स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत नोटिस देने का उद्देश्य व्यक्ति की विश्वसनीयता को परखना है: केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा
LiveLaw News Network
10 Feb 2021 2:09 PM IST
विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 की धारा 6 और धारा 7 को भारत के संविधान के तहत शून्य, अमान्य और अधिकारातीत (Ultra Vires) के रूप में घोषित करने की मांग करने वाली याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया है कि, "अधिनियम के पीछे की मंशा इसमें शामिल विभिन्न पक्षों के हितों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय रखने की है", और अगर धारा 7 के तहत आवश्यक 30 दिनों का नोटिस नहीं दिया जाता है, तो यह संभव नहीं है कि विवाह के लिए इच्छुक व्यक्तियों की विश्वसनीयता को परखा जा सके।
अपने बचाव में विस्तार से बताते हुए केंद्र ने कहा कि जब कोई व्यक्ति अपने विवाह की सूचना देने के लिए नोटिस देता है, तो विवाह अधिकारी किसी कार्यालय में किसी व्यक्ति को 30 दिनों की अवधि में उक्त विवाह पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए नोटिस प्रकाशित करता है। और यदि इस तरह की कोई आपत्ति आती है, तो अधिकारी को इस मामले में शादी से पहले पूछताछ करनी आवश्यक है।
याचिकाकर्ता, निदा रहमान द्वारा दायर याचिका में 30 दिनों के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करने और विवाह को लेकर आपत्तियां आमंत्रित की इस प्रच्छन्न प्रक्रिया को अलग करने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत तत्काल प्रभाव से उसकी शादी को पंजीकृत करने के निर्देश जारी किया जाए।
अधिनियम की धारा 5, धारा 6 और धारा 7 कहता है;
धारा 5. विवाह की सूचना देना - जब इस अधिनियम के तहत विवाह किया जाता है, तो विवाह के पक्षकार जिले के विवाह अधिकारी को दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट रूप में लिखित रूप में नोटिस देंगे, जिसमें कम-से-कम शादी के लिए पक्षकारों में से एक पक्ष को 30 दिनों की अवधि के लिए निवास किया है, जिस समय यह सूचना दी जाती है।
धारा 6 (2): विवाह सूचना पुस्तिका और प्रकाशन -
(2) विवाह अधिकारी को अपने कार्यालय में किसी विशिष्ट स्थान पर प्रति की प्रतिलिपि चिपकाकर इस तरह के नोटिस को प्रकाशित करना होगा।
धारा 7: विवाह पर आपत्ति –
(1) कोई भी व्यक्ति, तिथि से तीस दिनों की समाप्ति से पहले जिस पर धारा 6 की उप-धारा (2) के तहत कोई नोटिस प्रकाशित किया गया हो, इस पर धारा 4 में निर्दिष्ट एक या अधिक शर्तों का उल्लंघन के आधार पर विवाह पर आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है।
(2) धारा 6 की उपधारा (2) के तहत जिस दिन विवाह का नोटिस प्रकाशित किया गया है, उस तिथि से तीस दिनों की समाप्ति के बाद, विवाह को तब तक रद्द किया जा सकता है, जब तक कि उपधारा (1) के तहत पहले आपत्ति न जताई गई हो।
(3) आपत्ति की प्रकृति विवाह सूचना पुस्तिका में विवाह अधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज की जाएगी, जिसे पढ़ा जाए और समझाया जाए कि यदि आवश्यक हो, तो आपत्ति करने वाले व्यक्ति को और उसके या उसकी ओर से हस्ताक्षर किए जाएंगे।
केंद्र ने अपने उप-विधान परिषद के माध्यम से दायर जवाबी हलफनामे में यह भी कहा कि,
"विवाह के पंजीकरण के लिए इस अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया उचित और सही है, और विशेष विवाह को संपन्न करने की शर्तें अधिनियम की धारा 4 के पीछे की मंशा के अनुरूप है।"
रहमान के इस विवाद का खंडन करते हुए कि धाराएं निजता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं, हलफनामे में कहा गया कि, " जस्टिस केएस पुट्टास्वामी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ के मुताबिक निजता का अधिकार अब मौलिक अधिकार का हिस्सा है, लेकिन यह पूर्ण अधिकार नहीं है।"