पॉक्सो कोर्ट पर क्यों भड़का पटना हाईकोर्ट

Brij Nandan

6 April 2023 7:11 AM GMT

  • पॉक्सो कोर्ट पर क्यों भड़का पटना हाईकोर्ट

    पॉक्सो। यानी Protection of Children Against Sexual Offence। हिंदी में कहें तो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम. इससे जुड़े एक केस में पटना हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट को फटकार लगाई। स्पेशल कोर्ट के फैसले को भी रद्द कर दिया। दरअसल, स्पेशल कोर्ट ने आठ साल की बच्ची से रेप के मामले का ट्रायल एक ही दिन में पूरी कर लिया और उसी दिन उम्रकैद की सजा भी सुना दी थी।

    जस्टिस एएम बदर और जस्टिस संदीप कुमार की डिवीजन बेंच ने मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा- जिस तरह से एक दिन में सारा ट्रायल पूरा कर सजा सुना दी गई वो वाकई में हैरत में डालने वाला है। नेचुरल जस्टिस के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

    कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को रद्द कर रेप के आरोपी के पक्ष में आदेश जारी किया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आठ साल की बच्ची से रेप के मामले में फिर से ट्रायल कर उचित तरीके से सुनवाई की जाए।

    पहले पूरे केस को समझ लीजिए। फिर कोर्ट ने जो कहा उस पर आएंगे।

    केस के मुताबिक आरोपी एक बच्ची को बहला फुसला कर अपने साथ ले गया। बच्ची की उम्र आठ साल। उसने बच्ची का रेप किया। इसके बाद वो मौके से भाग गया। बच्ची घर पहुंची। अपनी मां को घटना के बारे में बताया। बच्ची को मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा गया। माता-पिता ने उसी दिन आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 376 AB यानी 12 साल की उम्र से कम की बच्ची से रेप और पोक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत शिकायत दर्ज कराई। जांच के दौरान आरोपी गिरफ्तार कर लिया गया। चार्जशीट दायर की गई। उसके बाद एक स्पेशल पॉक्सो एक्ट के तहत केस तैयार हुआ। स्पेशल कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और फिर उसी दिन आरोप तय कर दिए। मामले में सबसे खास बात ये है कि जिस दिन आरोप तय किया गया था, उसी दिन आरोपी को पुलिस के कागजात दिए गए थे। उसी दिन सुनवाई पूरी हो गई। कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराया। उम्रकैद की सजा भी सुना दी।

    निजली अदालत के आदेश के खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत की तेजी को देखकर हमें धक्का लगा। रेप जैसे संगीन मामले में स्पेशल जज ने जिस तरह से जल्दबाजी दिखाकर ट्रायल एक दिन में पूरा करके सजा सुना दी वो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 की भावना के अनुरूप नहीं है।

    ट्रायल कोर्ट को ये देखना चाहिए था कि मामले के हर पहलू पर बारीकी से बहस की जाए। ट्रायल में इस तरह की जल्दबाजी कानून के राज पर एक धब्बा है।

    हाईकोर्ट ने इस बात पर भी हैरत जताई कि पुलिस के कागजात आरोपी को उसी दिन मुहैया कराए गए थे जिस दिन आरोप तय किए गए थे।

    बेंच ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को भी कुछ अधिकार मिले हैं। स्पेशल कोर्ट को इसका ख्याल रखना चाहिए था। उसे मामले की गंभीरता को देखना चाहिए था। इस पर भी ध्यान देना चाहिए था कि निष्पक्ष सुनवाई हो। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। रेप जैसे मामले में एक दिन में ट्रायल पूरा नहीं किया जा सकता।

    हाईकोर्ट ने आखिरी में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए और सजा सुनाते समय कानून की उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया।



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