हत्या करने का कोई इरादा नहींः मद्रास हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी को आग लगाने वाली महिला की उम्रकैद की सजा कम की

Manisha Khatri

19 Jan 2023 5:30 AM GMT

  • हत्या करने का कोई इरादा नहींः मद्रास हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी को आग लगाने वाली महिला की उम्रकैद की सजा कम की

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी नाबालिग बेटी को आग लगाने और इस तरह उसकी मौत के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाने वाली एक मां को राहत देते हुए उसकी सजा को रद्द कर दिया है।

    जस्टिस पीएन प्रकाश (अब सेवानिवृत्त) और जस्टिस जी जयचंद्रन ने भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत लगाए गए आरोपों को धारा 304 के तहत बदलते हुए कहा कि प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या अपीलकर्ता मां का अपनी बेटी की हत्या करने का इरादा किया था?

    मृतक मारीसेल्वी 13 साल की थी और उसे आगे की पढ़ाई के लिए कोविलपट्टी के सरकारी सहायता प्राप्त आवासीय विद्यालय में भर्ती कराया गया था। हालांकि उसकी पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए वह एक सप्ताह के बाद आधी रात के दौरान बिना वार्डन को बताए हॉस्टल से भागकर घर लौट आई।

    इस बात से क्रोधित होकर कि मारीसेल्वी अपनी पढ़ाई जारी नहीं रखना चाहती है, मां और बेटी के बीच झगड़ा शुरू हो गया जिसमें अपीलकर्ता मां ने गुस्से में अपनी बेटी पर मिट्टी का तेल फेंक कर आग लगा दी। उसे तुरंत सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां उसे 50 प्रतिशत जली हुई हालत में भर्ती कराया गया था।

    मारीसेल्वी का चार महीने से अधिक समय तक इलाज दिया गया और उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। हालांकि पूरी तरह से ठीक न होने के कारण उसे फिर से भर्ती कराया गया और अंत में उसकी चोटों के कारण उसने दम तोड़ दिया।

    निचली अदालत ने अपीलकर्ता मां को दोषी पाया और उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 5000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई और जुर्माना न चुकाने पर 6 महीने के अतिरिक्त सश्रम कारावास से गुजरना होगा।

    अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हत्या के लिए धारा 302 के तहत दी गई सजा को बरकरार नहीं रखा जा सकता है और इसके बजाय आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत सजा दी जानी चाहिए।

    इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमें डर है कि हम आईपीसी की धारा 302 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दी गई सजा को बरकरार नहीं रख सकते हैं और इसके बजाय उसे सजा आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत दी जा सकती है।

    इस प्रकार अदालत ने धारा 302 के तहत दी गई सजा को रद्द कर दिया और इसके बजाय अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत दोषी ठहराया। अदालत ने आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास और 5000 रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है।

    अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 304 (1) के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया और 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है और जुर्माने की राशि अदा न करने पर 6 महीने के सश्रम कारावास की सजा काटनी होगी। आईपीसी की धारा 302 के तहत सजा और सजा के लिए पहले से भुगतान की गई जुर्माने की राशि इसके लिए भी मान्य होगी। अपीलकर्ता को निर्देश दिया जाता है कि वह तुरंत ट्रायल कोर्ट के सामने पेश हो जाए और इस तरह की पेशी पर उसे सीआरपीसी की धारा 428 के तहत सजा की शेष अवधि को पूरा करने के लिए हिरासत में भेज दिया जाएगा।

    केस टाइटल-राजेश्वरी बनाम राज्य

    साइटेशन-2023 लाइव लाॅ (एमएडी) 20

    केस नंबर-सीआरएल.ए(एमडी) नंबर 283/2020

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