एनसीडीआरसी मधुमेह के रोगी को 10 लाख का मुआवजा बरकरार रखा, अस्पताल ने रात भर उसके हाथ बिस्तर से बांध कर रखे थे, जिससे उसकी उंगलियां काटनी पड़ी

Avanish Pathak

12 Feb 2023 3:47 PM GMT

  • एनसीडीआरसी मधुमेह के रोगी को 10 लाख का मुआवजा बरकरार रखा, अस्पताल ने रात भर उसके हाथ बिस्तर से बांध कर रखे थे, जिससे उसकी उंगलियां काटनी पड़ी

    राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने शुक्रवार को दिल्ली राज्य आयोग के एक फैसले को बरकरार रखा, जिसमें उसने मधुमेह के एक रोगी को 10 लाख का मुआवजा दिया था, जिसे अस्पताल में रात भर बिस्तर से बांध दिया गया ‌था, जिससे उसकी उंगलियां काटनी पड़ी थी।

    पीठासीन सदस्य आयुक्त डॉ एसएम कांतिकर ने यह कहते हुए आदेश पारित किया कि,

    "ओपी अस्पताल में आईसीयू कर्मचारियों की ओर से देखभाल की ड्यूटी ठीक ढंग से नहीं पूरी की गई। राज्य आयोग का आदेश तर्कपूर्ण है और शिकायतकर्ता को उचित और पर्याप्त मुआवजा दिया गया है। मुझे मुआवजा बढ़ाने का कोई कारण नहीं मिला है।"

    मामले के तथ्यों से पता चला है कि शिकायतकर्ता/रोगी उल्टी और सामान्य अस्वस्थता से पीड़ित थी, उसे 28 मार्च, 2001 को माता चनन देवी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसने डॉक्टर जैन, जिन्होंने आपातकालीन स्थिति में उसकी जांच की थी, उसने उसे

    अपनी 4 से 5 साल पुरानी मधुमेह की स्थिति की जानकारी दी ‌‌थी, हालांकि, उन्होंने रोगी को सलाइन के बजाय ग्लूकोज ड्रिप लगाने की सलाह दी। उसकी हालत और बिगड़ गई और वह बेचैन हो गई और सांस फूलने लगी।

    यह आरोप लगाया जाता है कि जब रक्त शर्करा का स्तर 465 मिलीग्राम% तक बढ़ गया और रोगी पीला पड़ गया, तो ओपी ने रक्त शर्करा को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया। एक घंटे के बाद मरीज को आईसीसीयू में शिफ्ट कर दिया गया। उसके एक घंटे बाद किए गए एक्स-रे से पता चला कि मरीज को ब्रोंको-निमोनिया हो गया था। उसके दो घंटे बाद उसे सांस लेने में दिक्कत हुई, उसे इंटुबैट किया गया और एक पुराने वेंटिलेटर पर रखा गया, जो बहुत शोर कर रहा था। जब एक अन्य डॉक्टर ने आईसीयू में मरीज को देखा तो उन्होंने डॉक्टर जैन को सलाह दी कि मरीज मूत्र नली को ना खींचे इसलिए उसके दोनों हाथों को बेड से बांध दें।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके हाथ दोपहर 2.00 बजे से अगली सुबह तक बिस्तर से बंधे हुए थे, जिसके कारण हाथों में सूजन और रक्तसंचार बाधित हो गया और बाएं हाथ में गैंगरीन हो गया। उसने आरोप लगाया कि डॉक्टरों ने नीले पड़ चुके उसके बाएं हाथ की जांच में देरी की, और वह कमजोर, उनींदी और अर्ध-चेतन हो गई। उसके पति को बताया गया कि अस्पताल में कोई सुपर स्पेशलिस्ट उपलब्ध नहीं है और न ही बाहर से कोई उसकी जांच करने को तैयार है।

    इसके बाद रोगी को 30 मार्च 2001 को अपोलो अस्पताल ले जाया गया। अपोलो अस्पताल में क्लिनिकल नोट में यह उल्लेख किया गया कि बाएं हाथ से बाईं कलाई तक गैंग्रीन था, संभवतः यह रक्त प्रवाह के देर तक रुकने के कारण हुआ था।

    उसे हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी के जरिए गैंग्रीन का 10 दिनों तक इलाज कराने की सलाह दी गई, जो बहुत महंगा था, और अंत में, उसके बाएं हाथ की उंगलियां काट दी गईं। इससे व्यथित होकर उसने राज्य आयोग के समक्ष परिवाद दायर किया।

    अस्पताल ने हालांकि आरोपों से इनकार किया और कहा था कि मरीज बहुत ही गंभीर अवस्था में आई थी और इलाज के लिए उचित समय दिए बिना 24 घंटे से कम समय तक अस्पताल में रही। उन्होंने बताया कि शिकायतकर्ता 2 सप्ताह के लिए अपोलो अस्पताल में रही थी और उसके ओपी अस्पताल छोड़ने के 20 दिनों के बाद उंगलिया काटी गई ‌थी। राज्य आयोग ने शिकायत की अनुमति दी और अवॉर्ड पारित किया।

    अस्पताल ने राज्य आयोग के आदेश से व्यथित होकर एनसीडीआरसी के समक्ष अपील दायर की। शिकायतकर्ता द्वारा एक अन्य अपील भी दायर की गई थी, जिसमें मुआवजे को बढ़ाकर 50 लाख रुपये करने की मांग की गई थी।

    एनसीडीआरसी ने पाया कि मौजूदा मामले में, शिकायतकर्ता मरीज के पति का ओपी अस्पताल पर से भरोसा उठ गया था और वह 24 घंटे से कम समय तक अस्पताल में रहने के बाद उसे अपोलो अस्पताल ले गया था। एनसीडीआरसी ने शिकायतकर्ता के पति के हलफनामे पर ध्यान दिया कि ‌डिस्चार्ज के समय ओपी अस्पताल में डॉ. सुधीर छाबड़ा ने यह खुलासा नहीं किया था कि मरीज गलत निर्देशों यानी हाथ बांधने के कारण गैंग्रीन से पीड़ित थी। उन्होंने कहा कि यहां तक कि चिकित्सा अधीक्षक भी रोगी को अपोलो अस्पताल जाने की अनुमति देने से हिचक रहे थे क्योंकि इससे उनके गलत इलाज और घोर लापरवाही का पर्दाफाश हो जाता। ओपी अस्पताल द्वारा इस साक्ष्य का खंडन नहीं किया गया था।

    एनसीडीआरसी ने यह भी देखा कि यह माना गया कि शिकायतकर्ता ने LAMA डिस्चार्ज लिया और अपनी पत्नी को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया, हालांकि, ओपी अस्पताल के डॉक्टरों ने अपोलो अस्पताल को रेफर करते समय डिस्चार्ज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया, जो उनकी ओर से एक कमी थी।

    एनसीडीआरसी ने शिकायतकर्ता के इस तर्क को भी मानने से इनकार कर दिया कि डॉक्टरों ने मरीज के ब्लड शुगर को कम करने के लिए कदम नहीं उठाए थे।

    इसलिए इसने ओपी अस्पताल में आईसीयू कर्मचारियों की देखभाल के कर्तव्य में विफलता पाई। इस प्रकार यह माना गया कि राज्य आयोग द्वारा दिया गया मुआवजा उचित और पर्याप्त था,और इसे बढ़ाने का कोई कारण नहीं मिला। इस प्रकार अपीलों को खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: चिकित्सा अधीक्षक, माता चनन देवी अस्पताल बनाम सुनीता सक्सेना और सुनीता सक्सेना बनाम चिकित्सा अधीक्षक, माता चनन देवी अस्पताल और अन्य।

    Next Story