आदर्श आचार संहिता उल्लंघन का मामला : झारखंड हाईकोर्ट ने सीएम हेमंत सोरेन के खिलाफ केस खारिज किया
LiveLaw News Network
12 Nov 2022 10:27 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य में 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
यह मामला 06 मई, 2019 को रांची में मतदान के दिन का है, जब सीएम सोरेन अपनी पत्नी के साथ वोट डालने के लिए एक मतदान केंद्र पर गए थे, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर झामुमो के साथ स्कार्फ / पट्टा पहना था और उसी पर पार्टी का चिन्ह बना हुआ था।
इसके तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने संबंधित थाना प्रभारी को आईपीसी की धारा 188 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 130(ई) के तहत एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया और इसके साथ ही मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान भी लिया।
इस एफआईआर को चुनौती देते हुए सीएम सोरेन ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि उन्होंने किसी भी लोक सेवक द्वारा प्रख्यापित आदेश की अवहेलना नहीं की है और ऐसा कुछ भी किया है।
उनका यह भी तर्क था कि मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान नहीं ले सकते, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 195 (1) (ए) (i) के आदेश के अनुसार आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध के लिए मजिस्ट्रेट को कोई शिकायत नहीं की गई थी।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 (1) (ए) (i) के अनुसार, एक अदालत आईपीसी की धारा 172 से 188 (दोनों सहित) के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान ले सकती है।
कोर्ट ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध के लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 195 (1) के विधायी इरादे के रूप में यह स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि जहां आईपीसी की धारा 188 के तहत कोई अपराध किया जाता है, उस लोक सेवक, जिसके समक्ष ऐसा अपराध किया गया है, उसके लिए यह अनिवार्य होगा कि वह संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करवाए।
अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को मजिस्ट्रेट को लिखित रूप में दी गई "शिकायत" नहीं कहा जा सकता है जिससे संबंधित मजिस्ट्रेट को अपराध का संज्ञान लेने की शक्ति दी जा सके।
अदालत ने कहा,
"...उस लोक सेवक द्वारा एक शिकायत होनी चाहिए जिसके वैध आदेश का पालन नहीं किया गया है। शिकायत लिखित रूप में होनी चाहिए। धारा 195 सीआरपीसी के प्रावधान अनिवार्य हैं। इसका अनुपालन न करने पर अभियोजन और अन्य सभी परिणामी आदेश पर प्रतिकूल प्रभावित होंगे।
अदालत इस तरह की शिकायत के बिना मामले का संज्ञान नहीं ले सकती। ऐसी शिकायत की अनुपस्थिति में परीक्षण और दोषसिद्धि अधिकार क्षेत्र के बिना शुरू से ही शून्य हो जाएगी।"
नतीजतन कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने का आदेश कानून के अनुसार नहीं था, जो सीआरपीसी की धारा 195 के तहत वर्जित है और इसलिए मामला और संबंधित कार्यवाही रद्द कर दी गई।