मां मृत बेटी के भरण-पोषण के बकाए की हकदारः मद्रास हाईकोर्ट

Manisha Khatri

30 April 2023 1:45 PM GMT

  • मां मृत बेटी के भरण-पोषण के बकाए की हकदारः मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक मां अपनी मृत बेटी को उसकी मृत्यु से पहले मिलने वाले भरण-पोषण के बकाए का दावा करने की हकदार है। अदालत ने कहा कि भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मृत्यु के बाद, कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है।

    कोर्ट ने कहा,

    ‘‘जहां तक भरण-पोषण का बकाया देय है, यह संपत्ति की प्रकृति में होगा जो कि विरासत में मिला है लेकिन भविष्य के भरण-पोषण का अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 6 (डीडी) के आधार पर हस्तांतरणीय या विरासत योग्य नहीं है।’’

    इस प्रकार जस्टिस वी शिवगणनम ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देने वाली मृतक बेटी के पूर्व पति द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अदालत ने मां को भरण-पोषण के बकाया को प्राप्त करने के लिए पक्षकार बनाने की अनुमति दी थी।

    हाईकोर्ट ने कहा,‘‘हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(सी) के अनुसार, मां अपनी बेटी की संपत्ति की हकदार है। इस मामले में, उसकी बेटी सरस्वती (याचिकाकर्ता की पत्नी) की मृत्यु तक भरण-पोषण का बकाया बनता है। इसलिए, निचली कोर्ट ने मृतक पुत्री (याचिकाकर्ता की पत्नी) की मां को भरण-पोषण के बकाया के लिए दायर याचिका में पक्षकार बनाकर उचित किया। निचली कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है और आपराधिक पुनरीक्षण मामले में कोई मैरिट नहीं है।’’

    याचिकाकर्ता अन्नादुरई ने 1991 में सरस्वती से शादी की थी। वे अलग हो गए और अन्नादुरई ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की याचिका दायर की। उनके तलाक के बाद, सरस्वती ने भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की और उसे 7500 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया, जिसका भुगतान याचिका दायर करने की तिथि से किया जाना था। भरण-पोषण के बकाया की वसूली के लिए, सरस्वती ने 6,37,500 रुपये के बकाए का दावा करते हुए एक अन्य आवेदन दायर किया। हालांकि, लंबित आवेदन के दौरान वह मर गई। जिसके बाद उसकी मां, जया ने उसे याचिकाकर्ता के रूप में शामिल करने और बकाया राशि वसूल करने की अनुमति देने के लिए एक याचिका दायर की। इस आवेदन को अनुमति दी गई थी और यह अदालत के समक्ष समीक्षा में थी।

    अन्नादुरई ने तर्क दिया कि भरण-पोषण सरस्वती का व्यक्तिगत अधिकार था और उसकी मृत्यु के बाद, कार्रवाई का कोई कारण नहीं बचा। उन्होंने प्रस्तुत किया कि चूंकि कार्रवाई का कोई कारण नहीं था, इसलिए सरस्वती की मां कार्यवाही जारी रखने के लिए सक्षम नहीं थी और भरण-पोषण के बकाया का दावा करने की हकदार नहीं है।

    दूसरी ओर, जया ने कहा कि बकाया राशि उनकी बेटी की संपत्ति थी। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (सी) के तहत, बेटे और बेटियों की अनुपस्थिति में मां अपनी मृत बेटी की उत्तराधिकारी है। जया ने यह भी कहा कि उनकी बेटी के तलाक के बाद, अन्नादुरई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं रहे। इस प्रकार, जया ने तर्क दिया कि वह बकाया राशि प्राप्त करने के लिए सक्षम है।

    कोर्ट को जया की दलीलों में दम नजर आया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14 के अनुसार भरण-पोषण का बकाया पत्नी की संपत्ति है।

    यह भी कहा कि,‘‘जहां तक भरण-पोषण का बकाया देय है, यह संपत्ति की प्रकृति में होगा जो कि विरासत में मिला है लेकिन भविष्य के भरण-पोषण का अधिकार संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 6 (डीडी) के आधार पर हस्तांतरणीय या विरासत योग्य नहीं है।’’

    केस टाइटल- अन्नादुरई बनाम जया

    साइटेशन- 2023 लाइवलॉ (एमएडी) 131

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