''शादी के झूठे वादे का कोई विशेष आरोप नहीं': केरल हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार का मामला खारिज किया

Manisha Khatri

6 Nov 2022 7:45 AM GMT

  • शादी के झूठे वादे का कोई विशेष आरोप नहीं: केरल हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार का मामला खारिज किया

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने एक वकील के खिलाफ दर्ज बलात्कार के एक मामले को खारिज करते हुए गुरुवार को कहा कि पीड़िता के बयान में ऐसा कोई विशेष आरोप नहीं है कि उसने उससे शादी करने का झूठा वादा किया था जिसके आधार पर पीड़िता को यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया गया था।

    पीड़िता का मामला यह था कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाए।

    हालांकि महिला ने कार्यवाही को रद्द पर कोई आपत्ति नहीं की थी, लेकिन लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट बलात्कार के मामले को रद्द नहीं कर सकता है, भले ही पक्षों के बीच विवाद का निपटारा हो गया हो।

    यह देखते हुए कि आरोप ''इतना अस्पष्ट'' है और वह महिला कथित संभोग की तारीखों का खुलासा करने में भी सक्षम नहीं है, जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि यह माना गया है कि यह कपल पिछले चार वर्षों से आपसी सहमति से संबंध में था।

    अदालत ने कहा,''एफआई के बयान में बिल्कुल कोई विशेष आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर-दो से शादी करने का वादा किया था जो कि शुरुआत में झूठा था और जिसके आधार पर उसने प्रतिवादी नंबर-दो को यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित किया था। इसमें कोई आरोप भी नहीं है। एफआई के बयान में ऐसा भी कोई आरोप नहीं है कि जब याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर-दो से शादी करने का वादा किया था, तो यह बुरे विश्वास के साथ और उसे धोखा देने के इरादे से किया गया था।''

    अदालत ने आगे कहा कि आरोपी और पीड़िता के बीच संबंध उस समय तनावपूर्ण हो गए जब उसे ''संदेह हुआ'' कि आरोपी ने ''एक अन्य लड़की के साथ अंतरंगता'' विकसित कर ली है।

    कोर्ट ने कहा,

    ''संक्षेप में, याचिकाकर्ता और प्रतिवादी नंबर-दो के बीच हुए कथित सेक्स का कारण याचिकाकर्ता को उससे किया गया कोई गलत वादा नहीं बल्कि याचिकाकर्ता के प्रति प्रतिवादी नंबर-दो का प्यार और जुनून था। इसके अलावा, एफआई के बयान को पढ़ने से आईपीसी की धारा 375 के स्पष्टीकरण 2 के तहत परिभाषित प्रतिवादी नंबर-दो की ओर से सहमति का खुलासा होता है।''

    याचिकाकर्ता और पीड़िता दोनों ही हाईकोर्ट में वकील हैं।

    यह देखते हुए कि बलात्कार के अपराध के केंद्र में सहमति है, अदालत ने कहाः

    ''... यह बहुत ही सामान्य बात है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला से शादी करने के अपने वादे से मुकर जाता है, तो उनके द्वारा सहमति से किया गया यौन संबंध आईपीसी की धारा 376 के तहत बलात्कार का अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि यह स्थापित नहीं हो जाता कि इस तरह के कृत्य के लिए सहमति उसके द्वारा शादी का झूठा वादा करके प्राप्त की गई थी, जिसका पालन करने का उसका कोई इरादा नहीं था और किया गया वादा उसकी जानकारी के लिए झूठा था।''

    याचिकाकर्ता आरोपी की ओर से सीनियर एडवोकेट रमेश चंदर और एडवोकेट सी.पी. उदयभानु, रसल जनार्दन ए., अभिषेक एम. कुन्नाथू, बोबन पलट, पी.यू. प्रतीश कुमार, पी.आर. अजय, बालू टॉम, बोनी बेनी और गोविंद जी. नायर पेश हुए और दलील दी कि इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है क्योंकि महिला द्वारा दिए गए बयान से ही पता चलता है कि वे प्यार में थे और पिछले 4 वर्षों से एक रिश्ते में थे। ऐसे में यदि उनके बीच संभोग हुआ भी था तो उसकी प्रकृति आपसी सहमति की थी।

    एफआईआर को रद्द करते हुए, अदालत ने दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य (2013) और धु्रवराम मुरलीधर सोनार (डॉ) बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) के मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों पर भरोसा किया, जिनमें केवल एक वादे का उल्लंघन करने और वादा पूरा न करने के बीच अंतर किया गया है।

    अदालत ने कहा,''यह देखा गया है कि यदि अभियुक्त ने केवल पीड़िता को यौन कृत्यों में शामिल करने के लिए बहकाने के इरादे से वादा नहीं किया है, तो ऐसा कार्य बलात्कार नहीं माना जाएगा और यदि आरोपी का कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा या गुप्त उद्देश्य था, तो यह बलात्कार का एक स्पष्ट मामला है।''

    न्यायालय ने शंभू कारवार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक हालिया फैसले पर भी ध्यान दिया, जिसमें यह माना गया था कि शादी के झूठे वादे पर बलात्कार के अभियोजन में, इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या आरोप यह इंगित करता है कि आरोपी ने पीड़िता से शादी करने का वादा किया था जो कि शुरुआत में झूठा था और जिसके आधार पर पीड़िता को यौन संबंध में शामिल किया गया था? उक्त निर्णय में इस बात पर भी जोर दिया गया था कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करने के लिए टेस्ट यह है कि क्या एफआईआर में लगाए गए आरोप एक संज्ञेय अपराध के कमीशन का खुलासा करते हैं।

    वरिष्ठ लोक अभियोजक पी.जी. मनु और एडवोकेट वी. जॉन सेबेस्टियन राल्फ वर्तमान मामले में प्रतिवादियों की ओर से पेश हुए।

    केस टाइटल-एक्सएक्सएक्स बनाम केरल राज्य व अन्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केरल) 574

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