मार्कशीट में मां का नाम गलत लिखा, पीड़िता की उम्र संदिग्ध: एमपी हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में जमानत दी

Shahadat

9 Dec 2022 9:16 AM GMT

  • मार्कशीट में मां का नाम गलत लिखा, पीड़िता की उम्र संदिग्ध: एमपी हाईकोर्ट ने पॉक्सो मामले में जमानत दी

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में पॉक्सो मामले में अभियुक्त को यह देखने के बाद जमानत का लाभ दिया कि अभियोक्ता की उम्र उसकी मार्कशीट में उसकी मां के गलत नाम के कारण संदिग्ध है।

    जस्टिस प्रणय वर्मा की खंडपीठ ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि वह स्वेच्छा से आवेदक/आरोपी के साथ चली गई-

    एफआईआर दर्ज करने के समय और सीआरपीसी की धारा 164 में पीड़िता को नाबालिग और उसके माता-पिता होने का आरोप लगाया गया। बयानों में कहा गया कि पीड़िता की उम्र उसकी मार्कशीट के आधार पर 17 वर्ष है। यद्यपि रजिस्टर में उसकी जन्मतिथि 15.04.2008 दर्ज की गई है, लेकिन पीड़िता की मां का नाम उसमें गलत दर्ज किया गया। इस प्रकार यह इसे संदिग्ध बनाता है। अपने बयान में सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का कहना है कि वह खुद आवेदक के साथ अलग-अलग जगहों पर गई और आखिरकार दिल्ली चली गई। उसने उससे शादी कर ली और उसकी पत्नी के रूप में उसके साथ रहने लगी। उसने स्वेच्छा से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। उसने यह नहीं कहा कि आवेदक ने इसके लिए उस पर कोई बल प्रयोग किया। उक्त बयान की पुष्टि अदालत के समक्ष उसके बयान में की गई है जिसमें उसने आवेदक के साथ अपने विवाह की पुष्टि की।

    मामले के तथ्य यह हैं कि आवेदक भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 363, 366, 376 (2) (एन) और पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) की धारा 3/4 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोपी है। अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, आवेदक ने अभियोजिका का अपहरण किया और उसके साथ बलात्कार किया।

    आवेदक ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि पीड़िता की उम्र 17 वर्ष थी और वह स्वेच्छा से उसके साथ चली गई। यह प्रस्तुत किया गया कि बाद में उन्होंने शादी कर ली और उसके बाद एक दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाए। यह भी बताया गया कि अभियोजन पक्ष ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी मर्जी से आवेदक के साथ चली गई और बाद में उससे शादी कर ली। उसने आगे कहा कि आवेदक ने उस पर कोई बल प्रयोग नहीं किया। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई कि उसे जमानत देने का लाभ दिया जाए।

    इसके विपरीत, राज्य और अभियोजक के पिता ने दावा किया कि आवेदक के खिलाफ आरोपों के स्तर को देखते हुए वह जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है।

    पक्षकारों की प्रस्तुतियां और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेज़ों की जांच करते हुए न्यायालय ने आवेदक द्वारा प्रस्तुत किए गए कथनों में बल पाया। इसने कहा कि पीड़िता की उम्र उसकी मार्कशीट में उल्लिखित मां के गलत नाम के आधार पर संदिग्ध है। अदालत ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में उसने विशेष रूप से उल्लेख किया कि उसे आवेदक द्वारा कुछ भी करने के लिए मजबूर नहीं किया गया और वह स्वेच्छा से उसके साथ चली गई और बाद में शादी कर ली।

    उपरोक्त टिप्पणियों के साथ इस तथ्य के साथ कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट भी दायर की जा चुकी है, अदालत ने आवेदक को जमानत का लाभ देना उचित समझा।

    तदनुसार, आवेदन की अनुमति दी गई।

    केस टाइटल: निजाम @ निजामुद्दीन बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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