'पैरवी के समय गंभीर नहीं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शोर-शराबे वाली जगह पर खड़े एडवोकेट को सुनने से इनकार किया

LiveLaw News Network

12 July 2021 2:47 AM GMT

  • पैरवी के समय गंभीर नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शोर-शराबे वाली जगह पर खड़े एडवोकेट को सुनने से इनकार किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते शिकायतकर्ता के लिए जमानत की सुनवाई में पेश होने वाले एक वकील को सुनने से इनकार किया, जो सुनवाई के समय शोर-शराबे वाली जगह पर खड़ा था और इस प्रकार अदालत को कुछ भी ठीक सुनाई नहीं दे रहा था कि वह क्या कह रहा है , क्या तर्क दे कर रहा है।

    न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने एजीए की सहायता से मामले की सुनवाई की और बलात्कार के आरोपी को जमानत दी, यह देखते हुए कि पीड़िता ने खुद अभियोजन की कहानी को उसके मूल में उड़ा दिया।

    संक्षेप में मामला

    बेंच आवेदक द्वारा भारतीय दंड सहिंता की धारा 363, 376 और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 3 और धारा 4 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(V) के तहत दर्ज मुकदमे में दायर एक जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़ित लड़की हाई स्कूल की छात्रा नहीं है और रेडियोलॉजिकल रिपोर्ट के अनुसार उसकी उम्र 19 साल है।

    यह प्रस्तुत किया गया कि सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में उसने स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि वह खुद आवेदक की कंपनी में शामिल हुई और देहरादून गई और वहां से बारमपुर गई थी और बिना किसी आपत्ति या विरोध के आवेदक के साथ लगभग 2-3 दिन बिताए थे।

    अंत में यह कहते हुए कि उसने स्वयं (अपने बयानों में) अभियोजन पक्ष की कहानी को उसके मूल में ही स्पष्ट किया, यह तर्क दिया गया कि वह आवेदक के साथ सहमति से संबंध में थी।

    दूसरी ओर, एजीए ने जमानत के लिए प्रार्थना का विरोध करते हुए उपरोक्त तथ्यों पर विवाद नहीं किया।

    अदालत ने जमानत देते हुए कहा कि,

    "यह ध्यान में रखते हुए कि पीड़िता बालिग है और उसने अपने बयानों में अभियोजन की कहानी, अपराध की प्रकृति, आरोपी की मिलीभगत के बारे में रिकॉर्ड पर साक्ष्य और मामले के मैरिट पर कोई राय व्यक्त किए बिना बताया है और इसलिए अदालत के अनुसार आवेदक के जमानत का मामला बनता है।"

    संबंधित समाचार में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकील के 'अभद्र तरीके' से अदालत के सामने पेश होने की एक और घटना में वीसी मोड के माध्यम से एक अन्य व्यक्ति के साथ "नंगे शरीर और बिना शर्ट के" के स्क्रीन पर दिखने वाले एक वकील को फटकार लगाई थी।

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में वकील के आचरण को अस्वीकार्य किया जो जमानत अर्जी में अदालत द्वारा आदेश सुनाने के दौरान तैयार हो रहा था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में रजिस्ट्रार जनरल, उच्च न्यायालय को निर्देश दिया था कि न्यायालयों को संबोधित करते समय अधिवक्ता 'क्या करें और क्या न करें' के लिए नियमों का एक सेट तैयार करें। दरअसल कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब एक वकील कार में बैठकर मामले में पैरवी कर रहा था।

    न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की पीठ का यह आदेश तब आया जब कुछ दिन पहले उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को अपने सदस्यों को सलाह देने के लिए कहा था कि वकील वर्चुअल मोड के माध्यम से इस न्यायालय के सामने पेश होने के दौरान कोई आकस्मिक दृष्टिकोण न अपनाएं, जिससे न्याय के प्रशासन में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

    न्यायालय ने उस समय अपना आश्चर्य व्यक्त किया जब एक जमानत आवेदक का अधिवक्ता कार में बैठे हुए मामले के मैरिट के आधार पर न्यायालय को संबोधित करना चाहता था।

    कोर्ट ने कहा कि वकीलों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि वे अदालतों के समक्ष एक गंभीर कार्यवाही में भाग ले रहे हैं और अपने ड्राइंग रूम में नहीं बैठे हैं या आराम से समय नहीं बिताने के लिए प्रस्तुत नहीं हो रहे हैं।

    केस का शीर्षक- अनुज वर्मा बनाम यूपी राज्य

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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