मुस्लिम महिला ने हिंदू पुरुष से शादी करने से पहले हिंदू धर्म में परिवर्तन नहीं किया, विवाह मान्य नहीं, हालांकि युगल लिव-इन-रिलेशन में रहने के लिए स्वतंत्र हैं: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
Sparsh Upadhyay
14 March 2021 11:07 AM IST
एक अंतर-धार्मिक दंपति द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर विचार करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में देखा कि एक मुस्लिम महिला और एक हिंदू पुरुष के बीच विवाह इसलिए मान्य नहीं होगा क्योंकि महिला, हिंदू संस्कार के अनुसार विवाह से पहले, हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं हुई थी।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की पीठ ने हालांकि यह भी फैसला सुनाया कि दम्पत्ति, विवाह की प्रकृति में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के और साथ ही अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए भी हकदार होंगे।
न्यायालय के समक्ष मामला
याचिकाकर्ता नंबर 1, एक मुस्लिम लड़की (18 साल की उम्र) और याचिकाकर्ता नंबर 2, एक हिंदू लड़का (25 साल की उम्र) ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और अपने जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की मांग की।
उन्होंने कहा कि वे बालिग हैं, उन्होंने 15 जनवरी 2021 को शिव मंदिर, ग्राम दुराना में हिंदू संस्कार और अनुष्ठानों के अनुसार विवाह किया और याचिकाकर्ता के ऊपर जीवन और स्वतंत्रता के लिए खतरा है।
कोर्ट का अवलोकन
इस मामले में, अदालत ने उल्लेख किया कि मुस्लिम लड़की और हिंदू लड़के के बीच हिंदू संस्कार और समारोहों से हुआ विवाह मान्य नहीं होगा, यदि महिला विवाह से पहले हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं हुई थी।
हालाँकि, अदालत ने आगे कहा,
"याचिकाकर्ता नंबर 1 (महिला) बालिग होने के नाते अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ, उसकी पसंद की जगह पर रहने की हकदार है और दोनों याचिकाकर्ता, विवाह की प्रकृति में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने के और उनके जीवन की सुरक्षा के लिए भी और स्वतंत्रता के हकदार होंगे।"
इस संबंध में, न्यायालय ने नंदकुमार और एक अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य: 2018 (2) आरसीआर (सिविल) 899 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का भी उल्लेख किया ।
तदनुसार, याचिकाकर्ताओं की शिकायतों को देखने के लिए पुलिस अधीक्षक, अंबाला शहर को निर्देश के साथ याचिका का निपटारा किया गया।
इसके अलावा, एसपी को निर्देशित किया गया है कि वे याचिककर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए उचित कार्रवाई करें।
संबंधित समाचार में, पिछले महीने, एक मुस्लिम दंपति द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह देखा था कि "एक मुस्लिम व्यक्ति, अपनी पूर्व पत्नी को तलाक दिए बिना एक से अधिक बार शादी कर सकता है, लेकिन एक मुस्लिम महिला पर यह नियम लागू नहीं होता है।"
न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ ने कहा था कि याचिकाकर्ता नंबर 1, मुस्लिम महिला (जो पहले शादी कर चुकी थी) ने याचिकाकर्ता नंबर 2, मुस्लिम आदमी से शादी करने से पहले अपने पहले पति से कानूनी रूप से वैध तलाक नहीं लिया था।
इसके अलावा, पिछले महीने, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक मुस्लिम लड़की (17 वर्षीय) को सुरक्षा प्रदान की, जिसने एक मुस्लिम व्यक्ति (36-वर्षीय) से शादी की, यह देखते हुए कि दोनों मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत विवाह योग्य आयु के हैं।
न्यायमूर्ति अलका सरीन की खंडपीठ मुस्लिम पति-पत्नी (याचिकाकर्ताओं) द्वारा दायर एक संरक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
विशेष रूप से, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में एक विवाहित जोड़े द्वारा दायर पुलिस सुरक्षा के लिए एक रिट याचिका को खारिज कर दिया था।
अदालत ने यह उल्लेख किया कि लड़की, जन्म से मुस्लिम थी और उसने शादी से एक महीने पहले ही अपना धर्म बदलकर हिंदू धर्म अपना लिया था।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी ने कहा था कि इससे स्पष्ट होता है कि धर्मांतरण केवल विवाह के उद्देश्य से हुआ है।
इस पर ध्यान देते हुए, न्यायालय ने रिट याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मामले में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं है।
हालांकि, एक डिवीजन बेंच ने 11 नवंबर को इस फैसले को कानून के रूप में अनुचित घोषित किया। डिवीजन बेंच के फैसले को यहां पढ़ा जा सकता है।