पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट यदि मजिस्ट्रेट की स्वीकृति के लिए लंबित है, तो पासपोर्ट जारी करने से इनकार किया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
22 Nov 2022 10:08 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही न्यायाधिकार क्षेत्र वाले कोर्ट के समक्ष पुलिस की ओर से बी रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट) दाखिल कर दी गयी हो, लेकिन उसे स्वीकार किया जाना बाकी है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि आरोपी मामले में बरी हो गया है और ऐसी स्थिति में पासपोर्ट अधिकारियों के पास पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज जारी करने से मना करने का अधिकार होगा।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल बेंच ने कहा,
"(पासपोर्ट) एक्ट की धारा 6(2)(एफ) की कठोरता केवल तभी समाप्त होती है जब आपराधिक कार्यवाही या प्राथमिकी का सामना कर रहे आवेदक को बरी कर दिया जाता है, आरोप मुक्त कर दिया जाता है या उक्त आवेदक के खिलाफ कार्यवाही एक सक्षम कोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए रद्द कर दी जाती है। केवल 'बी' रिपोर्ट दाखिल करने का मतलब यह नहीं होगा कि याचिकाकर्ता पासपोर्ट एक्ट की धारा 6(2)(एफ) के अनुसार आरोप मुक्त हो गया है।"
याचिकाकर्ता पर आईपीसी की धारा 34 के साथ पठित धाराओं 403, 406, 417, 120बी, 380 और के तहत मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, जांच के बाद पुलिस ने एक 'बी' रिपोर्ट दायर की थी, जो मजिस्ट्रेट के पास विचाराधीन है। इस बीच, पासपोर्ट प्राधिकरण ने एक पत्र जारी कर याचिकाकर्ता को पासपोर्ट सरेंडर करने का निर्देश दिया। इसी पत्राचार को इस याचिका में चुनौती दी गई थी।
निष्कर्ष:
शुरुआत में, बेंच ने कहा कि 'बी' रिपोर्ट पर अभी मजिस्ट्रेट द्वारा विचार किया जाना बाकी है और महज 'बी' रिपोर्ट दाखिल करने से याचिकाकर्ता अपराध मुक्त नहीं हो जाएगा।
इसने कहा,
"पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) [जो पासपोर्ट, यात्रा दस्तावेजों, आदि से इनकार करने पर विचार करता है] में यह अनिवार्य है कि यदि भारत के क्रिमिनल कोर्ट के समक्ष आवेदक के कथित अपराध के संबंध में कार्यवाही लंबित है, पासपोर्ट अथॉरिटी को किसी भी दूसरे देश का दौरा करने के लिए पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज जारी करने से इनकार करने का अधिकार होगा। इसलिए, पासपोर्ट (पहली बार) जारी करना या फिर से जारी करना अधिनियम की धारा 6(2)(एफ) के अधीन है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित होने के बावजूद फिर से पासपोर्ट जारी करने के लिए आवेदन किया था, और यह नियमित पुलिस सत्यापन के दौरान ही पासपोर्ट अधिकारियों को पता चला कि याचिकाकर्ता ने अपराध के लंबित होने के तथ्य को छुपाया था।
इस प्रकार, यह व्यवस्था दी गयी कि याचिकाकर्ता ने पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज प्राप्त करने की दृष्टि से तथ्यों को छुपाया था, जो पासपोर्ट एक्ट की धारा 12 के तहत दंडनीय है।
"धारा 12 अपराधों और जुर्माने से संबंधित है। एक्ट की धारा 12(1)(बी) किसी भी व्यक्ति को दंडित रखने का प्रावधान करती है, जो जानबूझकर गलत जानकारी प्रस्तुत करता है या किसी जानकारी को छुपाता है। ... यह याचिकाकर्ता को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराने वाला होगा, क्योंकि 'अन्य विवरण' से संबंधित आवेदन का खंड 7 इस तरह के प्रकटीकरण को अनिवार्य करता है। अधिनियम की धारा 12(1)(बी) के तहत पहले प्रतिवादी द्वारा नोटिस जारी करने में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है, जिसमें उस पासपोर्ट को वापस करने का निर्देश दिया गया है, जिसे अपराध में शामिल होने की बात छुपाकर प्राप्त किया गया था और साथ ही पासपोर्ट अधिकारी द्वारा सभी विवरणों का खुलासा करते हुए नए सिरे से आवेदन जमा करने का निर्देश दिया गया हो।"
कोर्ट ने हालांकि याचिकाकर्ता को अधिकारियों के समक्ष एक नया आवेदन प्रस्तुत करने और विदेश यात्रा के लिए निर्देश की मांग करते हुए उस कोर्ट से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी, जहां कार्यवाही विचाराधीन है।
केस टाइटल: काजल नरेश कुमार बनाम भारत सरकार और अन्य
केस नंबर: रिट याचिका संख्या 20850/2022
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (कर्नाटक) 468
आदेश की तिथि: 16 नवंबर, 2022
पेशी: मोहन बी.के., (याचिकाकर्ता के वकील); शांति भूषण एच., डिप्टी सॉलिसिटर जनरल (आर1 और आर2 के लिए); एम. विनोद कुमार, एजीए (आर 3 के लिए)
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