सर्विस चार्ज पर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए अंतरिम स्टे का उपयोग न करें : दिल्ली हाईकोर्ट ने होटल, रेस्तरां से कहा

Sharafat

12 April 2023 10:20 AM GMT

  • सर्विस चार्ज पर उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए अंतरिम स्टे का उपयोग न करें : दिल्ली हाईकोर्ट ने होटल, रेस्तरां से कहा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशानिर्देशों पर रोक लगाने वाला उसका अंतरिम आदेश, जो होटल और रेस्तरां को बिल पर डिफ़ॉल्ट रूप से सर्विस चार्ज लगाने से रोकता है, वह इस तरह मेन्यू कार्ड पर या डिस्प्ले बोर्ड नहीं दिखाया जाएगा जिससे उपभोक्ता गुमराह हों कि सर्विस चार्ज अदालत द्वारा अनुमोदित किया गया है।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह की बेंच फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया और नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा सीसीपीए के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

    अदालत ने कहा, "यह स्पष्ट किया जाता है कि अंतरिम आदेश को डिस्प्ले बोर्ड या मेन्यू कार्ड में इस तरह से नहीं दिखाया जाना चाहिए कि उपभोक्ता को गुमराह किया जा सके कि सर्विस चार्ज इस अदालत द्वारा अनुमोदित किया गया है।"

    पिछले साल जुलाई में एक समन्वय पीठ ने यह निर्दिष्ट करते हुए दिशानिर्देशों पर रोक लगा दी थी कि सर्विस चार्ज और इसे भुगतान करने के लिए ग्राहक का दायित्व "मेनू या अन्य स्थानों पर विधिवत और प्रमुखता से प्रदर्शित" होना चाहिए।

    एडिशन सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने बुधवार को प्रस्तुत किया कि विभिन्न रेस्तरां सर्विस चार्ज लगाने को वैधता देने के लिए इसका उपयोग करके "अंतरिम आदेश की गलत व्याख्या" कर रहे हैं।

    जस्टिस सिंह ने दोनों संघों को एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, जिसमें उनके सदस्यों का प्रतिशत दर्शाया गया हो, जो खाद्य बिलों पर अनिवार्य शर्त के रूप में सर्विस चार्ज लगा रहे हैं।

    अदालत ने यह भी कहा कि प्रतिक्रिया यह इंगित करेगी कि क्या सदस्यों को "सेवा शुल्क" शब्द को "कर्मचारी कल्याण कोष, कर्मचारी कल्याण योगदान या कर्मचारी शुल्क" जैसी कुछ वैकल्पिक शब्दावली में बदलने की स्थिति में कोई आपत्ति होगी या नहीं, ताकि भ्रम से बचा जा सके। उपभोक्ताओं के मन में यह बात घर कर रही है कि यह शुल्क सरकार द्वारा लगाया जा रहा है।

    अदालत ने 24 जुलाई को सुनवाई के लिए मामले को सूचीबद्ध करते हुए कहा, "हलफनामा उन सदस्यों के प्रतिशत को भी इंगित करेगा जो उपभोक्ताओं को सूचित करने के इच्छुक हैं कि सर्विस चार्ज अनिवार्य नहीं है और वे स्वेच्छा से योगदान दे सकते हैं।"

    अदालत ने संघों को दो सप्ताह के भीतर याचिकाओं का समर्थन करने वाले सभी सदस्यों की पूरी सूची दाखिल करने का भी निर्देश दिया।

    जस्टिस सिंह ने सुनवाई के दौरान कहा,

    “ लंबे समय से, हम में से अधिकांश ने सोचा था किसर्विस चार्ज सरकार द्वारा लिया जा रहा है। यहीं समस्या है क्योंकि लोग सोचते हैं कि सर्विस चार्ज सर्विस टैक्स की तरह है। एक उपभोक्ता को सर्विस टैक्स, जीएसटी आदि के बीच का अंतर पता नहीं होता है क्योंकि लोगों को लगता है कि यह सरकार द्वारा लिया जा रहा है। मैंने ऐसे बहुत से लोगों को देखा है जो ऐसा सोचते हैं।"

    केस टाइटल : नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य

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