आपसी सहमति से तलाकः गुजरात हाईकोर्ट ने 12 दिनों तक साथ रहे कपल के लिए 6 महीने का कूलिंग पीरियड माफ करने से इनकार किया
LiveLaw News Network
27 Jan 2022 6:10 PM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है जिसमें केवल 12 दिनों तक एक-दूसरे के साथ रहने वाले कपल के लिए वैधानिक छह महीने की कूलिंग अवधि को माफ करने से इनकार कर दिया था। इस कपल ने आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की है।
जस्टिस ए सी जोशी की पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने कूलिंग पीरियड को माफ करने से इनकार करते हुए सही आदेश पारित किया है, इसलिए फैमिली कोर्ट के आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि तलाक के मामलों में, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी (2) के तहत छह महीने की प्रतीक्षा अवधि / कूलिंग-ऑफ पीरियड का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान के अनुसार, आपसी सहमति से तलाक लेने वाले कपल को पहले 12 महीने की अलगाव अवधि स्थापित करनी होती है और उसके बाद 6 महीने का ''कूलिंग-ऑफ'' पीरियड होता है।
सुप्रीम कोर्ट वर्ष 2017 में (अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर), पहले ही यह कह चुका है कि धारा 13-बी (2) के तहत अवधि अनिवार्य नहीं है।
संक्षेप में मामला
याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 226 और 227 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, अहमदाबाद द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई। फैमिली कोर्ट ने उस आवेदन को खारिज कर दिया था,जिसमें तलाक की कार्यवाही में 6 महीने की कूलिंग अवधि को माफ करने या उससे छूट देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ताओं के बीच शादी हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार 8 दिसंबर, 2020 को हुई थी, लेकिन याचिकाकर्ताओं के बीच हुए मतभेदों के कारण, शादी के 12 दिन बाद ही वह अलग-अलग रहने लग गए थे।
जब सुलह के सभी प्रयास विफल हो गए, तो पार्टियों ने आपसी सहमति से अहमदाबाद में फैमिली कोर्ट के समक्ष तलाक के लिए याचिका दायर की।
दोनों याचिकाकर्ताओं ने आपसी सहमति से तलाक के लिए एक समझौता ज्ञापन ('एमओयू') पर भी हस्ताक्षर किए। उक्त एमओयू के अनुसार, याचिकाकर्ता एक दूसरे के खिलाफ दायर सभी आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए सहमत हो गए।
फैमिली जज ने पहले याचिकाकर्ताओं को मध्यस्थता के लिए भेजा, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। उसके बाद, याचिकाकर्ताओं ने छह महीने की कूलिंग अवधि को माफ करने के लिए एक आवेदन दायर किया। जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया। उसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में वर्तमान याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से अमित कुमार बनाम सुमन बेनीवाल, सिविल अपील नंबर 7650/2021 के मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करके छह महीने की वैधानिक अवधि को माफ कर दिया था।
कोर्ट का आदेश
फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाते हुए, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका दायर की है और इस तरह के अनुच्छेद के तहत शक्तियों का प्रयोग अनिवार्य रूप से कड़ाई से किया है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट, अहमदाबाद ने सही माना है कि सुमन बेनीवाल मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने की वैधानिक अवधि को माफ करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया था और प्रधान न्यायाधीश , फैमिली कोर्ट अहमदाबाद को भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत ऐसी शक्ति का प्रयोग करने की कोई अधिकार नहीं है।
पूर्वाेक्त तथ्यात्मक परिदृश्य में, यह न्यायालय प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, अहमदाबाद द्वारा दर्ज निष्कर्षों से पूरी तरह सहमत है,इसलिए निचली अदालत द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
केस का शीर्षक - सुजल जयंतीभाई मायात्रा बनाम एन
केस उद्धरण-2022 लाइव लॉ (गुजरात) 4
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