उड़ीसा हाईकोर्ट ने तहसीलदार को भारत-पाक वार-विडो को आवंटित भूमि के रिकॉर्ड जारी करने में ‘लापरवाही’ बरतने पर फटकार लगाई

Manisha Khatri

22 Feb 2023 12:00 PM IST

  • उड़ीसा हाईकोर्ट ने तहसीलदार को भारत-पाक वार-विडो को आवंटित भूमि के रिकॉर्ड जारी करने में ‘लापरवाही’ बरतने पर फटकार लगाई

    Orissa High Court 

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने गंजाम जिले में स्थित छत्रपुर के तहसीलदार को ‘‘लापरवाहपूर्ण रवैया’’ अपनाने और भूमि के रिकॉर्ड को फिर से जारी करने के लिए एक अस्सी वर्षीय भारत-पाक युद्ध-विधवा (वार-विडो) के आवेदन पर विचार करने में बरती गई निष्क्रियता के लिए कड़ी फटकार लगाई है,जो बुजुर्ग ने 1999 के सुपर-चक्रवात के कारण खो दिए थे।

    जस्टिस विश्वनाथ रथ की सिंगल बेंच ने कहा,

    ‘‘... इस अदालत ने तहसीलदार, छत्रपुर द्वारा ऐसे गंभीर मुद्दे पर दो महीने से अधिक की निष्क्रियता बरतने के कारण अपनी चिंता व्यक्त करने के लिए इसे एक उपयुक्त मामला पाया है क्योंकि तहसीलदार इस बात की सराहना करने में विफल रहा है कि उसके सामने रखा गया यह कोई सामान्य मामला नहीं है और मामले में एक वार-विडो शामिल है, जिसके पति ने राष्ट्र के लिए अपना जीवन खो दिया है,इसलिए ऐसे मुद्दों पर शीघ्र ध्यान देने का अनुरोध किया जा रहा है।’’

    मामले के तथ्य

    याचिकाकर्ता के पति स्वर्गीय लांस नायक एम. चिन्या 1971 के भारत-पाक युद्ध में भाग लेने के दौरान मारे गए थे,वह अपनी विधवा और दो नाबालिग बच्चों को अपने पीछे छोड़कर गए थे। याचिकाकर्ता को युद्ध-विधवाओं (वार-विडो)के लिए प्रचलित योजना के अनुसार सरकार द्वारा भूमि का एक टुकड़ा आवंटित किया गया था।

    भूमि के लिए उसके पक्ष में दिया गया पट्टा महाचक्रवात में नष्ट हो गया। इसलिए, उसने बार-बार तहसीलदार, छत्रपुर से संपर्क किया और उसके बाद 11.11.2022 को जिला कलेक्टर, गंजाम को एक अभ्यावेदन दिया। हालांकि उसे अधिकारियों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस प्रकार, उसने उचित दिशा-निर्देशों की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    पक्षकारों की दलीलें

    याचिकाकर्ता के वकील जे.के.नाइक ने कहा कि याचिकाकर्ता की स्थिति को देखते हुए शुरुआती कदम उठाए जाने चाहिए। उन्होंने इस बात पर रोष व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता को जिला कलेक्टर सहित संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण आवश्यक निर्देशों के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

    राज्य के लिए अतिरिक्त स्थायी वकील यू.के. साहू ने भी सहमति व्यक्त की और कहा कि एक बार तहसीलदार को विस्तृत प्रतिनिधित्व दिए जाने के बाद वह एक निर्णय पर पहुंचने के लिए बाध्य था। उन्होंने इस तर्क को स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता की वार-विडो होने की स्थिति को देखते हुए अधिकारियों को उसके मामले पर तुरंत ध्यान देना चाहिए था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरुआत में तहसीलदार की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने उन्हें आवश्यक कार्रवाई तुरंत करने और यदि आवश्यक हो तो आधिकारिक रिकॉर्ड से याचिकाकर्ता को भूमि आवंटन के आदेश का पता लगाने का निर्देश दिया है।

    “...आगे अगर वार-विडो की भागीदारी आवश्यक है, तो तहसीलदार सभी प्रकार के समाधान खोजने के लिए उसे अपने कार्यालय में आने के लिए परेशान करने के बजाय स्वयं वार-विडो के निवास पर जा सकते हैं, जो पहले ही 80 वर्ष की आयु की हो चुकी है।’’

    न्यायालय ने तहसीलदार को पंद्रह दिनों की अवधि के भीतर रिकॉर्ड की खोज को पूरा करने का निर्देश दिया है और यह भी स्पष्ट किया कि यदि प्राधिकरण याचिकाकर्ता को भूमि के आवंटन का सुझाव देने वाली सामग्री का पता लगाने में विफल रहता है, तो भूमि पर अधिकार के संबंध में निर्णय लिया जाए और डेढ़ महीने के भीतर इस आशय के संबंध में अधिकारों का रिकॉर्ड तैयार किया जाए।

    अदालत ने कहा,‘‘चूंकि याचिकाकर्ता ने कई दशकों से इस विशेष संपत्ति के कब्जे का दावा किया है, अगर याचिकाकर्ता के पक्ष में आवंटन की पुष्टि करने वाली कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है, तो उसके कब्जे की भूमि का फैसला करने का निर्णय होना चाहिए और तदनुसार अधिकारों का रिकॉर्ड तैयार किया जाना चाहिए।’’

    मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने जिला कलेक्टर को मामले की निगरानी करने और दो महीने के भीतर अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

    केस टाइटल- एम. राजम्मा बनाम उड़ीसा राज्य व अन्य

    केस नंबर- डब्ल्यू.पी. (सी) संख्या- 2690/2023

    याचिकाकर्ता के वकील- श्री जे.के. नाइक और श्री ए.के. साहू, एडवोकेट

    प्रतिवादियों के वकील- श्री यू.के. साहू, अतिरिक्त स्थायी वकील

    साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (ओआरआई) 23

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