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आर्थिक रूप से कमजोर COVID-19 रोगी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह मुफ्त इलाज पाने के लिए अस्पताल में दाखिला लेने से पहले दस्तावेजी सबूत देः बॉम्बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
28 Jun 2020 4:26 AM GMT
आर्थिक रूप से कमजोर COVID-19 रोगी से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह मुफ्त इलाज पाने के लिए अस्पताल में दाखिला लेने से पहले दस्तावेजी सबूत देः बॉम्बे हाईकोर्ट
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि COVID-19 से पीड़ित, समाज के आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वह मुफ्त इलाज के लिए अस्पताल में दाखिला लेने से पहले दस्तावेजी सबूत पेश करे।

जस्ट‌िस आरडी धानुका और जस्ट‌िस माधव जामदार की खंडपीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जर‌िए, बांद्रा के एक झुग्गी पुनर्वास भवन के सात निवासियों की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई की, जिन पर केजे सोमैया अस्पताल ने अप्रैल में COVID-19 उपचार के लिए 12.5 लाख रुपये का चार्ज लगाया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोकेट विवेक शुक्ला ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने मौके पर उधार लेकर पैसे की व्यवस्था की थी क्योंकि अस्पताल ने बिल का भुगतान न करने पर डिस्‍चार्ज न करने की धमकी दी थी। याचिकाकर्ता केवल 10 लाख रुपये ही जुटा सकते थे।

पीठ ने अस्पताल को दो सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट के समक्ष धन जमा करने का निर्देश दिया।

महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम की धारा 41 एए के अनुसार, चैरिटी कमिश्नर और राज्य सरकार को धारा 41 एए (4) (सी) के तहत अस्पतालों के संबंध में कमजोर वर्ग के लिए कुछ बेड आवंटित करने का दिशा-निर्देश जारी करने का अधिकार है और धारा 41 एए (4) (बी) के तहत गरीब व्यक्ति का नियम प्रतिवादी नंबर 1 ट्रस्ट पर लागू है।

एडवोकेट शुक्ला ने दलील दी कि अस्पताल को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के लिए 10% बेड और गरीब व्यक्तियों के लिए 10% बेड आरक्षित रखने की आवश्यकता थी, हालांकि ऐसे कोई बेड उपलब्ध नहीं कराए गए थे।

कोर्ट ने कहा कि इन श्रेणियों के के लिए तय किए गए 90 बेड में से मार्च में केवल तीन मरीजों को भर्ती किया गया था।

अस्पताल की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट जनक द्वारकादास ने कहा कि याचिकाकर्ता उक्त श्रेणियों में से किसी से संबंधित नहीं हैं और न ही उन्होंने यह साबित करने के लिए कोई रिकॉर्ड पेश किया कि वे उन श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं को तहसीलदार की ओर से जारी आय प्रमाण पत्र या समाज कल्याण अधिकारी की ओर से जारी आय प्रमाण पत्र पेश करना चाहिए था।

एडवोकेट शुक्ला ने दलील दी कि COVID-19 पीड़ित याचिकाकर्ताओं को अस्पताल में भर्ती होते समय इस तरह के प्रमाण पत्र पेश करने की आवश्यकता नहीं थी।

कोर्ट ने चैरिटी कमिश्नर की ओर से दायर शपथ पत्र का अध्ययन किया, जिसमें स्पष्ट रूप से दर्शाया गया था कि लॉकडाउन के बाद मई 2020 के तक अस्पताल योजना के तहत केवल तीन रोगियों का इलाज किया गया है।

पीठ ने कहा-

"अस्पताल में भर्ती होने आया व्यक्ति धारा 41 एए (4) (बी) और (सी) की श्रेणी के तहत आता है या नहीं या ऐसे रोगियों को भर्ती के समय ही तहसीलदार और समाज कल्याण अधिकारी की ओर से जारी प्रमाण पत्र पेश करने की आवश्यकता होती है, यह जानना क्या उत्तरदाता नंबर एक के प्रबंधन का कर्तव्य था? COVID 19 के रोगियों के संबंध में ये ऐसे प्रश्न हैं, जिन पर तत्‍काल विचार करने की आवश्यकता है।

हमारा प्रथम दृष्टया विचार है कि, COVID-19 जैसी बीमारी से पीड़ित एक व्यक्ति को धारा 41 एए (4) (सी) और (डी) के तहत तय किए गए लाभ पाने के लिए अस्पताल में भर्ती होने से पहले समाज कल्याण अधिकारी या तहसीलदार की ओर से जारी प्रमाण पत्र पेश करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।

हम उत्तरदाता नंबर एक की ओर से पेश विद्वान वरिष्ठ वकील द्वारा की दलील को स्वीकार करने इच्छुक नहीं हैं कि जब तक कि याचिकाकर्ता प्रमाण पत्र पेश नहीं करते, तब तक उत्तरदाता नंबर एक उन श्रेणियों में किसी भी रोगी को स्वीकार करने के लिए उत्तरदायी नहीं है।"

कोर्ट ने अस्पताल को दो सप्ताह के भीतर 10,06,205 रुपए जमा करने का निर्देश दिया।

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