नारदा घोटाला केस : कलकत्ता हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने टीएमसी नेताओं की जमानत से संबंधित मामले की सुनवाई 26 मई तक स्थगित की

LiveLaw News Network

24 May 2021 10:07 AM GMT

  • नारदा घोटाला केस : कलकत्ता हाईकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने टीएमसी नेताओं की जमानत से संबंधित मामले की सुनवाई 26 मई तक स्थगित की

    कलकत्ता हाईकोर्ट के एसीजे राजेश बिंदल, जस्टिस हरीश टंडन, जस्टिस आईपी मुखर्जी, जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस सौमेन सेन की पांच जजों की बेंच ने सोमवार को हिरासत में रखे तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की जमानत से संबंधित मामले की सुनवाई 26 मई तक स्थगित की।

    दरअसल, चारों नेताओं को नारदा घोटाला मामले में सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी के बाद से 17 मई से ही हिरासत रखा है। पीठ मामले की सुनवाई परसों तक के लिए टाली।

    सीबीआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई को कल तक के लिए टालने का अनुरोध किया क्योंकि सीबीआई ने 21 मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें टीएमसी नेताओं को हाउस अरेस्ट करने की अनुमति दी गई थी और यह कि एजेंसी कल मामले को शीर्ष अदालत में सूचीबद्ध कराने का प्रयास कर रही है।

    पीठ ने तुरंत सुनवाई स्थगित नहीं की और मामले में तैयार किए जाने वाले मुद्दों पर दो घंटे से अधिक लंबी सुनवाई की।

    एसजी तुषार मेहता, महाधिवक्ता किशोर दत्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा ने उन मुद्दों के बारे में प्रस्तुतियां दीं जो मामले के लिए आवश्यक था।

    न्यायमूर्ति आईपी मुखर्जी ने कहा कि एक मुद्दा यह है कि अगर 7 साल से अधिक समय तक जांच के दौरान आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है तो आरोप पत्र दाखिल करने के बाद अचानक गिरफ्तारी का क्या कारण है।

    न्यायाधीश ने कहा कि यदि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग 7 साल से अधिक समय से नहीं किया गया है तो उन्हें अब अचानक क्यों गिरफ्तार किया जाना चाहिए? यह मुद्दों में से एक है।"

    सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अगर अदालत जमानत के मुद्दे पर विचार कर रही होती तो यह एक मुद्दा बनता है। उन्होंने कहा कि चूंकि मुद्दा सामूहिक विरोध के कारण निचली अदालत की कार्यवाही के उल्लंघन का है, इस पर अकेले विचार नहीं किया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति सौमेन सेन ने कहा कि एक और मुद्दा यह है कि क्या सीआरपीसी की धारा 407 (2) के तहत जमानत रद्द करने के आवेदन के बिना और सीआरपीसी की धारा 407 के तहत स्थानांतरण की शक्तियों का प्रयोग करते हुए पहले से दी गई जमानत पर रोक लगाई जा सकती है।

    वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने इस पर प्रस्तुत किया कि उच्च न्यायालय के समक्ष सीबीआई द्वारा की गई सीआरपीसी की धारा 407 के तहत आवेदन न्यायालय द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिए कोई परिस्थिति नहीं बनाता है।

    एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि धारा 407 आवेदन के लिए यह परीक्षण है कि न्यायाधीश मामले की सुनवाई करने में सक्षम नहीं थे या वकीलों को बहस करने से रोका गया था।

    एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मामले को सुना। विशेष न्यायाधीश ने न्याय तक पहुंच में बाधा डालने या सुनवाई बाधित होने का कोई संकेत नहीं दिया। विशेष न्यायाधीश ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है।

    हाईकोर्ट जमानत याचिकाओं पर नए सिरे से सुनवाई कर सकता है: सीबीआई की दलीलें

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि चार टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी और उन्हें मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से रोकने के लिए सुनियोजित प्रयास किए गए थे। उन्होंने कहा कि 17 मई की ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही शून्य और गैर-कानूनी है और उच्च न्यायालय से गिरफ्तार टीएमसी नेताओं की जमानत याचिकाओं पर नए सिरे से सुनवाई करने का आग्रह किया।

    एसजी ने इस संबंध में कहा कि सीबीआई कार्यालय के बाहर सीएम के नेतृत्व वाले धरने और उसके बाद पथराव हुआ और एजेंसी को अपने मामले में ठीक से बहस करने से रोका गया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि केस डायरी की भौतिक प्रति भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं की जा सकी और अंततः जमानत आदेश पारित किया गया।

    वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि केस डायरी का ट्रायल कोर्ट के समक्ष कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि जांच समाप्त हो गई है। उन्होंने कहा, सीबीआई को केस डायरी पेश करने से रोकने के लिए मेहता के तर्क की कोई प्रासंगिकता नहीं है क्योंकि केस डायरी को कानूनी रूप से पेश नहीं किया जा सकता है।

    खंडपीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष सीबीआई का आवेदन कंकाल के समान है और एक मुद्दा यह है कि क्या उच्च न्यायालय सीआरपीसी की धारा 407 के तहत एक आवेदन में बिना नोटिस के जमानत आदेश पर रोक लगा सकता है, जब रद्द करने की मांग करने वाला कोई आवेदन नहीं है।

    एसजी ने जवाब दिया कि 19 मई को स्थानांतरण के लिए सीआरपीसी की धारा 407 के तहत एक विस्तृत आवेदन दायर किया गया था। उन्होंने बेंच को बताया कि एजेंसी ने 17 मई की ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही को अमान्य और गैर-कानूनी घोषित करने की मांग करते हुए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत संविधान के अनुच्छेद 226 और निहित शक्तियों के तहत उच्च न्यायालय के रिट अधिकार क्षेत्र को भी लागू किया था।

    एडवोकेट सिंघवी ने पूछा कि क्या बाद के चरण में दिए गए आवेदन को 17 तारीख को दिए गए पत्र और मौखिक उल्लेख के लिए पूर्वव्यापी सत्यापन दिया जा सकता है। एसजी ने तर्क दिया कि पहला मुद्दा यह है कि क्या अदालत जांच एजेंसी द्वारा किए गए एक पत्र और मौखिक प्रस्तुतीकरण पर कार्रवाई कर सकती है जब घटनाएं सार्वजनिक रूप से घटित हुई। एसजी ने कहा कि पूरा मीडिया इसे कैप्चर कर रहा था। दूसरा मुद्दा एसजी ने बताया कि धारा 407 के तहत अदालत के अधिकार क्षेत्र की रूपरेखा से संबंधित है। तीसरा मुद्दा होगा उन्होंने कहा कि क्या डिवीजन बेंच मामले पर विचार कर सकती थी, जब रोस्टर के अनुसार जमानत और स्थानांतरण एकल पीठ के समक्ष होते हैं।

    एडवोकेट लूथरा और एडवोकेट सिंघवी दोनों ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 407 के तहत शक्तियों का प्रयोग करके जमानत रद्द नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी बताया कि खंडपीठ का आदेश आरोपियों को सुने बिना पारित किया गया और तथाकथित अंतरिम राहत अंतिम राहत की प्रकृति में है क्योंकि चारों नेताओं की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती जारी है।

    एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि क्या 17 मई को डिवीजन बेंच द्वारा सीआरपीसी की धारा 407 शक्तियों का वैध प्रयोग किया गया है, जिसमें पहले से ही दी गई जमानत की शक्ति शामिल है? यह मुद्दा नंबर 1 है।

    एडवोकेट लूथरा ने कहा कि जमानत एक न्यायिक आदेश है। इसे धारा 407 या अनुच्छेद 226 के तहत रद्द नहीं किया जा सकता है। एकमात्र उपाय धारा 439(2) सीआरपीसी या 482 है। यहां तक कि न्यायिक हिरासत भी स्वतंत्रता में कटौती है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि मामले को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक विशेष अपराध और विशेष अदालत है।

    एडवोकेट लूथरा ने कहा कि सीबीआई का अनुरोध एआर अंतुले जैसी मिसालों के विपरीत है। वकीलों ने मुकदमे की कार्यवाही को गलत घोषित करने की सीबीआई की याचिका का भी विरोध किया। सिंघवी ने विरोध प्रदर्शन को लोकतांत्रिक विरोध कहा और प्रस्तुत किया कि केवल ट्रायल कोर्ट के बाहर प्रदर्शनकारियों की उपस्थिति न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित नहीं करती क्योंकि सुनवाई वर्चुअल थी।

    एडवोकेट सिंघवी ने तर्क दिया कि नंबर 1, सुनवाई वर्चुअल मोड में हुई। नंबर 2, कोई मंत्री अदालत में नहीं गया। नंबर 3, न्याय तक पहुंच में बाधा नहीं आई। नंबर 4, आरोपी की सुनवाई के बिना जमानत के फैसले को पलटना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि केवल एक ही मुद्दा है- क्या जिन व्यक्तियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत दी गई थी, उन्हें स्वतंत्रता पर रिहा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या 17 मई के विशेष न्यायाधीश के आदेश को चलने देना चाहिए? यही एकमात्र मुद्दा है।'

    एडवोकेट सिंघवी ने आगे कहा कि प्रक्रिया न्यायोचित होनी चाहिए, खासकर जब व्यक्तिगत स्वतंत्रता शामिल हो। क्या 17 मई को खंडपीठ द्वारा धारा 407 शक्तियों का वैध प्रयोग किया गया है, जिसमें पहले से ही दी गई जमानत की शक्ति शामिल है?" सिंघवी ने कहा कि दूसरा मुद्दा यह है कि क्या आरोपी जमानत के हकदार हैं और क्या पहले से दी गई जमानत को वापस लिया जा सकता है? उन्होंने कहा कि तीसरा मुद्दा, जमानत को उलटते समय आरोपियों को नहीं सुनना नैसर्गिक न्याय और निष्पक्ष है।

    सिंघवी गिरफ्तारी की वैधता पर भी सवाल उठाते हैं क्योंकि गिरफ्तारी को प्रभावी करने से पहले सीबीआई ने स्पीकर से मंजूरी नहीं ली थी।

    एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि सीधे राज्यपाल से मंजूरी कानून सही नहीं है क्योंकि संविधान पीठ के फैसले के अनुसार विधायकों को मंजूरी देने का अधिकार स्पीकर के पास है। सिंघवी ने जोर देकर कहा कि जमानत के ट्रिपल टेस्ट मामले में संतुष्ट हैं और आरोपियों के भागने का कोई खतरा नहीं है क्योंकि वे विधायक और मंत्री हैं और गिरफ्तारी 7 साल बाद हुई।

    एडवोकेट लूथरा ने इस संदर्भ में प्रस्तुत किया कि यह एक ऐसा मामला है जहां गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग किया गया है। आवाज के सैंपल 2019 में लिए गए थे। आवाज के सैंपल पर एक रिपोर्ट प्राप्त किए बिना जो एकमात्र सबूत है, एक आरोप पत्र दायर किया गया था। चार्जशीट राज्यपाल के समक्ष रखी गई थी। चार्जशीट के बाद भी पुलिस द्वारा सीधे हिरासत में नहीं लिया जाता है। अन्य आरोपियों के खिलाफ आगे की जांच आरोपी की पुलिस हिरासत का आधार नहीं है जिसके खिलाफ जांच खत्म हो गई है।

    महाधिवक्ता की प्रस्तुतियां

    महाधिवक्ता ने निम्नलिखित बिंदु उठाए;

    1. क्या कथित कानून और व्यवस्था की समस्याओं के आधार पर न्यायिक आदेश को उलटा जा सकता है? यह एक मुद्दा है।

    2. क्या कानून और व्यवस्था के आधार पर एक जांच एजेंसी याचिका की मदद से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम कर सकती है।

    महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय का कोई मूल आपराधिक अधिकार क्षेत्र नहीं है और इसलिए यह मुद्दा है कि क्या सीबीआई की उस मामले को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की प्रार्थना अक्षम्य है।

    पृष्ठभूमि

    कलकत्ता उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने 21 मई को तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं - फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, मदन मित्रा और सोवन चटर्जी की जमानत से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिन्हें नारदा घोटाला मामले में सीबीआई ने उनकी गिरफ्तारी के बाद से 17 मई से हिरासत रखा है। इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजा गया था।

    न्यायमूर्ति बनर्जी ने अंतरिम जमानत की अनुमति देते हुए एक आदेश पारित किया था जबकि एसीजे बिंदल असहमत थे और कहा था कि गिरफ्तार किए गए चार टीएमसी नेताओं को हाउस अरेस्ट किया जाना चाहिए, जिसके कारण संदर्भ हुआ। तदनुसार कुछ समय के लिए आरोपियों को हाउस अरेस्ट करने निर्देश दिया गया और उन्हें फाइलों तक पहुंचने, वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अधिकारियों से मिलने की अनुमति दी गई थी ताकि उन्हें अपने कार्यों का निर्वहन करने की अनुमति मिल सके।

    बेंच ने हाउस अरेस्ट के आदेश पर रोक लगाने के सीबीआई के अनुरोध को खारिज कर दिया था। इसने टीएमसी नेताओं के वकीलों द्वारा अंतरिम जमानत पर रिहा करने के अनुरोध को भी अस्वीकार कर दिया था।

    एसीजे बिंदल ने बाद में मामले की सुनवाई के लिए एसीजे बिंदल, और जस्टिस आईपी मुखर्जी, हरीश टंडन, सौमेन सेन और अरिजीत बनर्जी की पांच जजों की बेंच का गठन किया।

    17 मई को पीठ ने कोकाटा में विशेष सीबीआई अदालत द्वारा तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और सोवन चटर्जी को दी गई जमानत पर रोक लगा दी थी। इन्हें 17 मई को सीबीआई ने नाटकीय रूप से गिरफ्तार किया था।

    पीठ ने सीबीआई द्वारा भेजे गए एक पत्र के आधार पर नाटकीय देर रात सुनवाई के बाद स्थगन आदेश पारित किया था। इसमें मुख्यमंत्री और कानून मंत्री के नेतृत्व में टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों द्वारा निचली अदालत पर "अभूतपूर्व भीड़ दबाव" का हवाला देते हुए मामले को हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

    अगले दिन, टीएमसी नेताओं ने इस आधार पर स्थगन आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए आवेदन दायर किया कि यह उन्हें नोटिस जारी किए बिना पारित किया गया था।

    पीठ ने 19 मई को सीबीआई के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और गिरफ्तार टीएमसी नेताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ अभिषेक मनु सिंघवी और सिद्धार्थ लूथरा को सुना था। सिंघवी और लूथरा ने इस आधार पर अंतरिम जमानत के लिए प्रार्थना की थी कि आरोपी वृद्ध व्यक्ति हैं और बीमार हैं। पीठ को बताया गया कि गिरफ्तार किए गए तीन लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और उनमें से एक सोवन चटर्जी अभी भी जेल में है।

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