महज रुपए की मांग को लेकर विवाद आईपीसी की धारा 405 के तहत आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

4 Jan 2023 3:02 PM GMT

  • महज रुपए की मांग को लेकर विवाद आईपीसी की धारा 405 के तहत आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महज मौद्रिक मांग पर विवाद आईपीसी की धारा 405 के तहत आपराधिक विश्वासघात का अपराध नहीं बनता है।

    इस मामले में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि “आरोपी जेआईपीएल द्वारा 6,37,252 रुपये 16 पैसे की झूठी मांग की गई थी। हालांकि शिकायतकर्ता ने आईपीसी की धारा 405, 420, 471, और 120बी के तहत शिकायत की थी, मजिस्ट्रेट ने केवल आईपीसी की धारा 406 के तहत समन जारी किया था। इस समन आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पहले इस बात का संज्ञान लिया कि आईपीसी की धारा 405 को आकर्षित करने के लिए निम्नलिखित (तथ्यों) को स्थापित करना होगा:

    (ए) अभियुक्त को संपत्ति सौंपी गई थी या संपत्ति का प्रभुत्व सौंपा गया था।

    (बी) आरोपी ने बेईमानी से उस संपत्ति का दुरुपयोग किया या अपने स्वयं के उपयोग के लिए उसमें बदलाव किया या उस संपत्ति का बेईमानी से उपयोग किया या निपटान किया अथवा जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया।

    (सी) इस तरह के दुरुपयोग, रूपांतरण, उपयोग या निपटान कानून के किसी भी निर्देश के उल्लंघन में होना चाहिए जिसमें इस तरह के भरोसे को कायम रखना होता है, या किसी भी कानूनी अनुबंध का उल्लंघन किया जाना चाहिए, जो इस तरह के भरोसे से जुड़ा होता है।

    बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य आईपीसी की धारा 405 के घटकों को संतुष्ट करने में विफल रहे हैं और शिकायत सीधे आईपीसी की धारा 405 के घटकों को संदर्भित नहीं करती है और यह नहीं बताती है कि तथ्यों की दृष्टि से कैसे तथा किस तरीके से मांग संतुष्ट हैं। इसने आगे कहा कि समन-पूर्व साक्ष्य की भी कमी है और इसकी वजह से भी समस्या है।

    बेंच ने कहा

    "विश्वास का आपराधिक हनन का मतलब, अन्य बातों के साथ, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा संपत्ति का इस्तेमाल करना या उसका निपटान करना होगा, जिसे संपत्ति सौंपी गयी हो या उस पर उसका प्रभुत्व हो। ऐसा कार्य न केवल बेईमानी से किया जाना चाहिए, बल्कि भरोसा कायम रखने से संबंधित किसी कानून के निर्देश या व्यक्त अथवा निहित अनुबंध का उल्लंघन करते हुए किया जाना चाहिए।... केवल गलत मांग या दावा, भरोसा स्थापित करने, बेईमानी, दुरुपयोग, रुपांतरण, इस्तेमाल या निपटारे के साक्ष्य के अभाव में आईपीसी की धारा 405 में वर्णित शर्तों को पूरा नहीं करेगा। यह कानून के किसी भी निर्देश, या विश्वास के निर्वहन से संबंधित कानूनी अनुबंध के उल्लंघन में होना चाहिए। इसलिए, भले ही शिकायतकर्ता की राय है कि मौद्रिक मांग या दावा गलत है और देय नहीं है, आईपीसी की धारा 405 के तहत वर्णित आवश्यकताओं को साबित करने में विफलता को देखते हुए इसी धारा के तहत अपराध गठित नहीं किया गया है ... तथ्यात्मक आरोपों की अनुपस्थिति में, जो आईपीसी की धारा 405 के तहत अपराध के अवयवों को संतुष्ट करते हैं, महज 6,37,252 रुपये 16 पैसे की मौद्रिक मांग से संबंधित विवाद आईपीसी की धारा 406 के तहत आपराधिक मुकदमा का आधार नहीं बन सकता।"

    बेंच ने यह भी पड़ताल किया कि क्या अन्य अपराध का भी आधार बनता है। इस उद्देश्य के लिए, इसने आईपीसी की धारा 415, 420 और 471 के अवयवों पर भी चर्चा की। (कृपया हेडनोट्स अनुभाग देखें)।

    कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए समन आदेश को रद्द कर दिया। (इस पहलू पर दूसरी रिपोर्ट में अलग से चर्चा की गई है)

    केस विवरण

    दीपक गाबा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार | 2022 लाइवलॉ (एससी) 3 | क्रिमिनल अपील 2328/2022 | 2 जनवरी 2023 | जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस जे के माहेश्वरी

    हेडनोट्स

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 204 - समन आदेश पारित किया जाता है जब शिकायतकर्ता अपराध का खुलासा करता है, और जब ऐसे अवयव मौजूद होते हैं जो अपराध का समर्थन करते हैं और आवश्यक अवयव बनाते हैं। इसे हल्के में या स्वाभाविक रूप से पारित नहीं किया जाना चाहिए। जब तथ्यों की कमी और स्पष्टता की कमी के कारण, या तथ्यों से संबंधित कानून के इस्तेमाल पर, कथित कानून का उल्लंघन स्पष्ट रूप से बहस योग्य और संदिग्ध है, तो मजिस्ट्रेट को संशयात्मकता का स्पष्टीकरण सुनिश्चित करना चाहिए। कानूनी प्रावधानों के और तथ्यों की दृष्टि से उनके मूल्यांकन के बिना समन किये जाने के परिणामस्वरूप एक निर्दोष को अभियोग/मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। अभियोग शुरू करने और आरोपी को ट्रायल का सामना करने के लिए समन किये जाने से उसे आर्थिक नुकसान, समय बर्बाद होने और बचाव की तैयारी के प्रयास के अलावा, समाज में उसके अपमान और बदनामी का कारण बनता है। इसका परिणाम अनिश्चित समय तक चिंता के रूप में सामने आता है। (पैरा 21)

    भारतीय दंड संहिता, 1860; धारा 405 , 406 - केवल मौद्रिक मांग पर विवाद विश्वास के आपराधिक उल्लंघन के अपराध को आकर्षित नहीं करता है – केवल गलत मांग या दावा, भरोसा स्थापित करने, बेईमानी, दुरुपयोग, रुपांतरण, इस्तेमाल या निपटारे के साक्ष्य के अभाव में आईपीसी की धारा 405 में वर्णित शर्तों को पूरा नहीं करेगा, यह कानून के किसी भी निर्देश, या विश्वास के निर्वहन से संबंधित कानूनी अनुबंध के उल्लंघन में होना चाहिए। (पैरा 15)

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 202, 204 - कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाले अभियुक्त को समन करते समय, यह मजिस्ट्रेट के लिए अनिवार्य है कि वह स्वयं मामले की जांच करे या किसी पुलिस अधिकारी या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा प्रत्यक्ष जांच की जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि अभियुक्तों के विरुद्ध कार्यवाही करने को लेकर पर्याप्त आधार है या नहीं। । (पैरा 22)

    भारतीय दंड संहिता, 1860; धारा 415, 420 - आईपीसी की धारा 415 की अनिवार्य शर्त "धोखाधड़ी", "बेईमानी", या "जानबूझकर प्रलोभन" है, और इन तत्वों की अनुपस्थिति धोखाधड़ी के अपराध को कम कर देगी - धोखाधड़ी के अपराध के लिए, न केवल धोखाधड़ी होनी चाहिए, बल्कि इस तरह की धोखाधड़ी के परिणामस्वरूप, अभियुक्त को बेईमानी के कृत्य से जोड़ा जाना चाहिए था; यथा-सम्पत्ति को किसी व्यक्ति को देने, बदलने, या पूरी तरह से या आंशिक तौर पर नष्ट करने के लिए एक मूल्यवान प्रतिभूति, या हस्ताक्षरित या मुहरबंद कुछ भी, जो एक मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित होने में सक्षम है। (पैरा 17)

    भारतीय दंड संहिता, 1860; धारा 464, 470 471 - आईपीसी की धारा 471 के तहत एक अपराध की पूर्व शर्त एक झूठे दस्तावेज या झूठे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड या उसके हिस्से को बनाकर जालसाजी करना है - एक व्यक्ति को 'गलत दस्तावेज' बनाने वाला कहा जाता है: (i) यदि उसने किसी और के होने या किसी और के द्वारा अधिकृत होने का दावा करते हुए एक दस्तावेज बनाया या निष्पादित किया है; (ii) यदि उसने किसी दस्तावेज़ में परिवर्तन या छेड़छाड़ की है; या (iii) यदि उसने धोखे से या किसी ऐसे व्यक्ति से दस्तावेज प्राप्त किया है जो अपनी चेतना में नहीं है। आईपीसी की धारा 464 और 470 के अनुसार जब तक कि दस्तावेज फर्जी और जाली न हो, आईपीसी की धारा 471 की आवश्यकता पूरी नहीं होगी। (पैरा 18)

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