।
न्यायमूर्ति रितु बहरी और न्यायमूर्ति अर्चना पुरी की खंडपीठ एकल पीठ के उस फैसले के खिलाफ की गई अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दंपति (विवाहित जोड़े) को अपनी शादी के ई-पंजीकरण करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।
सिंगल जज बेंच ने कहा था कि,
"विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत विवाह के पंजीकरण के लिए सक्षम अधिकारी के समक्ष पक्षकारों (विवाहित जोड़े) को पेश होने का अनिवार्य प्रावधान है। अधिकारी के समक्ष पेश हुए बिना विवाह का पंजीकरण नहीं कराया जा सकता है।"
तथ्य
कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ता का मामला यह है कि अपीलकर्ताओं ने गुरुग्राम (हरियाणा) में हिंदू संस्कारों और समारोहों के अनुसार दिसंबर 2019 में विवाह किया।
शादी के बाद दोनों यानी पति यूनाइटेड किंगडम और पत्नी यूनाइटेड स्टेट्स अपने-अपने कार्यस्थलों पर वापस लौट गए।
विवाहित जोड़े ने शादी के पंजीकरण के लिए उपायुक्त-सह-विवाह अधिकारी के समक्ष जनवरी 2020 में आवेदन किया और उसके बाद उन्हें अप्रैल 2020 में प्राधिकरण के समक्ष पेश होने के लिए बुलाया गया।
इस बीच COVID19 महामारी के कारण अपीलकर्ता भारत वापस नहीं आ सके। इस वजह से पति ने अनुरोध के साथ मैरिज ऑफिसर को अगस्त 2020 में आवेदन दिया कि इसकी सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से की जाए। इस अनुरोध को सितंबर 2020 में वीडियो पत्र/आदेश को खारिज कर दिया गया था।
कोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया कि पत्नी जो एक मेडिकल प्रोफेशनल है, वह COVID 19 महामारी के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में आपातकालीन ड्यूटी पर थी और पति को उनसे मिलने के लिए वीजा प्राप्त करने के लिए विवाह प्रमाणपत्र की आवश्यकता थी।
पीठ के समक्ष अंत में तर्क दिया गया कि पक्षकारों को उनकी पहचान प्रमाणित करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में भारत के दूतावास / वाणिज्य दूतावास के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा जा सकता है।
इसके बाद संबंधित देशों में सरकारी अधिकारियों के माध्यम से आसानी से अपीलकर्ताओं की जांच की जा सकती है।
बेंच के समक्ष तर्क दिया गया कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 15 और धारा 16 का पर्याप्त अनुपालन होगा और उनकी शादी को मैरिज अधिकारी द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पंजीकृत किया जा सकता है।
सिंगल बेंच जजमेंट
एकल पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए फैसला सुनाया था कि विवाह के पंजीकरण के लिए निर्धारित प्रक्रिया के लिए यह आवश्यक है कि पक्षकारों को दो गवाहों के साथ उपस्थित होना पड़ेगा।
आगे कहा था कि विवाह अधिकारी द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मध्यस्थ की जांच प्रक्रिया को पूरा किया जा सकता है, लेकिन अधिनियम के तहत विवाह के पंजीकरण के लिए पार्टियों को विवाह अधिकारी के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहना अनिवार्य है।
एकल न्यायाधीश ने कहा था कि पक्षकारों को गवाहों की उपस्थिति में विवाह प्रमाणपत्र पुस्तिका पर हस्ताक्षर करना होता है और डिस्टेंस मोड में पक्षकारों द्वारा विवाह प्रमाणपत्र पुस्तिका पर हस्ताक्षर नहीं किए जा सकते हैं।
कोर्ट के समक्ष प्राथमिक प्रश्न
कोर्ट के समक्ष सबसे पहला सवाल यह है कि निर्धारित विवाह प्रमाणपत्र पुस्तिका के पांचवे भाग के अनुसार विवाह प्रमाणपत्र के लिए दोनों पक्षों को तीन गवाहों के साथ विवाह प्रमाण पत्र की पुस्तिका पर हस्ताक्षर करना होगा और क्या यह प्रक्रिया वीडियो कॉन्फ्रेंस द्वारा की जा सकती है?
डिवीजन बेंच का फैसला
कोर्ट ने शुरुआत में महाराष्ट्र राज्य बनाम डॉ. प्रफुल्ल बी. देसाई, 2003 (4) एससीसी 601 के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एविडेंस रिकॉर्ड करने की प्रक्रिया की जांच की थी।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 3 के तहत एविडेंस ( साक्ष्य) मौखिक और दस्तावेजी दोनों हो सकते हैं और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को भी साक्ष्य के रूप में पेश किया जा सकता है और इस प्रकार आपराधिक मामलों में भी सबूत को इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के रूप में पेश किया जा सकता है, इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग भी शामिल होगी।
कोर्ट ने प्रदीप केंडीवेडू क्लिटस बनाम लोकल रजिस्ट्रार ऑफ मैरिजे (कॉमन), 2018 (1) ILR (केरल) 377 मामले में केरल हाईकोर्ट के फैसले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि लोकल रजिस्ट्रार को अधिकार दिया जाता है वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति प्राप्त करें।
कोर्ट ने विभिन्न कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ओवररूल करते हुए कहा कि,
"सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए आपराधिक कानून के तहत साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के लिए न्यायालय के समक्ष गवाह की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। बेंच इसी तरह विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी करने के लिए उपासना बाली बनाम झारखंड राज्य और अन्य (2013) 1 एआईआर झार आर 741 मामले में झारखड़ हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के पंजीकरण लिए पक्षकार वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से पंजीकरण अधिकारी के समक्ष पेश हो सकते हैं।"
कोर्ट ने आगे कहा कि पति अपनी पत्नी को विवाह के रजिस्ट्रार के सामने पेश होने से पूरी छूट नहीं मांग रहा है बल्कि उसकी प्रार्थना है कि विवाह पंजीकरण के लिए पत्नी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी जाए।
पीठ ने अंत में निर्देश दिया कि,
"इस मामले में अमी रंजन की पत्नी (मीशा वर्मा) को मैरिज रजिस्ट्रार के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी है और पति- अमी रंजन और तीन गवाहों को मैरिज रजिस्ट्रार के कार्यालय में उपस्थिति रहने की अनुमति दी जाती है।
पीठ ने आगे कहा कि,
"इसके बाद विशेष विवाह अधिनियम की धारा 15 और 16 के तहत विवाह प्रमाण पत्र जारी करने से पहले तथ्यों की जांच की जा सकती है। विवाह प्रमाणपत्र जारी होने के बाद अधिनियम की धारा 47 के तहत विवाह प्रमाणपत्र पुस्तिका में दर्ज करके सार्वजनिक रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया जा सकता है।"
केस का शीर्षक - अमी रंजन और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य [ LPA No.125 of 2021 (O&M) (in CWP No.20480 of 2020)]