पटना हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय विरासत स्थल की खस्ताहालत पर केंद्र, बिहार सरकार से जवाब मांगा

LiveLaw News Network

31 March 2022 4:20 PM IST

  • पटना हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय विरासत स्थल की खस्ताहालत पर केंद्र, बिहार सरकार से जवाब मांगा

    पटना हाईकोर्ट (Patna High Court) ने वीर कुंवर सिंह (Veer Kunwar Singh) से संबंधित राष्ट्रीय धरोहर की खस्ताहालत को लेकर दा जनहित याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इसके साथ ही कोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल तथा न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ ने कहा,

    "केंद्र और राज्य सरकार द्वारा आज से तीन सप्ताह की अवधि के भीतर जवाब सकारात्मक रूप से दाखिल किया जाए। उसका प्रत्युत्तर, यदि कोई हो, इसके बाद एक सप्ताह की अवधि के भीतर दाखिल किया जाना चाहिए।"

    कोर्ट के समक्ष यह याचिका एक शशि कुमार सिंह की ओर से दायर की गई है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील सुनील कुमार सिंह ने कोर्ट को बताया कि जगदीशपुर स्थित बाबू कुंवर सिंह के किला, म्यूजियम सहित उनसे जुड़ी कई चीजें रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो रही हैं, जबकि सरकार ने उनकी संपत्ति को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर रखा है।

    आगे प्रस्तुत किया कि बाबू कुंवर सिंह का स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में काफी बड़ा योगदान रहा है। उनकी गाथा आज भी गाई जाती है। उनसे जुड़ी धरोहर की देखभाल बहुत जरूरी है।

    अब, मामले पर अगली सुनवाई 29 अप्रैल को होगी।

    मामले में याचिकाकर्ता की ओर एडवोकेट सुनील कुमार सिंह और एडवोकेट अजय कुमार सिंह पेश हुए। प्रतिवादी की ओर से एएसजी के.एन. सिंह पेश हुए थे।

    कौन थे वीर कुंवर सिंह?

    वीर कुंवर सिंह मालवा के सुप्रसिद्ध शासक महाराजा भोज के वंशज थे। इनका जन्म नवम्बर 1777 में उज्जैनिया राजपूत घराने में बिहार राज्य के शाहाबाद (वर्तमान भोजपुर) जिले के जगदीशपुर में हुआ था। इन्हें बाबू कुंवर सिंह के नाम से भी जाना जाता है।

    इसके साथ ही कुंवर सिंह को भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक के रूप में जाना जाता है। वे 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने का साहस रखते थे।

    कुंवर सिंह के पास बड़ी जागीर थी। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गलत नीति अपनाकर उनकी जागीर छीन ली थी। कुंवर सिंह ने 80 साल के उम्र में भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। इस उम्र में भी उनमे अपूर्व साहस, बल और पराक्रम था।

    अंग्रेजों से युद्ध के दौरान 26 अप्रैल 1858 को उनकी मृत्यु हो गयी। 23 अप्रैल 1966 को भारत सरकार ने उनके नाम का मेमोरियल स्टैम्प भी जारी किया था।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:


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