"केवल नग्नता अपने आप में अश्लीलता नहीं" : अर्धनग्न शरीर पर बच्चों को पेंटिंग करते दिखाने के वीडियो के मामले में ज़मानत के लिए रेहाना फातिमा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

LiveLaw News Network

27 July 2020 3:06 PM GMT

  • केवल नग्नता अपने आप में अश्लीलता नहीं : अर्धनग्न शरीर पर बच्चों को पेंटिंग करते दिखाने के वीडियो के मामले में ज़मानत के लिए रेहाना फातिमा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

    केरल की विवादास्पद कार्यकर्ता रेहाना फ़ातिमा, जिन पर अपने अर्ध-नग्न शरीर पर अपने बच्चों को पेंटिंग दिखाते हुए एक वीडियो पर मामला दर्ज किया गया, उन्होंने केरल हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। केरल हाईकोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था।

    रेहाना फ़ातिमा की इस दलील को हाईकोर्ट ने नामंज़ूर कर दिया था कि यौन शिक्षा देने के लिए उन्होंने उस वीडियो को प्रकाशित किया जिसमें उनके बच्चे को उनके नग्न शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है। कोर्ट ने रेहाना को इस आधार पर अग्रिम ज़मानत देने से मना कर दिया

    केरल हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि वह अपने 14 साल के बेटे और 8 साल की बेटी को जिस तरह से चाहें अपने घर के अंदर यौन शिक्षा देने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन इस बारे में कोई वीडियो जारी करना, जिसमें उनके बच्चे को उनके शरीर पर पेंटिंग करते दिखाया गया है, प्रथम दृष्टया बच्चों को अश्लील तरीक़े से पेश करने का अपराध है।

    फ़ातिमा के वीडियो से काफ़ी हंगामा मचा था और इस बारे में दो एफआईआर दर्ज कराई गई हैं। उन पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 की धारा 13, 14 और 15, सूचना तकनीक अधिनियम, 2000 की धारा 67B(d) और जुवेनाइल जस्टिस (देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 की धारा 75 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।

    रेहाना फ़ातिमा ने अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया था और अपनी दलील में कहा कि उसका उद्देश्य बच्चों को शरीर और उसके विभिन्न अंगों के बारे में बताना था, ताकि वे शरीर को एक अलग नज़रिए से देखें न कि सिर्फ़ यौन उपकरण के रूप में।

    उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाते हुए रेहाना ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी याचिका में तर्क दिया कि सिर्फ नग्नता को अपने आप में अश्लीलता नहीं माना जा सकता। इस संबंध में अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि केवल सेक्स से संबंधित सामग्री "उत्तेजक वासनापूर्ण विचार" को ही अश्लील माना जा सकता है।

    उन्होंने कहा कि वीडियो "अपने बच्चों के लिए शरीर के महिला रूप को सामान्य बनाने और उनके दिमाग में व्याप्त विकृत विचारों को न आने देने" के लिए एक संदेश फैलाने के इरादे से बनाया और अपलोड किया गया था।

    याचिका में कहा गया है कि

    "याचिकाकर्ता ने अर्ध-नग्न होते हुए अपने शरीर को अपने बच्चों को एक कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी और एक विकृत मानसिकता के अलावा शायद ही और कोई व्यक्ति हो जो, जिसमें इस प्रकृति की कला को देखकर कामुक इच्छा से जागे।"

    हाईकोर्ट द्वारा POCSO की धारा 13 के आह्वान को चुनौती देते हुए याचिका में कहा गया है:

    "इस मामले में किसी भी बच्चे का कोई अभद्र या अश्लील प्रतिनिधित्व नहीं किया गया है - वास्तव में, वे केवल एक बेतरतीब तरीके से पेंट कर रहे हैं क्योंकि बच्चे ऐसा करने के लिए अभ्यस्त हैं। इसलिए यह निष्कर्ष निकालना असंभव है कि यह किसी भी बच्चे का यौन संतुष्टि के लिए उपयोग किया गया था।"

    रेहाना फातिमा के बच्चों की विशेषता वाला वीडियो - 14 साल की उम्र का एक लड़का और 8 साल की एक लड़की - ने व्यापक रूप से आक्रोश पैदा किया था, जिसके कारण बच्चों के अश्लील प्रतिनिधित्व के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

    याचिका में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संदर्भ में निम्नलिखित मुद्दे सामने आते हैं:

    महिला नग्नता (भले ही दिखाई न दे) अपने आप में अश्लीलता का गठन करती है।

    क्या माता के शरीर पर चित्रकारी करने वाले बच्चों को इन कड़े कानूनों के तहत "यौन संतुष्टि" और "बाल शोषण" के रूप में निष्कर्ष निकाला जा सकता है।

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