पैरोल एक सुधारात्मक प्रक्रिया है, केवल फरार होने की आशंका पर पैरोल से इनकार नहीं किया जा सकता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
7 Sept 2020 6:16 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि पैरोल एक ''सुधारात्मक प्रक्रिया'' है और किसी दोषी को केवल इस आशंका के आधार पर पैरोल देने से मना नहीं किया जा सकता है कि वह फरार हो जाएगा या आगे फिर अपराध करेगा।
न्यायमूर्ति जीएस संधवालिया की पीठ ने कहा कि,
''यह विवादित नहीं है कि रिहाई का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कैदी अपने परिवार के सदस्यों और आम जनता के साथ मिल सकें। यह एक सुधारकारी प्रक्रिया है, जिसके तहत एक अपराधी का सामान्य जीवन से पुन-मिलान करवाया जाता है। इस प्रकार, एक आवेदक को उक्त लाभ देने से मना करना ... कानून की निर्धारित स्थिति के बावजूद, तर्कहीनता और विकृति के दायरे के भीतर आ जाएगा।''
न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि पंजाब गुड कंडक्ट प्रिजनर्स (टेम्परेरी रिलीज) रूल्स, 1963 के रूल 3 (2) के तहत एक कैदी को पैरोल पर रिहा करने से केवल तभी मना किया जा सकता है, जब उसकी रिहाई ''राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालती हो'' या ''सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए खतरा हो।''
यह माना गया है कि पैरोल पर रिहा होने के बाद 'अपराध करने की संभावना' के आधार पर केवल इस अस्थायी रिहाई को अस्वीकार करना पर्याप्त नहीं होगा।
पीठ ने कहा कि
''केवल अपराध करने की संभावना को ही राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए खतरे की आशंका के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।''
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शब्द 'राज्य की सुरक्षा' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' के रखरखाव का उद्देश्य गंभीर सार्वजनिक अव्यवस्था को रोकना है, जो कानून और व्यवस्था के रखरखाव के समान नहीं है और इनमें अंतर करना पड़ता है। शांति भंग करने के प्रत्येक प्रयास से सार्वजनिक अव्यवस्था नहीं होती है। यह एक ऐसा कार्य है,जो बड़े स्तर पर जनता के जीवन की गति को बाधित करता है व सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव को प्रभावित करता है।''
पीठ ने 'बंसी लाल बनाम पंजाब राज्य, 2016 (4) आरसीआर (आपराधिक) 1017' मामले में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया।
उपायुक्त-सह-जिला मजिस्ट्रेट, कपूरथला के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई एक आपराधिक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की गई हैं। इस आदेश के तहत याचिकाकर्ता को छह सप्ताह की अवधि के लिए पैरोल देने से मना कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता को एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और सजा सुनाई गई थी। उसने अपने परिवार से मिलने और अपनी बीमार पत्नी का इलाज करवाने के लिए पैरोल पर रिहा किए जाने की मांग की थी।
इस अनुरोध को मजिस्ट्रेट ने अस्वीकार कर दिया था। अपने आदेश में मजिस्ट्रेट ने यह आशंका जताई थी कि याचिकाकर्ता नशे की बिक्री के कारोबार का फिर से सहारा ले सकता है क्योंकि उसके खिलाफ एनडीपीएस अधिनियम के तहत समान प्रकृति के 4 और मामले लंबित हैं।
इस रुख से असहमत होते हुए, न्यायालय ने माना कि किसी कैदी को पैरोल या फरलो पर रिहा करने की वैधानिक शक्ति का उपयोग उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। जिसका उपयोग विधायिका की मंशा और कैदी को पैरोल या फर्लो देने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
यह भी देखा गया कि नियम 3 (2) के अनुसार, ''यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता का मामला उन दो अपवादों के तहत नहीं आता है, जिनमें राज्य की सुरक्षा को खतरा हो या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण हो।''
मामले का विवरण-
केस शीर्षक-मंगा बनाम पंजाब राज्य व अन्य।
केस नंबर-सीआरडब्ल्यूपी नंबर 4593/2020
कोरम- न्यायमूर्ति जीएस संधवालिया
प्रतिनिधित्व-एडवोकेट प्रतीक पंडित (याचिकाकर्ता के लिए),एडीशनल एजी हितेन नेहरा (राज्य के लिए)
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