विवाह सहायता योजना के तहत करोड़ों रुपये के गबन के आरोप में मप्र हाईकोर्ट ने जनपद पंचायत के सीईओ को जमानत देने से किया इनकार

Sharafat

13 Jun 2022 5:29 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ग्वालियर बेंच ने हाल ही में एक जनपद पंचायत के सीईओ को जमानत देने से इनकार कर दिया, जिस पर विवाह सहायता योजना के लाभार्थियों के लिए निर्धारित धन का कथित रूप से गबन करने का आरोप है।

    कोर्ट ने कहा कि

    " यह प्रथम दृष्टया सफेद पोश अपराध (white colour crime) का मामला है और यह एक बड़ा घोटाला प्रतीत होता है, जिसमें करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई। अन्य दोषियों की भूमिका के संबंध में आगे की जांच जारी है।

    अन्य दो आरोपी योगेंद्र शर्मा और हेमंत साहू न तो सरकारी कर्मचारी थे और न ही किसी भी तरह से संविदा कर्मचारी थे, लेकिन आवेदक के कहने पर काम कर रहे थे, इसलिए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ और सदस्य अपराध के गठन में शामिल होंगे। यह एक बड़ा घोटाला प्रतीत होता है जहां गरीब निर्माण श्रमिकों को विवाह सहायता योजना का लाभ देने के बहाने करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई।"

    जस्टिस आनंद पाठक जमानत आवेदन पर विचार कर रहे थे, जिसमें आवेदक पर आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 201, 120-बी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7,13 (1) और 13 (2) के तहत दंडनीय अपराधों के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, जनपद पंचायत सिरोंज के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर कार्यरत आवेदक ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए विवाह सहायता योजना के तहत असंगठित श्रमिक वर्ग के सदस्यों द्वारा कथित रूप से किए गए 6021 विवाह के बहाने 30,68,37,000 / - रुपए का गबन किया।

    राज्य सरकार द्वारा कर्मकार कल्याण मंडल (श्रमिक कल्याण बोर्ड) के माध्यम से प्रख्यापित उक्त योजना 18 से 60 आयु वर्ग के असंगठित श्रम के प्रत्येक सदस्य जिनकी शादी होती है, उन्हें वैरिफिकेशन के बाद 51,000/- रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

    आवेदक ने प्रस्तुत किया कि केवल 18 परिवारों को लाभार्थी बताया गया था और उनके खाते में कोई रुपए स्थानांतरित नहीं किये गये। उन्होंने कहा कि कुछ विभागीय पूछताछ की गई, लेकिन उनकी भूमिका पर कोई उंगली नहीं उठाई गई। उन्होंने आगे तर्क दिया कि पारदर्शिता बनाए रखने के लिए दूल्हा और दुल्हन पक्ष के हलफनामे के लिए पूछकर, यदि कोई हो, तो अंतर को पाटने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

    उन्होंने अदालत को बताया कि मामले में आरोपपत्र पहले ही दायर किया जा चुका है और इसलिए सबूतों/गवाहों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बहुत कम है। उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि वह मुकदमे में सहयोग करेंगे और उक्त आधार पर उन्होंने जमानत देने की प्रार्थना की।

    आवेदन का विरोध करते हुए राज्य ने प्रस्तुत किया कि आरोपपत्र में योजना के कार्यान्वयन के संबंध में आवेदक की ओर से स्पष्ट रूप से विसंगतियों का संकेत दिया गया है। राज्य ने आगे तर्क दिया कि आरोपों की गंभीर प्रकृति को देखते हुए तथ्य यह है कि आवेदक सबूत/गवाह के साथ छेड़छाड़ कर सकता है और जमानत के लिए कोई मामला नहीं बनाया गया और इसलिए आवेदन को खारिज कर दिया जाना चाहिए।

    पक्षकारों के सबमिशन और रिकॉर्ड पर दस्तावेजों की जांच करते हुए कोर्ट ने देखा कि मार्च 2020 और मई 2021 के बीच लॉकडाउन की अवधि को देखते हुए यह बहुत कम संभावना है कि आवेदक ने निर्माण श्रमिकों के परिवारों में 6,000 से अधिक व्यक्तियों की शादी की सुविधा प्रदान की हो। कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे कई लाभार्थी थे जिनका पोर्टल में रजिस्ट्रेशन भी नहीं था और फिर भी उन्हें लाभ मिला।

    आरोप पत्र में एफआईआर की सामग्री का अवलोकन यह बताता है कि आवेदक ने अप्रैल 2020 से मई, 2021 की अवधि के दौरान श्रमिकों के परिवारों में 6,000 से अधिक व्यक्तियों के विवाह की सुविधा प्रदान की, लेकिन संयोग से, उक्त अवधि समय के बड़े हिस्से में लॉक-डाउन की थी। इसलिए, सख्त लॉक-डाउन अवधि में इतनी बड़ी संख्या में शादियां होना ही संदेह पैदा करता है।

    इसके अलावा, कई लाभार्थी ऐसे थे जो इस तथ्य के कारण इसके हकदार नहीं थे कि उनके परिवारों में उस अवधि के दौरान किसी भी सदस्य की शादी नहीं होने वाली थी और न ही कई श्रमिक पोर्टल पर रजिस्टर्ड थे और अभी भी लाभ प्राप्त कर रहे थे।

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपों की प्रकृति, आवेदक की आधिकारिक स्थिति और तथ्य यह है कि अभियोजन पक्ष के गवाह, जिनमें से अधिकांश कमजोर गवाह हैं, उन्हें ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश किया जाना है, आवेदक द्वारा साक्ष्य / गवाह के साथ छेड़छाड़ की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने आगे कहा कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं, जिनके व्यापक प्रभाव हैं।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने माना कि आवेदन योग्यता रहित है और तदनुसार, आवेदन को खारिज कर दिया गया।


    केस टाइटल : शोबित त्रिपाठी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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