पटना हाईकोर्ट ने बिहार नगर निकाय चुनावों में ओबीसी/ ईबीसी कोटे को अवैध करार दिया, चुनाव आयोग को ओबीसी/ईबीसी सीटों को सामान्य श्रेणी के रूप में अधिसूचित करने का निर्देश दिया

Avanish Pathak

6 Oct 2022 9:47 AM GMT

  • पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए सीटों का आरक्षण अवैध करार दिया।

    न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य LL 2021 SC 13 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समूहों के राजनीतिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए "तीन में से दो परीक्षणों" में आरक्षण देने की प्रक्रिया विफल हो चुकी है।

    इसके अलावा चीफ ज‌स्टिस संजय करोल और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने राज्य चुनाव आयोग को स्थानीय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया।

    अदालत के आदेश के अनुसार, राज्य चुनाव आयोग ने क्रमशः 10 और 20 अक्टूबर को होने वाले स्थानीय चुनावों के पहले और दूसरे चरण को स्थगित करने की अधिसूचना जारी की है।

    गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य चुनाव आयोग (एसईसी) की भी आलोचना की है और उसे बिहार सरकार के निर्देशों से बंधे होने के बजाय एक स्वायत्त और स्वतंत्र निकाय के रूप में अपने कामकाज की समीक्षा करने का निर्देश दिया है।

    उल्लेखनीय है कि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बिहार में आगामी नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण से संबंधित याचिका पर विचार करने के अनुरोध के कुछ दिनों बाद आया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट से विशेष रूप से यह देखने का अनुरोध किया था कि क्या विकास किशनराव गवली मामले में निर्धारित ट्र‌िपल टेस्ट लागू किया गया है और "नगर पालिकाओं" के चुनाव के संचालन में अनुपालन हो रहा है या नहीं?

    उल्लेखनीय है कि विकास किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से पहले एक ट्रिपल टेस्ट का पालन किया जाना है। ट्रिपल टेस्ट के अनुसार,

    (1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की समसामयिक कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना;

    (2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अधिकता का भ्रम न हो; और

    (3) अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में आरक्षित कुल सीटों के कुल 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।

    मामला

    एक अप्रैल, 2022 को बिहार सरकार ने राज्य चुनाव आयोग को एक पत्र भेजकर अवगत कराया कि कानून विभाग की सलाह के अनुसार राज्य में नगर निकायों के लिए चुनाव कार्यक्रम शुरू करने में कोई बाधा नहीं है।

    उसी के मद्देनजर, राज्य चुनाव आयोग को चुनाव प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा गया था। हालांकि आयोग ने सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए उपयुक्त प्रशासनिक और साथ ही विधायी तंत्र बनाने की आवश्यकता की याद दिलाई, सरकार ने सुझाए गए उपायों पर कार्रवाई नहीं की।

    इसी के बाद याचिकाकर्ताओं ने पटना हाईकोर्ट के समक्ष अप्रैल के पत्राचार को चुनौती दी, जिसमें राज्य सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों को विकास किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी ट्रिपल टेस्ट निर्देशों को लागू करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।

    "तीन में से दो परीक्षणों का अनुपालन नहीं किया गया"

    हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार ने निकाय चुनाव में आरक्षण के उद्देश्य से ईबीसी या ओबीसी श्रेणी के राजनीतिक पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थ की एक अनुभवजन्य जांच करने का कार्य एक समर्पित आयोग को नहीं सौंपा है, इस प्रकार कोर्ट ने माना कि सरकार ट्रिपल टेस्ट के पहले चरण का पालन करने में विफल रही।

    साथ ही कोर्ट ने माना कि सरकार "आयोग की सिफारिशों के आलोक में आवश्यक आरक्षण के अनुपात के विनिर्देश" के दूसरे परीक्षण के अनुपालन को स्थापित करने में विफल रही है।

    तीसरे परीक्षण के संबंध में, न्यायालय को ‌रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं मिली जो दर्शाती हो कि विभिन्न अधिसूचनाओं/परिपत्रों/आदेशों के माध्यम से आरक्षण प्रदान करने की आक्षेपित कार्रवाई सभी श्रेणियों/वर्गों/व्यक्तियों के लिए 50 प्रतिशत की संयुक्त ऊपरी सीमा से अधिक है।

    "चुनाव आयोग सरकार के अधीन नहीं"

    हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में, हालांकि राज्य चुनाव आयोग ने विभिन्न संचारों के माध्यम से सरकार को विकास किशनराव गवली मामले में निर्धारित ट्रिपल टेस्ट सहित विभिन्न मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करने के लिए सूचित किया था, हालांकि, सरकार की निष्क्रियता के बावजूद, एसईसी ने ओबीसी वर्ग को आरक्षण प्रदान करके चुनाव प्रक्रिया शुरू की।

    इस बात पर जोर देते हुए कि चुनाव आयोग सरकार के अधीन नहीं है, कोर्ट ने कहा कि एसईसी ने मौजूदा मामले में अपनी राय में संशोधन नहीं किया, सरकार के निर्देश पर कार्रवाई करने से पहले कोई कानूनी राय नहीं ली और यहां तक ​​कि किसी कानूनी उपाय का सहारा भी नहीं लिया।

    न्यायालय का आदेश/समापन टिप्पणी

    न्यायालय ने कहा कि बिहार राज्य ने ऐसी कोई प्रैक्टिस नहीं की, जिसके द्वारा सामाजिक-आर्थिक/शैक्षिक/सेवाओं के तहत आरक्षण प्रदान करने के लिए अपनाए गए मानदंडों को अत्यंत पिछड़े वर्गों सहित अन्य पिछड़े वर्गों के चुनावी प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अपनाया गया हो।

    इस प्रकार न्यायालय ने माना,

    -बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 (2007 की अधिनियम संख्या 11) के तहत शासित बिहार राज्य के सभी नगर निकायों के चुनाव के लिए ओबीसी/ईबीसी श्रेणी के लिए सीटों को आरक्षित करने में सरकार और चुनाव आयोग की कार्रवाई सुनील कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य' के कृष्ण मूर्ति और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया; विकास किशनराव गवली एलएल 2021 एससी 13; सुरेश महाजन बनाम मप्र राज्य 2022 लाइव लॉ (एससी) 463; राहुल रमेश वाघ बनाम महाराष्ट्र राज्य; मनमोहन नागर बनाम मध्य प्रदेश राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुरूप नहीं थी, इस प्रकार अवैध थी।

    -सचिव, राज्य चुनाव आयोग, ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीटों के रूप में मानते हुए चुनाव पुन: अधिसूचित करें।

    -बिहार राज्य स्थानीय निकायों, शहरी या ग्रामीण चुनावों में आरक्षण से संबंधित एक व्यापक कानून बनाने पर विचार कर सकता है, ताकि राज्य को उपर्युक्त मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों के अनुरूप लाया जा सके।

    केस टाइटल- सुनील कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य, साथ में जुड़ी हुई याचिकाएं

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