लॉ कॉलेजों की मशरूमिंग- यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अवसरों के निर्माण के नाम पर शिक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता न किया जाए: मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
27 March 2021 7:03 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार (23 मार्च) को नए निजी लॉ कॉलेजों की संख्या को कम करने के लिए नियम बनाने की मांग वाली याचिका पर कहा कि यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आने वाले नए लॉ कॉलेजों द्वारा अवसरों के निर्माण के नाम पर शिक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता न किया जा सके।
मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की खंडपीठ ने कहा कि मौजूदा लॉ कॉलेजों में उपलब्ध शिक्षा के मानक और उपलब्ध बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
न्यायालय के समक्ष पेश राज्य बार काउंसिल ने प्रस्तुत किया कि वह सतर्क है और उसके द्वारा पर्याप्त कदम उठाए जा रहे हैं।
आगे कहा कि जब तक पूरे देश में एकरूपता नहीं होगी, तब तक चाहे वह बार काउंसिल ऑफ इंडिया हो या कोर्ट के आदेशों के अनुसार इस स्थिति को सही से ठीक नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि,
" इसका मतलब बार काउंसिल कहना चाहता है कि एक राज्य के लॉ कॉलेजों के विनियमन कोई का मतलब नहीं रह जाता है जब दूसरे राज्यों के लॉ कॉलेज जो विनियमित नहीं है उनमें आसानी से प्रवेश की अनुमति दी जाती है।"
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"बार काउंसिल द्वारा मामले को गहराई से देखा जाना चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर संभावित आदेशों की मांग की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आने वाले नए लॉ कॉलेजों द्वारा अवसरों के निर्माण के नाम पर शिक्षा की गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं किया जाएगा।"
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका की प्रकृति पर कोई भी परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है।
पीठ ने आगे कहा कि,
"चूंकि इस राज्य की सीमाओं के भीतर बनने वाले नए लॉ कॉलेजों को विनियमित करने पर भी कोई खास प्रभावी नहीं पड़ेगा क्योंकि पड़ोसी राज्यों के लॉ कॉलेजों में प्रवेश आसानी से मिल जाएगा। इसलिए इस स्तर पर कोई सार्थक आदेश जारी करना संभव नहीं है।"
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आदेश में बार काउंसिल को याचिकाकर्ता की ओर से पेश होने पर विचार करने से नहीं रोका गया है और याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई अगले चार सप्ताह के भीतर होगी।
संबंधित समाचार में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2020 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा नए लॉ कॉलेजों के उद्घाटन के लिए तीन साल की मोहलत देने के आदेश को पलट दिया था क्योंकि इस पर भारतीय संविधान का अधिकारातीत है।
न्यायमूर्ति रेखा मित्तल की एकल पीठ ने 4 दिसंबर 2020 को दिए एक फैसले में कहा था कि बीसीआई कानूनी शिक्षा को विनियमित करने के बहाने नए लॉ कॉलेजों के उद्घाटन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकती है।
पीठ ने आदेश में कहा था कि,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीसीआई दिशानिर्देश / परिपत्र आदि जारी कर सकता है और इसके अनुपालन के लिए और साथ ही 2008 के नियमों के तहत नए कॉलेज को मंजूरी दे सकता है और कानूनी शिक्षा के लिए पहले से ही देश भर में स्थापित कॉलेजों / संस्थानों को नियमों के अनुपालन करने के लिए निर्देश दे सकता है, लेकिन इस बहाने राज्यों में कानूनी शिक्षा प्रदान करने के लिए नए संस्थानों के उद्घाटन पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा सकता है।"
केस का शीर्षक – एम.डी. अशोक बनाम तमिलनाडु राज्य सरकार के मुख्य सचिव और अन्य [W.P.No.1858 of 2021]