'कोई भी भूखे पेट पढ़ाई नहीं कर सकता': कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य से स्कूलों में मध्याह्न भोजन फिर से शुरू करने का आग्रह किया

LiveLaw News Network

16 March 2021 9:00 PM IST

  • कोई भी भूखे पेट पढ़ाई नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य से स्कूलों में मध्याह्न भोजन फिर से शुरू करने का आग्रह किया

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार को 30 मार्च तक जवाब देने का निर्देश दिया है कि क्या आंगनवाड़ियों में बच्चों के साथ-साथ उन अन्य श्रेणियों के लोगों को भी पका भोजन दिया जा रहा है जो आंगनवाड़ियों से पोषण प्राप्त करने के हकदार हैं?

    राज्य को इस बारे में भी जवाब देना है कि क्या 6 वीं कक्षा से 8 वीं कक्षा तक स्कूल आने वाले बच्चों को मध्यान्ह भोजन उपलब्ध कराया जाता है और इस संबंध में क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

    न्यायमूर्ति बीवी नागरथना और न्यायमूर्ति एनएस संजय गौड़ा की खंडपीठ ने यह निर्देश उस समय जारी किए,जब राज्य सरकार की तरफ कोर्ट को सूचित किया गया कि 10 अप्रैल तक बच्चों को सूखा राशन उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है और मिड-डे मील को फिर से शुरू करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से दिए जाने वाले निर्देश का इंतजार कर रहे हैं।

    पीठ ने कहा कि,

    ''तथ्य यह है कि आंगनवाड़ियों को शुरू कर दिया गया है और 3 साल से 6 साल के बीच के बच्चे इनमें आ भी रहे हैं। इसलिए आंगनवाड़ियों में गर्म पका हुआ भोजन परोसना आवश्यक हो जाता है। यह पता नहीं है कि राज्य सरकार द्वारा दिए गए आदेश के तहत अनलॉकिंग अवधि में और आंगनवाड़ियों को फिर से ओपन करने के बाद बच्चों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है या नहीं।''

    यह भी कहा गया कि,

    ''स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से फिर से खोल दिया गया है और 6 वीं कक्षा से लेकर 10 वीं कक्षा तक के छात्र स्कूल जा रहे हैं। राज्य में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है, लेकिन COVID19 के कारण, यह ज्ञात नहीं है कि स्कूलों में जाने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान है या नहीं।''

    सुनवाई के दौरान पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि ''आर्टिकल 21 ए के तहत शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। ऐसे में मध्याह्न भोजन का प्रावधान एक मौलिक अधिकार बन जाएगा, क्योंकि आप उन्हें खाली पेट पढ़ाई करने के लिए नहीं कह सकते हैं। हालांकि यह एक योजना के रूप में है, अंततः हमें इसे मौलिक अधिकार बनाना होगा। कोई भी भूखे पेट पढ़ाई नहीं कर सकता है।''

    सुबह हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया कि कई इलाकों में COVID19 के मामलों में वृद्धि के कारण उन इलाकें के स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना शुरू नहीं की गई है। यह वो इलाके हैं,जहां या तो मामले लगातार बढ़ रहे हैं या फिर जो इलाके केरल-कर्नाटक की सीमाएँ से सटे हैं।

    पीठ ने इन दावों पर संदेह किया और कहा ''एक वर्ष के लिए आप इस परिणाम के बारे में जानते थे, फिर भी इसके लिए कोई योजना नहीं बनी है। यदि आप स्कूलों को खोलने की अनुमति देते हैं, तो यह मण्डली/एकत्रीकरण को अनुमति देता है। यदि आप इसकी अनुमति दे सकते हैं, तो आप मिड-डे मील क्यों शुरू नहीं कर सकते।''

    कोर्ट ने कहा कि,''महामारी समाज में ज्यादा से ज्यादा कठिनाइयों को ट्रिगर नहीं कर सकती है। इस महामारी को स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में प्रबंधित करना एक बड़ी चुनौती है। यह आगे की चुनौतियों का कारण नहीं बन सकती है। अब आप पका हुआ भोजन देना शुरू करें। आपको इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।''

    जिसके बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को दोपहर 2.30 बजे अदालत के समक्ष एक बयान देने का निर्देश दिया कि क्या वह मार्च के अंत तक मध्यान्ह भोजन योजना को फिर से शुरू करेंगे? जवाब में राज्य ने एक छोटा बयान कोर्ट के समक्ष दायर किया और फिर से दोहराया कि कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण अभी योजना शुरू नहीं की गई है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयना कोठारी ने 'दीपिका हगतराम सहंत बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स,डब्ल्यूपी सिविल नंबर 1039/2020' के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों पर भरोसा किया और कहा कि ''स्कूल बंद होने पर सूखा राशन उपलब्ध कराया गया था। अब स्कूल छठी कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए फिर से खुल गए हैं और आंगनवाड़ियों को फिर से खोल दिया गया है।''

    उन्होंने कहा कि ''भोजन के बहाने बच्चों को शिक्षा मिलेगी।''

    पीठ ने यह भी कहा ''आप (राज्य सरकार) छात्रों को भोजन परोसने के संबंध में निर्णय लें,जिससे स्कूलों में उपस्थिति व स्कूलों में नामांकन में सुधार होगा। बच्चे शिक्षा प्रणाली में वापस आ जाएंगे। क्यों आप भोजन उपलब्ध कराने की अपनी जिम्मेदारी का त्याग कर रहे हैं?''

    पीठ ने सरकार से आग्रह किया कि वह इस मुद्दे को संबोधित करने में सक्रिय भूमिका निभाए। कोर्ट ने कहा कि ''आपको केंद्र सरकार से पूछने की आवश्यकता नहीं है, आप एक संप्रभु सरकार हैं। कार्रवाई करें।'' यह भी कहा गया,''शिक्षा विभाग के लिए इस अवसर पर तेजी से आगे बढ़ाने का समय है। यह चुनौती का दौर है, उन्हें सक्रिय होना चाहिए।''

    यह निर्देश एक राधा एम द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए गए हैं। इस याचिका में मांग की गई है कि छठी कक्षा से आठवी कक्षा तक के छात्रों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए क्योंकि राज्य में नियमित स्कूल शुरू हो गए हैं।

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