'लोगों को अभी ऑक्सीजन की आवश्यकता है तो फिर उद्योगों पर ऑक्सीजन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए 22 अप्रैल तक क्यों इंतजार करना चाहिए': दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

21 April 2021 12:07 PM IST

  • लोगों को अभी ऑक्सीजन की आवश्यकता है तो फिर उद्योगों पर ऑक्सीजन के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के लिए 22 अप्रैल तक क्यों इंतजार करना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को COVID-19 रोगियों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति में कमी के मद्देनजर केंद्र सरकार से कहा कि उद्योगों में ऑक्सीजन के उपयोग को प्रतिबंधित करने में देरी क्यों हो रही है।

    जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस रेखा पल्ली की डिवीजन बेंच ने टिप्पणी की कि,

    "आपने कहा है कि आप 22 तारीख तक उद्योगों में ऑक्सीजन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा देंगे, लेकिन आज क्यों नहीं? आज जो लोगों की जान जा रही है उसका क्या? क्या आप मरीजों को 2 दिन इंतजार करने के लिए कहेंगे?"

    कोर्ट दिल्ली में COVID-19 स्थिति के संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

    बेंच ने सुनवाई के दौरान कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए, जिसमें दिल्ली में कोविड रोगियों के लिए बेड की संख्या बढ़ाना, केंद्र के टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी लाना और उन सभी को टीका लगाना शामिल है जो टीककरण के इच्छुक हैं।

    जस्टिस विपिन सांघी ने कहा कि,

    "आप जिसे भी टीका लगा सकते हैं, कृपया टीका लगाएं। चाहे वह 60 वर्ष का व्यक्ति हो या 16 वर्ष का। कम से कम जो लोग टीका लगवाना चाहते हैं, उसे लगाया जाए। जो नहीं लगवाना चाहते उन्हें शुभकामनाएं। बात यह है कि वायरस भेदभाव नहीं करता है।"

    बेंच ने सरकार द्वारा सही समय पर कदम नहीं उठाने और ऑक्सीजन के उपयोग को सही समय पर प्रतिबंधित नहीं करने पर सरकार की आलोचना की।

    जस्टिस सांघी ने कहा कि,

    "जिस तरह से लोग मर रहे हैं, इसे देखते हुए अर्थव्यवस्था के लिए और अधिक उत्पादन करने का क्या मतलब है ?"

    कोर्ट ने ऑक्सीजन की आपूर्ति को चिकित्सा उपयोग के लिए लोहे, इस्पात और पेट्रोलियम उद्योगों के उत्पादन में 2-3 सप्ताह के लिए कटौती करने का सुझाव दिया।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "अंततः आर्थिक हित मानव जीवन को ओवरराइड नहीं कर सकते हैं। हम इस तरह से लोगों को नहीं खो सकते हैं। एक करोड़ लोगों की जान जा सकती है। हम इतने असंवेदनशील नहीं हो सकते हैं। अभी ऑक्सीजन की कमी है, हमें इसे अभी पूरा करना है। यह कुछ ऐसा है जिसे आपको अभी देखना है। एक बिंदु के बाद हम नहीं कर सकते। हम यहां सरकार चलाने के लिए नहीं हैं। अगर आपने दो दिन पहले यह फैसला लिया होता तो कईयों की जान बचाई जा सकती थी। "

    ऑक्सीजन की कमी

    खंडपीठ ने केंद्र से पूछा कि वह ऑक्सीजन के औद्योगिक उपयोग को प्रतिबंधित करने चिकित्सा की ओर आपूर्ति बढ़ाने के लिए तत्काल कदम क्यों नहीं उठा रहा है।

    बेंच ने केंद्र के लिए उपस्थित संयुक्त सचिव से कहा कि,

    "आप अभी से उद्योगों के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रहे हैं? लोग मर रहे हैं। सरकार के लिए पेश होने वाले एक वकील के पिता भर्ती कराया गया और हम जानते हैं कि ऑक्सीजन की कम हो गई थी इसलिए उसे अब तक ऑक्सीजन नहीं मिला। दरअसल कल तक ऑक्सीजन खत्म हो जाएगा। "

    जेएस ने बेंच को सूचित किया कि एम्स प्रमुख डॉ. रणदीप गुलेरिया ने ऑक्सीजन की आवश्यकता की गणना के लिए एक फार्मूला तैयार किया है।

    कोर्ट को जेएस ने आश्वासन दिया कि,

    "यह ध्यान में रखते हुए कि लगभग 80% मामले हल्के हैं जहां ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं है। इस गणना के अनुसार दिल्ली को लगभग 220 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता थी, लेकिन उन्हें लगभग 370 मीट्रिक टन प्रदान किया गया है। ऑक्सीजन की पूर्ति का आश्वासन दिया जाता है और उत्पादन करने वाले लोग ऑक्सीजन को अन्य राज्यों में नहीं ले जाने देंगे।"

    जेएस ने जोर देकर कहा कि निश्चित रूप से ऑक्सीजन सिलेंडरों की कमी है क्योंकि सिलेंडर पैक करके घरों में भेज दिए जाते हैं या मनोवैज्ञानिक प्रभाव के लिए मरीजों को दिए जाते हैं।

    खंडपीठ ने आदेश में कहा कि,

    "दिल्ली में ऑक्सीजन की उपलब्धता की स्थिति चिंताजनक है। हमें सूचित किया गया है कि गंगा राम अस्पताल जैसे अस्पतालों में ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी है जो दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों में से एक है। हम सीजी से आग्रह करते हैं कि वे स्टील और पेट्रोकेमिकल उद्योग पर गंभीरता से विचार करें ताकि बड़े पैमाने पर लोगों की जरूरतों के बीच कोविड मरीजों और उद्योग के लिए जरूरी ऑक्सीजन का एक अच्छा संतुलन बनाया जा सके।"

    आगे कहा कि यदि अधिक से अधिक लोग लॉकडाउन में कोविड से पीड़ित हैं, तो स्टील और पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन का उद्देश्य भी कोई फायदा नहीं होगा। हम उम्मीद करते हैं कि सीजी तत्काल पेट्रोकेमिकल और स्टील के उद्योगों में शामिल सभी हितधारकों के साथ एक बैठक करें ताकि उनके द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन का एक अच्छा हिस्सा मौजूदा स्थिति में कुछ समय के लिए चिकित्सा जरूरतों के लिए डायवर्ट किया जा सके। ''

    टीकाकरण कार्यक्रम पर टिप्पणी

    न्यायमूर्ति सांघी ने भारत में टीकों के अपव्यय के खिलाफ मजबूत टिप्पणियां कीं और केंद्र सरकार से कहा कि वे प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ अच्छी तरह से योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ें।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "नवीनतम संख्या से पता चलता है कि 10 करोड़ में से 44 लाख टीके बेकार हो गए हैं। तमिलनाडु में अधिकतम अपव्यय हुआ है। कृपया ध्यान दें कि 10 करोड़ में से 44 लाख बहुत अधिक अपव्यय है। 1 शीशी से 10 लोगों को टीका लगाया जा सकता है। अमेरिका में यदि 4-5 बजे तक टीके नहीं लिए जाते हैं तो उनके पास पात्र व्यक्तियों को बुलाने और उन्हें टीका लगाने की व्यवस्था है।"

    जस्टिस सांघी ने आगे कहा कि,

    "इसके अलावा हाल ही में टीकाकरण करने वाले लोगों की संख्या कम हो गई है। हम एक ऐसा देश हैं जो सर्वश्रेष्ठ आईटी वालों का निर्माण करते हैं। हम इससे क्यों नहीं निपट सकते? यह सिर्फ खराब योजना है। हमने इसे क्यों नहीं देखा? यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है। "

    आगे कहा कि लोगों को वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में जानकारी प्रदान की जानी चाहिए ताकि दोनों प्रक्रिया को और अधिक सुविधाजनक बना सकें और यह सुनिश्चित हो सके कि संसाधन बर्बाद न हों।

    जस्टिस सांघी ने कहा कि,

    "जब आप ऐप पर पंजीकृत होते हैं, तो आपको सही तरीके से अपडेट मिलता है कि आपको किस केंद्र में जाना है। ऐसे अस्पताल और केंद्र हैं जहां आप जा सकते हैं। अब लोग ऐप पर टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने में सक्षम हैं, शुरू में समस्याएं थीं। अगर उन्हें पता है कि उन्हें किस केंद्र में जाना है तो वे तुरंत जा सकते हैं। इससे टीकाकरण बर्बाद नहीं होगा। "

    टेस्ट रिपोर्ट

    बेंच ने जोर देकर कहा कि एक नियम होना चाहिए कि पहले लिए गए सैंपल का पहले टेस्ट किया जाए।

    बेंच ने कहा कि,

    "कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। अगर मेरा टेस्ट आज होता है और किसी का कल किया जाता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसके टेस्ट का रिजल्ट मेरे टेस्ट के रिजल्ट से पहले दिया जाए। इसके साथ ही रोगी को लैब द्वारा सूचित किया जाना चाहिए कि इसमें कितना समय लगेगा।"

    बेंच आगे कहा कि नागरिक को यह समझना चाहिए कि अब डॉक्टर और लैब सहायक भी संक्रमित हो रहे हैं और इस प्रकार टेस्ट रिपोर्ट के लिए 24 घंटे की सीमा बढ़ाकर 48 घंटे कर दी गई है।

    बेंच ने कहा वे भी इंसान हैं। 24 घंटे की सीमा तय की गई थी, जब संख्या एक दिन में 8000 थी। अब यह 25000 है।

    मरीजों के डेटा के संग्रह को और अधिक सहज बनाया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति संघी ने सुनवाई के दौरान कहा कि टेस्ट और उपचार के लिए कई तरह के फॉर्म क्यों भराया जा रहा है, जब किसी व्यक्ति के बारे में सभी प्रासंगिक जानकारी उसके आधार कार्ड के माध्यम से एक्सेस की जा सकती है।

    न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि निदान के बजाय उन्हें कंप्यूटर केंद्र खोलना चाहिए।

    एएसजी ने अदालत को आश्वासन दिया कि आज ही एक अधिसूचना जारी की जाएगी, जिसमें आईसीएमआर को आधार कार्ड के विवरणों को कॉपी करने के बारे में बताया जाएगा।

    कोर्ट ने आदेश में कहा कि,

    "एक वेबसाइट पर टेस्ट के परिणाम अपलोड करने के लिए सॉफ्टवेयर डिवाइस है। रोगियों को अपना आधार कार्ड प्रदान करने की आवश्यकता होती है। यह स्थिति के होने के बावजूद हमें सूचित किया जाता है कि टेस्टिंग एजेंसियों को विस्तृत फ़ॉर्म ऑनलाइन भरने की आवश्यकता है। हम सीजी और आईसीएमआर को उस फॉर्म की समीक्षा करने का निर्देश देते हैं जिसमें जानकारी अपलोड करने की आवश्यकता होती है ताकि उनके बोझ और समय की बर्बादी को कम किया जा सके। ''

    दवाइयों की कमी

    जस्टिस सांघी ने कहा कि बाजार में दवाओं की कमी है और लोगों को दवाइयों को महंगे दामों पर खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है।

    बेंच ने सरकार से कहा कि,

    "दवाइयों की जमाखोरी की जा रही है। कुछ लोग अच्छे काम कर रहे हैं तो कुछ इस संकट के समय में सिर्फ लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। आपको एक छापा मारने की जरूरत है।"

    न्यायालय ने बाजार में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी पर भी चर्चा की और कहा कि सरकार को अपने सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करने की आवश्यकता है। बेंच ने टिप्पणी की कि चाहे वह दिल्ली हो या यूपी या राजस्थान। अगर आपको दवाई के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा रहा है तो यह बहुत दुख की बात है।

    कोविड अस्पतालों में बेड की कमी

    बेंच ने COVID-19 रोगियों के लिए बेड की कमी पर भी ध्यान दिया, जिन्हें तत्काल चिकित्सा देने की आवश्यकता होती है।

    दिल्ली सरकार ने कोर्ट को सूचित किया कि उन्हें पर्याप्त बेड नहीं मिल रहे हैं। इस पर कोर्ट ने कहा कि लोग अस्पतालों के बाहर स्ट्रेच पर लेटे हुए हैं।जहां भी वे जा सकते हैं वे जा रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सुविधाएं पर्याप्त हैं। यदि पिछली बार आपने 4100 बेड प्रदान किए थे, तो इस बार आप केवल 2000 बेड प्रदान कर रहे हैं। हालांकि मामलों की संख्या 4 गुना अधिक है।

    दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए मेहरा ने कहा कि पिछले साल केंद्रीय सरकार ने अस्पतालों में कोविड रोगियों के लिए 4112 बेड उपलब्ध कराए थे। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष के आंकड़ों की तुलना में इस बार कोविड पॉजिटिव रोगियों की संख्या चार गुना है। लेकिन केंद्र द्वारा पिछले साल की तुलना में उपलब्ध बेड की संख्या 50% है। एएसजी ने तब बेंच को सूचित किया कि सरकार रेलवे वैगनों, राधा स्वामी सत्संग में भी सुविधाएं स्थापित कर रही है।

    सरकार के संयुक्त सचिव ने कहा कि,

    "हम सुविधा प्रदान करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं। हमारे लिए बाधा यह है कि भले ही हम बेड की संख्या बढ़ा भी दें लेकिन इसके साथ ही नर्सों आदि में समानुपातिक वृद्धि की आवश्यकता है। यदि कोरोना संक्रमित के इलाज के लिए बिना मैन पॉवर के केवल बेड की संख्या बढ़ा दिया जाए तो वास्तव में यह खतरनाक होगा।"

    खंडपीठ ने कहा कि,

    "लेकिन पिछली बार आपने इसे 4000 तक बढ़ा दिया था? क्या आप इसे समझा सकते हैं? इसका मतलब है कि आपके पास क्षमता है फिर भी आपने इसे Covid19 के लिए डायवर्ट नहीं किया है। क्या आप स्थिति की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं और तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।"

    बेंच ने आदेश दिया कि,

    "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पिछले साल कोविड रोगियों में से कोई भी अस्पताल में भर्ती नहीं हो रहा था और अब पिछले वर्ष की संख्या से अधिक है। सीजी को कोविड रोगियों के लिए अस्पतालों में अधिक बेड आवंटित करने के लिए तत्पर होना चाहिए। इस संबंध में एक रिपोर्ट अगली तारीख पर प्रस्तुत की जानी चाहिए।"

    RT-PCR टेस्ट

    पीठ ने RT-PCR टेस्ट पर ध्यान देते हुए कहा कि कुछ निश्चित पहलू हैं जिन्हें सीजी और इसकी एजेंसियों द्वारा संबोधित करने की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति सांघी ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से जानते हैं कि मशीनों को भारत के बाहर से आयात किया जा रहा है और फिर वे 3-4 दिनों के लिए बॉम्बे में कस्टम में फंस जाते हैं।

    खंडपीठ ने आदेश में कहा कि,

    "हमें सूचित किया गया है कि RT-PCR टेस्ट प्रयोगशाला करने के लिए उपकरणों और मशीनों का आयात किया जाता है और इसे कस्टम विभाग द्वारा नियमित किया जाता है। यह आवश्यक है कि ऐसे सभी चिकित्सा उपकरण, दवाइयां आदि जो आयात की जाती हैं, उन्हें सीमा शुल्क द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में मंजूरी दे दी जानी चाहिए। इस तरह की मंजूरी की प्रक्रिया अत्यधिक समय लेती है। हम किसी भी तरह से आईसीएमआर के अधिकार का उल्लंघन नहीं करना चाहते हैं और हम इसे अनुमति देने के तरीके के मानकों को शिथिल करने की उम्मीद नहीं करते हैं। हालांकि हम आईसीएमआर को इस तरह के क्लीयरेंस को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का निर्देश देते हैं ताकि बिना किसी देरी के लैब स्थापित हो सकें।''

    पृष्ठभूमि

    याचिका पिछले साल एडवोकेट राकेश मल्होत्रा ने दायर की थी। याचिका को जनवरी 2021 में निपटाया दिया गया था। हालांकि COVID-19 की दूसरी लहर को ध्यान में रखते हुए पीठ ने मामले पर वापस सुनवाई की।

    कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकारों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय राजधानी में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन के साथ बेड की उपलब्धता है या नहीं, यह बताते हुए हलफनामा दाखिल करें।

    कोर्ट ने इसके साथ ही जिस तरह से महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा हुई है उस पर नाराजगी जाहिर किया है।

    मंगलवार को केंद्र ने अपना हलफनामा दायर किया। हालांकि राज्य को अपना जवाब दाखिल करने के लिए एक दिन का समय दिया गया है। दिल्ली सरकार को बुधवार दोपहर 1 बजे तक अपना हलफनामा दाखिल करने को कहा गया है।

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