मोटर दुर्घटना का दावा- गैर-कमाई वाले सदस्य के लिए प्रति वर्ष अनुमानित आय के रूप में 15 हजार तय करना अतार्किक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

17 Jan 2022 5:37 AM GMT

  • मोटर दुर्घटना का दावा- गैर-कमाई वाले सदस्य के लिए प्रति वर्ष अनुमानित आय के रूप में 15 हजार तय करना अतार्किक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट के 2021 में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक परिवार के गैर-कमाई वाले सदस्यों के लिए प्रति वर्ष 15,000/- रुपये की काल्पनिक आय तय करना गैर-न्यायोचित और अतार्किक है।

    न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति अजय त्यागी की खंडपीठ सात-वर्षीय मृत लड़के के माता-पिता द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मुआवजे के रूप में 1,80,000 रुपये और 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने के मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी गयी थी। अपीलकर्ता ने इसे बढ़ाने का हाईकोर्ट से अनुरोध किया था।

    संक्षेप में मामला

    मार्च 2018 में, दावेदार रूप लाल अपने बेटे के साथ चल रहा था और उसी समय चालक द्वारा तेज गति और लापरवाही से चलाए जा रहे ट्रक ने पीछे से अपीलकर्ता के बेटे को टक्कर मार दी, जिससे वह सड़क पर गिर गया और ट्रक का अगला पहिया उसे कुचलता चला गया।

    हादसे में 7 साल का बच्चा गम्भीर रूप से घायल हो गया और उसकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद, अपीलकर्ता/दावेदार द्वारा दायर मोटर दुर्घटना दावे में, मुआवजे के रूप में 1,80,000 रुपये की राशि प्रदान की गई। इससे व्यथित होकर पिता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    दुर्घटना को लेकर कोई विवाद नहीं था। लापरवाही का मामला अपीलकर्ता/दावेदार के पक्ष में तय किया गया था और बीमा कंपनी ने ट्रिब्यूनल द्वारा उस पर लगाए गए दायित्व को चुनौती नहीं दी थी। एकमात्र मुद्दा जो तय होना बाकी था वह था मुआवजे की राशि।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरू में कोर्ट ने 'कुरवान अंसारी उर्फ कुरवान अली और अन्य बनाम श्याम किशोर मुर्मू और अन्य एलएल 2021 एससी 655' के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने विवाद का फैसला किया था और एक बच्चे की मौत के मामले में कानून की स्थिति तय की थी।

    कोर्ट ने कहा,

    ''इस मामले में, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बार-बार निर्देशों के बावजूद, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की अनुसूची-II में अभी तक संशोधन नहीं किया गया है। इसलिए, गैर-कमाई वाले सदस्यों की वार्षिक कमाई 15000 रुपये निर्धारित करना न्यायसंगत और उचित नहीं हैं।"

    आगे गौरतलब है कि 'कुरवान अंसारी मामले' में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा था कि 'पुट्टम्मा और अन्य बनाम के.एल. नारायण रेड्डी और अन्य, 2014 (1) टीएसी 926' और 'किशन गोपाल और अन्य बनाम लाला और अन्य, 2013 (4) टीएसी 5' के मामलों में निर्णयों के मद्देनजर मुद्रास्फीति, रुपये के अवमूल्यन और रहन-सहन की लागत को ध्यान में रखते हुए काल्पनिक आय बढ़ाने के लिए यह एक उपयुक्त मामला है।

    हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि बढ़ाकर 4,70,000 रुपये कर दी और राशि जमा होने तक की अवधि के लिए 7.5 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देने का निर्णय दिया, साथ ही यह भी कहा,

    "उपरोक्त टिप्पणियों के साथ, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने मृतक की अनुमानित आय रु. 25,000/- प्रति वर्ष ली, इसलिए हमारा विचार है कि मृतक की काल्पनिक आय रु. 25,000/- प्रति वर्ष मानी जानी चाहिए, क्योंकि वह गैर-कमाई वाला सदस्य था।"

    प्रतिवादी-बीमा कंपनी को आदेश जारी करने की अवधि से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर मुआवजा राशि जमा करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही दावा याचिका दायर करने की तिथि से लेकर राशि जमा होने तक की अवधि के लिए 7.5 प्रतिशत की दर से ब्याज भी देने को कहा गया है।

    केस का शीर्षक : रूप लाल और अन्य बनाम सुरेश कुमार यादव और 2 अन्य।

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (इलाहाबाद) 13

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