कदाचार को सुनिश्चित करने के लिए न केवल लगाया गया जुर्माना, बल्कि जुर्म की प्रकृति की महत्वपूर्ण: गुजरात हाईकोर्ट ने कानून के छात्र की याचिका खारिज की
Avanish Pathak
15 April 2023 7:17 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा में नकल करते पकड़े गए कानून के एक छात्र, जिसे कदाचार में भी शामिल पाया गया था, की ओर दायर आवेदन, जिसमें उसने नियमित परीक्षाओं में उपस्थित होन के लिए राहत की मांग की थी, को खारिज कर दिया।
फैसले में जस्टिस संगीता के विशेन ने कहा,
"...यदि छात्र के पास परीक्षा में किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पाए जाते हैं, भले ही इसका उपयोग किया गया हो या नहीं, इसे कदाचार कहा जाता है और इसलिए, न केवल दंड पर बल्कि कदाचार की प्रकृति पर भी ध्यान देना चाहिए। इस पर विवाद नहीं है कि कदाचार, याचिकाकर्ता ने किया था और यह सुझाव देना कि कदाचार विनियम 5(iv) के तहत कवर नहीं किया जाएगा, स्वीकार करना मुश्किल है।"
याचिकाकर्ता बी कॉम एलएलबी (ऑनर्स) का छात्र है। सेमेस्टर 6 में वह फैमिली लॉ पेपर की परीक्षा दे रहा था, जब उसे ये अहसास हुआ कि उसकी जेब में मोबाइल फोन है। शैक्षणिक विनियमों के अनुसार परीक्षा के दरमियान मोबाइल फोन रखना सख्त वर्जित है।
उसने स्वेच्छा से वह फोन निरीक्षक के पास जमा कर दिया, जिसके बाद उसे अनफेयर मीन्स फॉर्म भरने के लिए कहा गया, भले ही उसने किसी अनुचित साधन का उपयोग नहीं किया था। जिसके बाद परीक्षा सुधार समिति ने एक आदेश पारित किया और अंतिम सेमेस्टर में याचिकाकर्ता के छठें सेमेस्टर के फैमिली लॉ II पेपर के परिणाम को रद्द करने की सिफारिश की।
इसके बाद, सेमेस्टर VII की परीक्षाओं के दरमियान याचिकाकर्ता को कराधान के पेपर में 19 मुद्रित सामग्रियों (दोनों तरफ मुद्रित) के साथ पकड़ा गया, जिसे अनुचित साधन माना गया। परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता के सेमेस्टर VII के सभी प्रश्नपत्रों के परिणाम रद्द घोषित कर दिए गए।
प्रतिवादी ने एक सूचना पुस्तिका प्रकाशित की थी जिसमें "एग्जामिनेशन/टेस्ट/असाइनमेंट में ऐकेडमिक डिसऑनेस्टी और पनिशमेंट" पर विनियम 2.3 शामिल किया गया था, जिसमें अनुचित प्रैक्टिसों और दंडात्मक उपायों की प्रकृति को निर्दिष्ट किया गया था।
विनियम 3 का उप-खंड (iii) के तहत प्रावधान है कि यदि किसी छात्र के पास परीक्षा के दरमियान साधारण कैलकुलेटर (जहां भी अनुमति हो) को छोड़कर मोबाइल फोन/स्मार्ट वॉच सहित किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पाए जाते हैं, भले ही इसका उपयोग किया गया हो या नहीं किया गया हो, प्रदान किए गए दंडात्मक उपायों की प्रकृति संबंधित पाठ्यक्रमों की सभी परीक्षाओं के परिणामों को रद्द करना है।
परीक्षा सुधार समिति ने अपनी बैठक में, याचिकाकर्ता पर दंडात्मक उपाय लगाने की सिफारिश की, यानि सेमेस्टर VI के फैमिली लॉ II की परीक्षा के परिणाम आखिर सेमेस्टर में विनियम 5 (iv) के अनुसार रद्द करने की सिफारिश की।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि दिशा-निर्देशों के विनियम 5(iv) को लागू करने के लिए छात्र के परिणाम को संबंधित पाठ्यक्रम की सभी परीक्षाओं (सीई/एलपीडब्ल्यू/पीडब्ल्यू/टीईई) के लिए रद्द कर देना चाहिए था। जबकि, याचिकाकर्ता के मामले में, पिछले कदाचार के लिए लगाया गया जुर्माना सेमेस्टर VI के फैमिली लॉ II के सेमेस्टर अंत परीक्षा के परिणाम को रद्द करना था।
निर्णय
प्रतिवादी की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट धवल दवे से सहमत होते हुए जस्टिस विशेन ने कहा कि नियमन 3 लागू किया गया था या नहीं, यह जुर्माना लगाने के आधार पर निर्धारित नहीं किया जाएगा, बल्कि यह देखना होगा कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रयोग किए गए अनुचित साधनों की प्रकृति क्या थी।
जस्टिस विशेन ने सहमति व्यक्त की कि चूंकि याचिकाकर्ता द्वारा अनुचित साधनों का अभ्यास निर्विवाद है, इसलिए प्रतिवादी ने सही तरीके से नियमन 5 (iv) को लागू किया है, चूंकि याचिकाकर्ता को परीक्षा में अनुचित व्यवहार में लिप्त पाया गया था; इसलिए संबंधित सेमेस्टर के सभी संबंधित पाठ्यक्रमों की सभी परीक्षाओं के परिणाम रद्द कर दिए गए।
पीठ ने कहा,
"इसलिए इस अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता को परीक्षा में शामिल होने की अनुमति देने के लिए किसी अंतरिम संरक्षण के लिए कोई मामला नहीं बनता है।"
पीठ ने कहा,
"आपराधिक न्यायशास्त्र पर लागू होने वाले सिद्धांत को वर्तमान मामले के तथ्यों पर लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि संस्थान द्वारा बनाए गए विनियम ... अकादमिक अनुशासन को बनाए रखने के उद्देश्य से हैं।"
निदेशक (अध्ययन), डॉ. अंबेडकर इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, न्यूट्रिशन एंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़ व अन्य बनाम वैभव सिंह चौहान (2009) 1 एससीसी 59 पर भरोसा किया गया।
केस टाइटल: कार्तिक दीपक शर्मा बनाम डायरेक्टर जनरल, निरमा यूनिवर्सिटी आर/स्पेशल सिविल एप्लीकेशन नंबर 3752 ऑफ 2023