अभियुक्त का अपराध न कबूल करना असहयोग नहीं, यदि गिरफ्तारी धारा 41 सीआरपीसी को संतुष्ट नहीं करती तो उसे तत्काल रिहा किया जाए: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Jan 2023 2:00 AM GMT

  • अभियुक्त का अपराध न कबूल करना असहयोग नहीं, यदि गिरफ्तारी धारा 41 सीआरपीसी को संतुष्ट नहीं करती तो उसे तत्काल रिहा किया जाए: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को आईसीआईसीआई बैंक-वीडियोकॉन लोन फ्रॉड मामले में जमानत की अंतरिम राहत देते हुए कहा क‌ि केवल यह कहना कि आरोपी ने सहयोग नहीं किया और मामले के सही और पूर्ण तथ्यों का खुलासा नहीं किया, गिरफ्तारी का एकमात्र कारण नहीं हो सकता।

    जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने अभियुक्तों को रिमांड पर लेने और गिरफ्तारी के बाद उन्हें हिरासत में लेने का आदेश देने वाले न्यायिक अधिकारियों से जवाबदेही मांगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "धारा 167 सीआरपीसी के तहत हिरासत का आदेश दे रहे न्यायिक अधिकारी को पहले इस बिंदु संतुष्ट होना आवश्यक है कि गिरफ्तारी कानून के अनुसार की गई है और गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के सभी संवैधानिक अधिकार संतुष्ट ‌किए गए हैं, न कि केवल औपचारिकताएं निभाई गई हैं। यदि सीआरपीसी की धारा 41 की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद गिरफ्तारी नहीं की गई है तो संबंधित अदालत का कर्तव्य है कि वह आरोपी को आगे हिरासत में ना दे और उसे तुरंत रिहा करे।"

    पीठ ने कहा कि जब एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया जाता है और संबंधित अदालत के समक्ष पेश किया जाता है तो जज का यह कर्तव्य है कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या गिरफ्तारी के विशिष्ट कारणों को दर्ज किया गया है, और यदि ऐसा है तो क्या वे कारण प्रथम दृष्टया प्रासंगिक हैं और क्या एक अधिकारी इस उचित निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि धारा 41(1)(बी)(ii)(ए) से (ई) तक की एक या अन्य शर्तें लागू हो रही हैं।

    अदालत ने कहा कि कोचर के मामले में गिरफ्तारी मेमो में सिर्फ असहयोग का हवाला दिया गया है, जो रिकॉर्ड के विपरीत है।

    "सीआरपीसी की धारा 41(1)(बी) (ii) (ए) से (ई) के अनुसार मेमो एक भी विशिष्ट रूप से नोट/निर्धारित नहीं किया गया है। उल्लिखित एकमात्र कारण यह है कि याचिकाकर्ताओं ने सहयोग नहीं किया है और सच्चा और सही खुलासा नहीं किया है। यह गिरफ्तारी का आधार नहीं हो सकता।”

    कोर्ट ने गिरफ्तारी के दूसरे आधार 'सच्चे और सही तथ्यों का खुलासा नहीं करने' को भी खारिज कर दिया।

    आदेश में कहा गया,

    "[यह] कारण नहीं हो सकता है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 20 (3) में आत्म-दोष के खिलाफ अधिकार प्रदान किया गया है। सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य में संविधान पीठ के फैसले के मद्देनजर यह बखूबी स्थापित स्थिति है।"

    खंडपीठ ने कहा कि अनुच्छेद 20(3) आपराधिक मामलों में एक आवश्यक सुरक्षा उपाय है। यह जांच एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली यातना और जबरदस्ती के अन्य तरीकों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है।

    यह माना गया कि "सिर्फ इसलिए कि एक आरोपी कबूल नहीं करता है, यह नहीं कहा जा सकता है कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "गिरफ्तारी मेमो में याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार के बताए गए आधार अस्वीकार्य है और उन कारणों/आधारों के विपरीत है, जिन पर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता है यानी धारा 41(1)(बी) (ii) (ए) से (ई) तक आदेश के विपरीत।"

    सीआरपीसी की धारा 41

    सीआरपीसी की धारा 41 की सामान्य प्रयोज्यता पर अदालत ने कहा कि एक संज्ञेय अपराध के लिए गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं है और यह जिम्मेदारी उस अधिकारी की होती है जो गिरफ्तारी करना चाहता है।

    "गिरफ्तारी करने के लिए अधिकारी को इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि व्यक्ति ने एक ऐसा संज्ञेय अपराध किया है, जिसकी सजा सात साल से कम हो सकती है या जो जुर्माने के साथ या बिना, उक्त अवधि तक बढ़ भी सकती है, और यह कि उक्त अपराध में गिरफ्तारी की आवश्यकता है।”

    अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी के कारणों में किसी व्यक्ति को भविष्य में किसी अपराध से रोकना, उचित जांच करना, किसी व्यक्ति को अपराध के साक्ष्य को गायब करने या छेड़छाड़ करने से रोकना, गवाहों को धमकी देना आदि शामिल हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि वह न केवल लिखित रूप में गिरफ्तारी के कारणों को दर्ज करे, बल्कि उन मामलों में भी, जहां पुलिस गिरफ्तारी नहीं करना चाहती है, कारणों को दर्ज करे। यह अदालतों की भी जिम्मेदारी है कि वे खुद को संतुष्ट करें कि धारा 41 और 41-ए का उचित अनुपालन हो रहा है। ऐसा न होने पर यह संदिग्ध अपराधी के लिए लाभ सुनिश्चित करेगा और वह जमानत पर रिहा होने का हकदार होगा।"

    विश्वास करने का कारण

    यह देखते हुए कि केवल तभी गिरफ्तारी अधिकृत की जा सकती है जब संबंधित अधिकारी के पास 'विश्वास करने का कारण' हो और 'गिरफ्तारी के लिए संतुष्टि' हो कि व्यक्ति ने अपराध किया है, अदालत ने कहा कि विश्वास सद्भावना में होना चाहिए न कि कैजुअल, या किसी बहाने या संदेह पर।

    अदालत ने कहा कि अर्नेश कुमार और सतेंद्र कुमार अंतिल के फैसलों से यह स्पष्ट है कि दोनों तत्व, "विश्वास करने का कारण" और "गिरफ्तारी के लिए संतुष्टि", जैसा कि धारा 41(1)(बी)(i) और धारा 41(1)(बी) (ii) में अनिवार्य है, को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए और आरोपी को गिरफ्तार करते समय संबंधित अधिकारी द्वारा उन कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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