(पाॅक्सो एक्ट के तहत अपराध) सत्र न्यायालय अग्रिम जमानत पर विचार नहीं कर सकता; केवल विशेष POCSO कोर्ट ही ऐसा करने के लिए सशक्त हैंः मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

6 Oct 2020 6:58 AM GMT

  • (पाॅक्सो एक्ट के तहत अपराध) सत्र न्यायालय अग्रिम जमानत पर विचार नहीं कर सकता; केवल विशेष POCSO कोर्ट ही ऐसा करने के लिए सशक्त हैंः मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट (मदुरई बेंच) ने बुधवार (30 सितंबर) को कहा कि केवल प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रम सैक्सुअल एक्ट 2012 (पाॅक्सो एक्ट) के तहत गठित विशेष अदालतें ही अग्रिम जमानत याचिकाओं (पाॅक्सो एक्ट के तहत किए गए अपराधों के संबंध में) पर विचार करने के सशक्त हैं।

    जस्टिस एम सत्यनारायणन और जस्टिस वी भारतीदासन की खंडपीठ ने आगे कहा कि सत्र न्यायालय इस तरह के आवेदनों पर विचार नहीं कर सकती है।

    यह ध्यान देने वाली बात है कि मद्रास हाईकोर्ट (मदुरई बेंच) के सामने यह मामला जिला न्यायाधीश,करूर द्वारा आपराधिक न्याय प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 395 के तहत मांगे गए संदर्भ को तय करने के लिए रखा गया था,जिसमें पाॅक्सो एक्ट 2012 के प्रावधानों के तहत किए गए अपराधों के मामले में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर अग्रिम जमानत अर्जियों के संबंध में जिला और सत्र न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बारे में तय किया जाना था।

    पृष्ठभूमि

    इस मामले में पाॅक्सो एक्ट के तहत गठित विशेष कोर्ट,करूर के समक्ष सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक अग्रिम जमानत अर्जी दायर की गई थी। परंतु विशेष कोर्ट से इस अर्जी को यह कहते हुए लौटा दिया था कि उसके पास अग्रिम जमानत के आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह अर्जी पाॅक्सो एक्ट की धारा 5 (i) व 6 और बाल विवाह अधिनियम 2006 की धारा 9 व 10 के तहत दंडनीय अपराधों के संबंध में दायर की गई थी।

    तत्पश्चात, सत्र न्यायालय के समक्ष आवेदन दायर किया गया था, परंतु लोक अभियोजक ने यह कहते हुए उस आवेदन का विरोध किया कि यह अग्रिम जमानत अर्जी सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई योग्य नहीं है, केवल विशेष न्यायालय के पास ही इस पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है।

    उपरोक्त परिस्थितियों में, सत्र न्यायाधीश ने अग्रिम जमानत की अर्जी को सीआरपीसी की धारा 395 के तहत हाईकोर्ट के पास भेज दिया, ताकि यह सवाल तय किया जा सके कि क्या जिला और सत्र न्यायालय के पास पाॅक्सो एक्ट के तहत किए गए अपराधों के संबंध में दायर अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है या नहीं?

    यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि हाईकोर्ट के साथ परामर्श करने के बाद राज्य सरकार के गृह (Courts-II) विभाग ने दिनांक 4 दिसम्बर 2013 को जारी जी.ओ.एमएस नंबर 1087 के तहत फास्ट ट्रैक महिला न्यायालयों को पाॅक्सो एक्ट के तहत विशेष न्यायालयों के रूप में नामित किया था और फास्ट ट्रैक महिला न्यायालयों की अध्यक्षता करने वाले अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पाॅक्सो अधिनियम के तहत विशेष न्यायालयों में कार्य कर रहे हैं।

    कोर्ट के समक्ष आया पहला सवाल

    जैसा कि हम जानते हैं, सीआरपीसी की धारा 438, गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से संबंधित है और हाईकोर्ट व सत्र न्यायालयों के पास ऐसी गिरफ्तारी पूर्व जमानत या अग्रिम जमानत देने का अधिकार है।

    अब, विशेष न्यायालयों के गठन के बाद, एक संदेह पैदा हुआ कि क्या विशेष न्यायालय के पास सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर आवेदन से निपटने का अधिकार क्षेत्र है या नहीं? और क्या अब सत्र न्यायालय ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं कर सकती है?

    पाॅक्सो अधिनियम की धारा 28,31 व 33 व सीआरपीसी का सह-संबंध या परस्पर संबंध

    पाॅक्सो अधिनियम की धारा 28 (1) को सरसरी तौर पर पढ़ने से पता चलता है कि प्रत्येक जिले में बनाए गए सत्र न्यायालयों को ही पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराधों के मामलों पर सुनवाई करने के लिए विशेष न्यायालय के रूप में नामित किया जा सकता है।

    वहीं, एक अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सत्र न्यायालय में क्षेत्राधिकार का उपयोग करते हुए, विशेष अदालत की अध्यक्षता कर सकता है।

    इसके अलावा, पाॅक्सो अधिनियम की धारा 33 (1) के तहत, एक विशेष अदालत किसी भी अपराध का संज्ञान ले सकती है, इस तरह के अपराध का गठन करने वाले तथ्यों की शिकायत प्राप्त होने पर, या ऐसे तथ्यों के संबंध पुलिस की तरफ से दायर रिपोर्ट पर।

    पाॅक्सो अधिनियम की धारा 33 (9) के तहत, एक विशेष कोर्ट के पास सत्र न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी और ऐसे अपराधों पर सत्र न्यायालय की तरह सुनवाई कर सकती है और इसी तरह सत्र न्यायालय के समक्ष मुकदमे की सुनवाई के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के तहत निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार भी सुनवाई की जा सकती है।

    ऐसी परिस्थितियों में विशेष न्यायालय को मूल अधिकार क्षेत्र के न्यायालय के रूप में माना जाना चाहिए और इनको वह सारी शक्तियां उपलब्ध है,जो आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत मूल आपराधिक अधिकार क्षेत्र के न्यायालय को मिली हुई हैं, सिवाय उनके जो संबंधित अधिनियम के तहत विशेष रूप से बाहर रखी गई हैं।

    इसके अलावा, पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31, यह बिल्कुल स्पष्ट करती है कि एक विशेष न्यायालय के समक्ष चल रही कार्यवाही पर जमानत और बांड के प्रावधानों सहित दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान ही लागू होंगे और इन प्रावधानों के संबंध में विशेष न्यायालय को सत्र न्यायालय के समान ही माना जाएगा, और विशेष अदालत के समक्ष अभियोजन का संचालन करने वाले व्यक्ति को लोक अभियोजक माना जाएगा।

    इस प्रकार पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31 स्पष्ट रूप से, विशेष अदालत के समक्ष चल रही कार्यवाही पर लागू होने वाले जमानत और बांड के प्रावधान के बारे में बताती है।

    कोर्ट का विश्लेषण

    न्यायालय का मत था कि सीआरपीसी का पूरा अध्याय XXXIII, जो जमानत और बांड से संबंधित है, विशेष अदालत के समक्ष चलने वाली कार्यवाही पर लागू होता है। ऐसे में इस बात से साफ है कि सीआरपीसी की धारा 438, जो अग्रिम जमानत के मामलों से संबंधित है, विशेष अदालत पर भी लागू होती है।

    हालाँकि, न्यायालय ने उल्लेख किया, पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31 के शुरूआत में कहा गया है कि "Save as otherwise provided in this Act"। परंतु पाॅक्सो अधिनियम को सावधानीपूर्वक पढ़ने के बाद यह पता चल जाएगा कि पाॅक्सो अधिनियम के तहत कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जो विशेष रूप से,स्पेशल कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 438 को बाहर रखते हों।

    इसलिए, न्यायालय ने कहा कि पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31 से यह एकदम स्पष्ट व जाहिर होता है कि सीआरपीसी की धारा 438 के प्रावधान विशेष न्यायालय पर पूरी तरह लागू होते हैं।

    उपरोक्त विचार-विमर्श के मद्देनजर, न्यायालय ने कहा कि,

    ''यह स्पष्ट है कि पाॅक्सो अधिनियम के तहत नामित विशेष न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर आवेदनों से निपटने के लिए सशक्त बनाया गया है, और सत्र न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर आवेदनों पर विचार करने से बाहर रखा गया है या सत्र न्यायालय ऐसे आवेदनों पर विचार नहीं कर सकती हैं।''

    इस तरह कोर्ट ने पहले प्रश्न का अंतिम उत्तर दिया और कहा कि-

    '' पाॅक्सो अधिनियम की धारा 31 के मद्देनजर,पाॅक्सो अधिनियम की धारा 28 के तहत बनाए गए विशेष न्यायालय को ही अकेले यह अधिकार दिया गया है कि वह सीआरपीसी की धारा 438 के तहत मिली शक्ति का उपयोग कर सकें। वहीं सत्र न्यायालय पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराध के संबंध में दायर अग्रिम जमानत आवेदन पर विचार नहीं कर सकती हैं।''

    कोर्ट के सामने दूसरा सवाल

    क्या गिरफ्तारी की आशंका पर,विशेष न्यायालय पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराधों से संबंधित अग्रिम जमानत आवेदन से निपटने के लिए सशक्त है, भले ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न की गई हो, या फिर संबंधित न्यायालय के समक्ष शिकायत दर्ज कराने पर?

    कोर्ट का विश्लेषण

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पाॅक्सो अधिनियम के तहत अपराधों से निपटने के लिए विशेष न्यायालय को विशेष रूप से सशक्त बनाया गया है और इस प्रकार, सीआरपीसी की धारा 6 के तहत गठित सामान्य आपराधिक न्यायालयों को पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराधों से निपटने से बाहर रखा गया है या वह इन अपराधों के मामले में सुनवाई नहीं कर सकते हैं।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि,

    ''जब एक स्पेशल कोर्ट पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराधों से निपटने के लिए विशेष क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है, तो इस कोर्ट के पास प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से पहले भी ,सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर आवेदन से निपटने की शक्ति है।''

    न्यायालय का विचार था कि प्राथमिकी दर्ज होने से पहले भी, विशेष न्यायालय अकेले पाॅक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराध के संबंध में सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आवेदन से निपटने की शक्ति रखता है।

    इसप्रकार, कोर्ट के दूसरे प्रश्न का अंतिम उत्तर दिया कि-

    '' जब किसी मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने से पहले ही अग्रिम जमानत की मांग जाती है, तो केवल पाॅक्सो अधिनियम के तहत निर्दिष्ट विशेष न्यायालय ही ऐेसे आवेदन पर विचार कर सकता है और नियमित सत्र न्यायालय सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता है।''

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