मप्र हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा ज़ब्त लूटी गई संपत्ति का खुलासा शिकायतकर्ता द्वारा नहीं करने पर संपत्ति आयकर विभाग को दी

LiveLaw News Network

14 March 2022 3:37 PM GMT

  • Writ Of Habeas Corpus Will Not Lie When Adoptive Mother Seeks Child

    MP High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में डकैती के मामले में एक शिकायतकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया। इसमें डकैती की गई 45 लाख रुपए नकदी की बरामदगी की मांग की गई थी।

    अदालत ने माना कि चूंकि उक्त राशि का खुलासा घटना से पहले आयकर विभाग (आईटी विभाग) के समक्ष नहीं किया गया था, इसलिए इसे मूल्यांकन के लिए आईटी विभाग को सौंप दिया गया।

    जस्टिस आनंद पाठक निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाले आवेदक द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे। इसमें सीआरपीसी की धारा 457 के तहत उसका आवेदन खारिज कर दिया गया था।

    आवेदक का मामला यह था कि वह 1,24,00,000 रुपये की डकैती का शिकार हुआ। बाद में आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने कुछ चांदी के आभूषणों के साथ 53,16,000 रुपये नकद बरामद किए। आवेदक/शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 457 के तहत एक आवेदन दायर कर लूटी गई संपत्ति में अपने हिस्से की राशि यानी रु. 45,16,000, की मांग की, लेकिन आईटी विभाग द्वारा दायर एक आपत्ति पर निचली अदालत ने इसे खारिज कर दिया।

    आईटी विभाग ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि संपत्ति का खुलासा किया जाना चाहिए, लेकिन खुलासा नहीं किया गया है। यह संपत्ति आयकर अधिनियम, 1961 ("1961 का अधिनियम" की धारा 132 ए (1) (सी) के दायरे में आती है, इसलिए उन्होंने इस मामले में सही हस्तक्षेप किया। तर्क दिया गया कि बरामद की गई नकद राशि का खुलासा आवेदक और अन्य शिकायतकर्ताओं द्वारा उनके समक्ष कभी नहीं किया गया। आईटी विभाग ने दावा किया कि आवेदक कृषि आय की आड़ में इनकम टैक्स देने से बचने की कोशिश कर रहा है इसलिए, उसने आवेदन को खारिज करने की प्रार्थना की।

    आईटी विभाग के सबमिशन पर विचार करते हुए कोर्ट ने कहा कि आवेदक ने आरोपी व्यक्तियों से बरामद की गई संपत्ति के लिए कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की।

    आयकर विभाग के आरोपों से और वास्तविक स्थिति में याचिकाकर्ता द्वारा यह प्रदर्शित करने के लिए कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया कि आयकर रिटर्न किसी भी समय आयकर प्राधिकरण को उसकी इतनी बड़ी आय का खुलासा करता है। इस न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता की ओर से एक चार्टर्ड एकाउंटेंट द्वारा लिखा गया एक पत्र दिनांक 15.07.2021 और आयकर प्राधिकरण के साथ-साथ नीचे की अदालत को संबोधित किया गया। इसमें विवरण का उल्लेख किया गया और स्पष्ट रूप से सूचना दी गई, लेकिन अधिनियम 1961 धारा 132 का दायरा का ए (1) (सी) वर्तमान विवाद को शामिल करने के लिए पर्याप्त व्यापक प्रतीत होता है।

    न्यायालय ने तब भारत संघ, आयकर विभाग प्रतिनिधित्व आयकर के उप निदेशक, (जांच), आयकर कार्यालय, कोझीकोड बनाम केरल राज्य में केरल हाईकोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया। इसमें हाईकोर्ट इसी तरह के तथ्यों से निपटने के दौरान आयकर अधिनियम की धारा 132 ए के साथ-साथ धारा 132 बी के प्रभाव पर विचार किया और निष्कर्ष निकाला कि आयकर विभाग को राशि सौंपना कार्रवाई का उचित तरीका होगा।

    मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स के संदर्भ में 1961 के अधिनियम की धारा 132A के प्रावधानों का अवलोकन करते हुए न्यायालय ने कहा,

    अधिनियम की धारा 132 ए के अवलोकन से पता चलता है कि अधिनियम 1961 के तहत आयकर प्राधिकरण के पास किसी भी अधिकारी या प्राधिकरण से किसी भी अन्य कानून के तहत ऐसी संपत्ति (वर्तमान मामले में नकद राशि) के कब्जे या नियंत्रण के लिए मांग करने की शक्ति है। यदि उक्त आय या संपत्ति को आयकर अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रकट नहीं किया गया है। जाहिर है, जब यह स्पष्ट है कि कथित रूप से याचिकाकर्ता से संबंधित आरोपी व्यक्तियों के कब्जे से विचाराधीन राशि जब्त की गई, लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा कभी भी आयकर प्राधिकरण को इसका खुलासा नहीं किया गया। इसलिए विभाग के पास धारा 132 ए (1) (सी) के तहत उपाय उपलब्ध है। इस प्रक्रिया का पालन धारा 132 बी द्वारा किया जाता है, जो अधिनियम 1961 की धारा 132 ए के तहत अपेक्षित होने के बाद व्यवहार के तरीके को विस्तृत करता है। धारा 132 ए के तहत शक्ति धारा 132 (खोज और जब्ती) की तुलना में अलग प्रतीत होती है।

    कोर्ट ने आगे कहा कि वर्तमान मामले में 1961 के अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आईटी विभाग को राशि सौंपना उचित होगा।

    यहां भी ऐसा प्रतीत होता है कि यदि राशि आयकर विभाग को नहीं सौंपी जाती है और याचिकाकर्ता को जारी की जाती है तो यह आयकर अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधान के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर सकती है। इसलिए, वास्तविक स्थिति में यह राशि उपयुक्त है। आयकर प्राधिकरण के पास जमा किया जाएगा और आयकर विभाग के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष कार्यवाही आयकर अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार निर्धारित समय के भीतर समाप्त की जाएगी। विभाग के खिलाफ आकलन का समय तेजी से चल रहा है, इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि आयकर विभाग निर्धारित समय के भीतर मूल्यांकन की कार्यवाही पूरी करेगा।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने आवेदन को खारिज कर दिया और निचली अदालत को आईटी विभाग के पक्ष में राशि तुरंत जारी करने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: जहर सिंह गुर्जर बनाम म.प्र. राज्य और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एमपी) 75

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