पति को सौंपी गई संपत्ति पर दावा करने के लिए तलाकशुदा पत्नी के लिए कोई लिमिटेशन पीरियड नहींः केरल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Nov 2020 5:00 AM GMT

  • पति को सौंपी गई संपत्ति पर दावा करने के लिए तलाकशुदा पत्नी के लिए कोई लिमिटेशन पीरियड नहींः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने माना है कि विवाह के विघटन के बाद भी पति को उन संपत्तियों के संबंध में विश्वास में रखने वाला व्यक्ति (होल्ड इन ट्रस्ट ) माना जाएगा,जो दहेज के रूप में शादी से पहले पत्नी द्वारा उसको सौंपी गई थी।

    इसका मतलब यह है कि लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 10, जो ट्रस्ट और ट्रस्टियों के खिलाफ लिमिटेशन पीरियड के आवेदन से छूट देती है, विवाह के विघटन के बाद भी ऐसी संपत्ति पर लागू रहेगी। इसलिए पति या ससुराल वालों को सौंपी गई संपत्ति की वापसी के दावे के संबंध में विवाह के विघटन के बाद भी लिमिटेशन पीरियड शुरू नहीं होगा।

    जस्टिस एएम शफीक, जस्टिस सुनील थॉमस और जस्टिस पी गोपीनाथ की 3-जजों वाली बेंच इस मुद्दे पर फैसला कर रही थी कि क्या पत्नी द्वारा अपने पति को अपनी संपत्ति सौंपते समय बनाया गया विश्वास शादी के विघटन के बाद खत्म हो जाता है ? और क्या वह समय की किसी लिमिटेशन के बिना लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 10 को लागू करने के लिए कार्यवाही शुरू कर सकती है?

    इस मुद्दे को पूर्ण पीठ के पास एक डिवीजन बेंच द्वारा संदर्भित किया गया था जिसने बिंदू के.पी. बनाम सुरेन्द्रन सी. के (2018) मामले में अपनाए गए विचार की शुद्धता पर संदेह किया था। जिसमें यह ठहराया गया था कि दहेज के लिए पत्नी या पूर्व पत्नी द्वारा किए जाने वाले दावा समय की किसी भी सीमा से बंधा या वर्जित नहीं है।

    पूर्ण खंडपीठ ने कहा कि यह तय कानून है कि जब पत्नी पति को अपनी कोई संपत्ति सौंपती है, तो एक ट्रस्ट बन जाता है और पति इस संपत्ति को अपनी पत्नी को वापस करने के लिए बाध्य होता है। लिमिटेशन एक्ट की धारा 10 इंगित करती है कि इस तरह की कार्रवाई शुरू करने के लिए कोई लिमिटेशन नहीं है, क्योंकि कोई ऐसा अन्य कानून उपस्थित नहीं है जो कोई लिमिटेशन तय करता हो। इसलिए कोई भी ट्रस्टी यह दलील नहीं दे सकता है कि वह किसी भी लिमिटेशन पीरियड के कारण ट्रस्ट संपत्ति को वापिस नहीं करेगा।

    साथ ही, दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 6 के अनुसार, दहेज के संबंध में एक वैधानिक ट्रस्ट बनाया गया है।

    पीठ ने आगे कहा कि इंडियन ट्रस्ट्स एक्ट, 1882 की धारा 77 उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करती है, जिनके तहत एक ट्रस्ट को समाप्त कर दिया जाता है। इसके अलावा, जब तक कि धारा 77 में वर्णित कोई भी घटना नहीं होती है, तब तक ट्रस्ट का संचालन जारी रहता है, भले ही विवाह का विघटन हो गया हो यानी शादी खत्म हो गई हो।

    पीठ ने कहा कि,

    ''आभूषणों के मामले में जो दहेज के रूप में दिए जाते हैं, निश्चित रूप से, एक वैधानिक ट्रस्ट बनाया जाता है। इसके अलावा, अगर पत्नी के स्वामित्व वाले गहने दहेज का हिस्सा नहीं बनते हैं और अगर सोने के गहनों का कार्यभार पत्नी अपने पति या उसके माता-पिता को सौंपती है तो भी एक ट्रस्ट बनाया जाता है, उस स्थिति में, ट्रस्टी या ट्रस्टीज, जैसा भी मामला हो, उसे वापस करने के लिए उत्तरदायी होते हैं और पत्नी/तलाकशुदा पत्नी कभी भी उनको वापिस पाने के लिए दावा कर सकती है,उसके लिए कोई लिमिटेशन नहीं है।''

    पीठ ने बिंदू के.पी. बनाम सुरेन्द्रन सी. के मामले में दिए गए फैसले पर अपनी सहमति जताई और उसी अनुसार संदर्भ का उत्तर दिया।

    केस का विवरण

    शीर्षक- शीला केके बनाम एन जी सुरेश (एमएटी अपील नंबर 358/2009)

    बेंच-जस्टिस ए एम शफिक, जस्टिस सुनील थॉमस और जस्टिस पी गोपीनाथ

    प्रतिनिधित्व- एडवोकेट एस के बालचंद्रन।

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




    Next Story