[एमवी एक्ट] मुआवजे के लिए मृतक की वास्तविक आय का निर्धारण करने के लिए नियोक्ता की ओर से जारी 'फॉर्म 16' विश्वसनीय सबूत: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

25 Nov 2022 2:51 PM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आयकर के उद्देश्य से एक नियोक्ता की ओर से जारी फॉर्म 16 में यदि सैलरी स्लिप से ज्यादा पारिश्रमिक दिखाया जाता है तो यह मोटर वाहन अधिनियम के तहत मुआवजे के लिए एक विश्वसनीय सबूत है।

    जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने कहा,

    "हमारा मानना है कि फॉर्म 16 मृतक की वास्तविक आय का निर्धारण करने के लिए एक विश्वसनीय सबूत है। इसका कारण यह है कि फॉर्म 16 पर मृतक के नियोक्ता ने हस्ताक्षर किए थे....।"

    पीठ ने कहा,

    "जब भी कोई ट्रिब्यूनल या कोर्ट दुर्घटना के मामलों में मुआवजे की राशि तय करता है, तो इसमें कुछ अनुमान, कुछ काल्पनिक विचार और कुछ सहानुभूति शामिल होती है। इस प्रकार, ट्रिब्यूनल को फॉर्म 16 की प्रविष्टियों पर विचार करना चाहिए, जिसमें मृतक की कुल आय दिखाई जाती है।"

    पीठ ने टाटा एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को मृतक विलास रामकुमार देशपांडे के परिजनों को 8% ब्याज के साथ 2,78,76,708 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया। दिसंबर 2012 में मुंबई-आगरा हाईवे पर दुर्घटना के चार महीने के भीतर मुआवजे के भुगतान का आदेश दिया गया। दुर्घटना के समय देशपांडे 46 साल के थे और मुंबई में अल्ट्राटेक सीमेंट लिमिटेड के एक वरिष्ठ प्रबंधक थे।

    दुर्घटना का कारण यह था कि एक वाहन डिवाइडर से टकराया, सड़क के दूसरी ओर चला गया और देशपांडे की कार को टक्कर मार दी, जिसमें उनकी तुरंत मौत हो गई।

    मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने फरवरी 2018 में 1,76,08,400 रुपये के मुआवजे का आदेश दिया था। अधिकरण ने याचिकाकर्ता की सैलरी स्लिप पर भरोसा किया था, न कि फॉर्म 16 पर। अधिकरण ने कहा कि व्यापार में उतार-चढ़ाव हो सकते हैं और इसलिए, ' वेतन के अलावा किसी आय पर विचार करना ठीक नहीं है।

    देशपांडे की पत्नी, दो नाबालिग बच्चे और बीमार माता-पिता ने मुआवजे में वृद्धि की अपील के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। परिवार की ओर पेश एडवोकेट श्रीशांक चव्हाणके ने प्रस्तुत किया कि फॉर्म 16 को आईटी रिटर्न के साथ पेश एक आधिकारिक दस्तावेज माना जाना चाहिए।

    फॉर्म 16 में बेसिक सैलरी के अलावा और भी कई मद हैं, जिनके तहत सालाना इनकम को दिखाया जाता है। उन्होंने नियोक्ता के एक पत्र पर भरोसा किया, जिसमें असाधारण प्रदर्शन के लिए जुलाई 2012 से उन्हें संशोधित वेतन देने की जानकारी दी गई थी। नियोक्ता के प्रशासनिक अधिकारी की भी जांच की गई।

    दुर्घटना में शामिल आपत्तिजनक वाहन चला रही प्रभा गुप्ता कोर्ट में पेश नहीं हुईं। हालांकि, टाटा एआईजी ने इस आधार पर दावे का विरोध किया कि पत्र में यह खुलासा नहीं किया गया था कि देशपांडे को हर साल समान भत्ते दिए जाते थे। इसलिए ट्रिब्यूनल ने सैलरी स्लिपर पर भरोसा किया।

    शुरुआत में अदालत ने माना कि फॉर्म 16 एक विश्वसनीय सबूत है, खासकर जब प्रतिवादी इसके खिलाफ कुछ भी दिखाने में असमर्थ हो।

    पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल का यह निष्कर्ष कि व्यापार की प्रगति में हमेशा उतार-चढ़ाव होते हैं और इसलिए वेतन के अतिरिक्त मृतक की किसी आय पर विचार करना उचित नहीं होगा, स्वीकार्य नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    "ट्रिब्यूनल ने केवल सैलरी स्लिप में दिखाई गई आय पर विचार करके गलती की है। जैसा कि यहां ऊपर कहा गया है, रिकॉर्ड में पेश किए गए साक्ष्य और दस्तावेजों से पता चलता है कि मृतक मूल वेतन के अलावा अपने प्रदर्शन के आधार पर अतिरिक्त पारिश्रमिक का भी हकदार होता ‌था।

    रिकॉर्ड पर साक्ष्य यह भी दिखाता है कि मृतक का प्रदर्शन बहुत अच्छा था और इस प्रकार अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि मृतक हमेशा अतिरिक्त पारिश्रमिक का हकदार होता। इस प्रकार, फॉर्म 16 में दिखाई गई आय को मृतक की कुल आय माना जाए।"

    लेकिन चूंकि इस पत्र में संशोधित "सीटीसी" नहीं थी, इसलिए फॉर्म 16 में दिखाए गए आय के आंकड़ों पर विचार किया जाएगा। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की गणना नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम प्रणय सेठी के दिशानिर्देशों के आधार पर सटीक थी।

    जैसा कि यहां ऊपर कहा गया है, रिकॉर्ड में पेश किए गए साक्ष्य और दस्तावेज बताते हैं कि मृतक मूल वेतन के अलावा अपने प्रदर्शन के कारण अतिरिक्त पारिश्रमिक का भी हकदार था।

    केस टाइटलः अंजलि विलास देशपांडे बनाम प्रभा राजेंद्र गुप्ता

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