'DNA Test कराने का निर्देश व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संपत्ति विवाद मामले में बल्ड टेस्ट की अनुमति देने से इनकार किया

Brij Nandan

29 July 2022 10:04 AM GMT

  • DNA Test कराने का निर्देश व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने संपत्ति विवाद मामले में बल्ड टेस्ट की अनुमति देने से इनकार किया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें संपत्ति विवाद मुकदमे में किसी व्यक्ति को डीएनए टेस्ट (DNA Test) कराने के लिए मजबूर करने के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।

    कोर्ट ने माना कि साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 112 के तहत प्रदान की गई धारणा खंडन योग्य है और याचिकाकर्ता को मुकदमे के दौरान उक्त अनुमान का खंडन करने का अवसर मिलेगा।

    इसके अलावा, किसी व्यक्ति के डीएनए टेस्ट के आदेश देने वाले न्यायालयों की गंभीरता को देखते हुए जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया ने कहा,

    "बनारसी दास बनाम टीकू दत्ता (श्रीमती) और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 (4) एससीसी 449 में रिपोर्ट किया कि भारत में अदालतें निश्चित रूप से बल्ड टेस्ट का आदेश नहीं दे सकती हैं। इस आशय का एक मजबूत प्रथम दृष्टया मामला होना चाहिए कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत उत्पन्न अनुमान को दूर करने के लिए पति की कोई पहुंच नहीं है और अदालत को सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि बल्ड टेस्ट के आदेश का परिणाम क्या होगा। क्या इसका असर किसी बच्चे को नाजायज बच्चे या मां को बदचलन महिला करार देने का होगा।"

    डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश भी व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है।

    मामले के तथ्य यह थे कि याचिकाकर्ता के पति ने विभाजन के लिए दीवानी वाद दायर किया था। उनकी मृत्यु पर, याचिकाकर्ता को उनके कानूनी प्रतिनिधि के रूप में लाने के लिए एक आवेदन दिया गया था। उसी पर आपत्ति एक प्रतिवादी ने उठाई थी कि हेमलता को कानूनी प्रतिनिधि के रूप में पेश किया जाना चाहिए क्योंकि वह याचिकाकर्ता के पति की बेटी है।

    याचिकाकर्ता ने तब साक्ष्य अधिनियम के आदेश XXVI नियम 10 (ए) सीपीसी आर / डब्ल्यू धारा 45 के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसमें कहा गया कि हेमलता उसकी बेटी नहीं है और इसलिए उसके डीएनए टेस्ट के लिए प्रार्थना की ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह अपने पति की बेटी है या नहीं।

    हालांकि ट्रायल कोर्ट ने उसकी अर्जी खारिज कर दी। इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने खारिज करने के उक्त आदेश को चुनौती देने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ता ने कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि जहां संपत्ति का प्रश्न शामिल है और व्यक्ति की पितृत्व भी विवाद में है, डीएनए टेस्ट के लिए एक निर्देश जारी किया जा सकता है। अपने तर्क को साबित करने के लिए, उसने राधेश्याम बनाम कमला देवी और अन्य में अदालत के फैसले पर भरोसा किया।

    संबंधित विषय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित न्यायशास्त्र और साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों की जांच करते हुए कोर्ट ने माना कि यह निचली अदालत के निर्णय के अनुरूप है।

    कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता का यह मामला नहीं है कि हेमलता यादव का जन्म दिवंगत कप्तान सिंह के साथ उनकी शादी से पहले हुआ था। साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 के तहत प्रदान किया गया अनुमान एक खंडन योग्य अनुमान है और याचिकाकर्ता को मुकदमे में उक्त अनुमान का खंडन करने का हर अवसर मिलेगा।"

    तद्नुसार, इस कोर्ट का यह सुविचारित मत है कि विचारण न्यायालय ने हेमलता यादव को डीएनए टेस्ट कराने के लिए विवश करने के आवेदन को अस्वीकार कर कोई क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटि नहीं की।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, याचिकाकर्ता की प्रार्थना खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: उर्मिला सिंह बनाम सौदान सिंह एस एंड अन्य

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