मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के 18 साल के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

Manisha Khatri

10 Nov 2022 3:30 PM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के 18 साल के आरोपी को जमानत देने से इनकार किया

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट,ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में एक 16 वर्षीय लड़की का पीछा करने और उसे आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में एक 18 वर्षीय लड़के को कड़ी फटकार लगाई।

    जस्टिस आनंद पाठक की एकल पीठ ने एक महिला पर पीछा करने और ताक-झांक के नतीजों के बारे में कड़ी टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि यह कार्य न केवल पीड़िता के मानस को नुकसान पहुंचाता है बल्कि समाज में भी एक गलत संदेश देता है-

    कुछ अपराध मानसिक लाभ देते हैं और कुछ अपराध मौद्रिक लाभ देते हैं। यहां, मामला मानसिक लाभ और दुखदायी सुख प्राप्त करने का है जहां आवेदक ने मृतका का पीछा किया, जो कि एक 16 साल की लड़की थी। किसी भी महिला का पीछा करना और ताक-झांक करना न केवल उसके लिए गहरी शर्मिंदगी और उत्पीड़न का कारण बनता है, बल्कि असुरक्षा की भावना भी पैदा करता है और उसके आत्मसम्मान को कम करता है, खासतौर पर समाज के सामंतवादी पैटर्न में जहां इस तरह के अपराध के अपराधी अपने कार्यों को ट्रॉफी के रूप में मानते हैं और समाज में यह संदेश देने की कोशिश करते हैं कि वह अपने शिकार/पीड़िता को अपनी मर्जी से पकड़ सकते हैं। स्टॉकहोम सिंड्रोम / हेलसिंकी सिंड्रोम से प्रेरित होने के कारण, पीड़ित कई बार अपराधी के सामने आत्मसमर्पण कर देता है और यह उसके दुस्साहस को अनुचित प्रीमियम देता है।

    अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, आवेदक/अभियुक्त एक 16 वर्षीय लड़की को पसंद करता था और वह जहां भी जाती थी उसका पीछा करता था। लगातार पीछा करने के कारण मजबूर होकर उसके माता-पिता ने उसे उसके नाना-नानी के घर भेज दिया। निडर होकर आवेदक उस क्षेत्र में भी पहुंच गया जहां उसके नाना-नानी रहते थे। वह पीड़िता का पीछा कर-कर करके और गांव में उसके ठिकाने के बारे में बार-बार पूछकर उसके लिए शर्मिंदगी का कारण बन गया। यह महसूस करते हुए कि उसके पास कोई रास्ता नहीं है, उसने आत्महत्या कर ली। आवेदक पर भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया और बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया था।

    अपने तीसरे जमानत आवेदन पर बहस करते हुए, आवेदक ने प्रस्तुत किया कि वह मृतक का पीछा करता था क्योंकि वह उससे प्यार करता था। उसका उसे परेशान करने या शर्मिंदा करने का कोई इरादा नहीं था। यह बताया गया कि मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई, इसलिए उसके द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना भी बहुत कम है। उसने यह भी कहा कि वह मुकदमे में सहयोग करेगा और शिकायतकर्ता के जीवन में हस्तक्षेप नहीं करेगा। उक्त आधार पर उसने प्रार्थना करते हुए कहा कि उसे जमानत दे दी जाए।

    इसके विपरीत, राज्य ने तर्क दिया कि अभियोजन की कहानी मृतक के माता-पिता के बयानों से प्रमाणित है और इसलिए, आवेदन खारिज करने योग्य है।

    रिकॉर्ड पर आए दस्तावेजों और पक्षकारों की दलीलों पर विचार करते हुए न्यायालय ने पाया कि प्रथम दृष्टया उकसाने का मामला बनता है-

    वर्तमान मामले में ऐसी स्थिति को दर्शाया गया है जहां वर्तमान आवेदक ने बार-बार पीड़िता का पीछा किया,जिस कारण मृतका के माता-पिता को उसे उसके नाना-नानी के घर भेजना पड़ गया। परंतु लेकिन उसने उसका पीछा करना जारी रखा। परिस्थितियों से तंग आकर उसने आत्महत्या कर ली। उकसाना, प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड पर स्पष्ट है (कम से कम वर्तमान जमानत आवेदन पर विचार करने के लिए)। इसलिए इस स्तर पर हस्तक्षेप का कोई मामला नहीं बनता है।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने आवेदन को योग्यता के बिना पाया और तदनुसार इसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल- अमर सिंह सेहरिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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