पटना हाईकोर्ट ने पुलिस थाना क्षेत्र से अवैध शराब बरामद होने पर एसएचओ को 'दोषी' मानने वाले पत्र पर पुनर्विचार करने के लिए डीजीपी को निर्देश दिया

Shahadat

11 May 2023 10:44 AM GMT

  • पटना हाईकोर्ट ने पुलिस थाना क्षेत्र से अवैध शराब बरामद होने पर एसएचओ को दोषी मानने वाले पत्र पर पुनर्विचार करने के लिए डीजीपी को निर्देश दिया

    पटना हाईकोर्ट ने बिहार के पुलिस जनरल डायरेक्टर (डीजीपी) को निर्देश दिया कि वे सभी सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर (एसएसपी) को संबोधित 24-11-2020 के पत्र पर पुनर्विचार करें, जिसके एक खंड में कहा गया कि अवैध शराब की बरामदगी के मामले में किसी क्षेत्र में संबंधित स्टेशन हाउस ऑफिसर (SHO) और चौकीदार को सूचना एकत्र नहीं करने और आवश्यक कार्रवाई करने के लिए 'दोषी माना जाएगा' और उनकी विफलता और निष्क्रियता के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

    जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि आरोप तय करने और स्वतंत्र जांच करने से पहले ही पत्र स्टेशन हाउस ऑफिसर और चौकीदार के दोष को मान लेता है और पहले ही जज कर लेता है।

    अदालत ने कहा,

    "...यह अदालत पुलिस जनरल डायरेक्टर, बिहार, पटना को पत्र नंबर 63 के पैरा '3' पर फिर से विचार करने का निर्देश देती है। दिनांक 24.11.2020 जो आरोप तय करने और स्वतंत्र जांच के संचालन से पहले ही स्टेशन हाउस अधिकारी और चौकीदार के खिलाफ अपराध को मान लेता है और पूर्व-न्याय कर देता है। इसे कानून की मंजूरी नहीं है।”

    अदालत ने आगे कहा कि पत्र में इस तरह की धारा आरोप तय करने से पहले ही अपराध का अनुमान लगाती है।

    अदालत ने कहा,

    "अपराध की इस तरह की धारणा को कानून की मंजूरी नहीं है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। यह कार्रवाई में निष्पक्षता के सिद्धांतों के विपरीत है।"

    मामले की पृष्ठभूमि

    अदालत याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जो 17.04.2020 से 30.11.2020 की अवधि के बीच कंकड़बाग पुलिस स्टेशन में पुलिस इंस्पेक्टर-सह-थाना प्रभारी के रूप में तैनात थे। दिनांक 25-11-2020 को इनके थाना क्षेत्र में छापेमारी कर 25 लीटर देशी शराब (महुआ) बरामद किया गया। अधिकारी को तुरंत निलंबित कर दिया गया और उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करने का निर्देश जारी किया गया। आदेश दिनांक 30.07.2021 द्वारा जांच अधिकारी द्वारा उन पर गैर-संचयी प्रभाव से एक वेतन वृद्धि रोकने का दंड अधिरोपित किया गया।

    याचिकाकर्ता ने एडीजीपी के समक्ष अपील की, जिसे खारिज कर दिया गया। अपील के लंबित रहने के दौरान डीजीपी के निर्देशन में डिप्टी डीजीपी ने पुलिस नियमावली के नियम 853ए के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए सजा आदेश दिनांक 30.07.2021 को रद्द कर दिया और सजा बढ़ा दी - जिससे उन्हें पांच साल के लिए सब-इंस्पेक्टर के पद और मूल वेतन पर बहाल कर दिया गया और आगे यह निर्देश दिया गया कि वह अपने निर्वाह भत्ते के अलावा कुछ भी पाने का हकदार नहीं होगा।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने बिहार के डिप्टी डीजीपी द्वारा जारी सजा बढ़ाने के आदेश और जांच अधिकारी के निष्कर्षों के खिलाफ उसकी अपील को खारिज करने वाले एडीजीपी के आदेश को चुनौती दी।

    प्रविष्टियों

    यह कहते हुए कि उसके खिलाफ आरोप साबित करने के लिए एक भी गवाह पेश नहीं किया गया, याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया 24-11-2020 के पत्र की वैधता को चुनौती दी और तर्क दिया कि यह अनुशासनात्मक प्राधिकरण के लिए कोई अन्य राय बनाने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ता है और शराब की बरामदगी के किसी भी मामले में संबंधित स्टेशन हाउस अधिकारी और चौकीदार के खिलाफ अपराध माना जाता है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। यह अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा स्वतंत्र और स्वतंत्र विचार-विमर्श पर प्रतिबंध लगाने के बराबर है।

    राज्य ने तर्क दिया कि सजा का आदेश कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के आधार पर पारित किया गया। इसलिए यह अदालत के हस्तक्षेप के लायक नहीं है।

    विश्लेषण

    जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने खुद को पत्र नंबर 63 के माध्यम से जारी निर्देश के कारण बहुत मुश्किल स्थिति में पाया। दिनांक 24.11.2020 के पैरा 3 में स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया कि किसी भी थाना क्षेत्र से अवैध शराब की बरामदगी की स्थिति में संबंधित थाना प्रभारी को दोषी माना जाएगा।

    अदालत ने कहा,

    "जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध को समाप्त करने के लिए अपनी जांच रिपोर्ट में उक्त पैराग्राफ का उल्लेख किया है।"

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप तय करने में अंतर्निहित दोष है, अदालत ने डीजीपी के पत्र का हवाला दिया और कहा,

    "इसकी कोई वैधानिक मंजूरी नहीं है। पुलिस जनरल डायरेक्टर द्वारा एसएसपी को यह निर्देश जारी करने के बाद एसएसपी/एसपी याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है या उसके खिलाफ आरोप तय किए जा सकते हैं या नहीं, इस बारे में अपना स्वतंत्र दिमाग लगाने का कोई अवसर नहीं है। थाने के ऊपर से यह निर्देश आ रहा है कि कंकरबाग थाना क्षेत्र से 25 लीटर अवैध शराब की बरामदगी मात्र से उक्त थाने के प्रभारी को दोषी करार दिया जा सकता है।''

    अदालत ने यह भी कहा कि यह कहने के लिए एक भी गवाह नहीं है कि कैसे यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता ने लापरवाही से काम किया और कंकरबाग क्षेत्र में सूचना एकत्र करने और निषेध कानूनों के कार्यान्वयन में विफल रहने के कारण भट्टी या कारखाने का अवैध संचालन या शराब की अवैध बिक्री हुई है।

    पीठ ने कहा,

    "याचिकाकर्ता की सेवा की अवधि के दौरान एक ही क्षेत्र से बार-बार वसूली की गई, यह प्रदर्शित करने के लिए जांच के दौरान एक भी उदाहरण का हवाला नहीं दिया गया।"

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोप तय करने के चरण से लेकर पूरी अनुशासनात्मक कार्यवाही को दूषित किया गया। इसलिए इसे अलग रखा जा सकता है। इसमें कहा गया कि अनुशासनात्मक प्राधिकार ने याचिकाकर्ता को कारण बताने का कोई अवसर दिए बिना केवल जांच अधिकारी की राय को माना है।

    अदालत ने कहा,

    "इस अदालत की राय में अनुशासनात्मक प्राधिकरण की यह कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पूर्ण उल्लंघन है। इसने याचिकाकर्ता के मामले को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।"

    याचिका की अनुमति देते हुए अदालत ने कहा,

    "यह अदालत तदनुसार, विवादित आदेशों को अलग करती है... याचिकाकर्ता सभी परिणामी राहतों का हकदार होगा। पुलिस जनरल डायरेक्टर, बिहार, पटना इस आदेश की प्रति प्राप्त/प्रस्तुत करने की तिथि से 30 दिनों की अवधि के भीतर आवश्यक परिणामी आदेश जारी करेंगे।"

    केस टाइटल: अजय कुमार बनाम बिहार राज्य व अन्य। सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस संख्या 737/2023

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