माइनर रेप केस | इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश दिया, जांच के दरमियान अभियुक्तों को दोष मुक्त करने का आरोप
Avanish Pathak
11 Dec 2022 7:07 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में पुलिस महानिदेशक को एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का निर्देश दिया।
पुलिस अधिकारी पर आरोप है कि वह जानबूझकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा था कि नाबालिग के बलात्कार के मामले में आरोपियों को जांच के दरमियान ही आरोपों से मुक्त कर दिया जाए।
जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस सैयद वैज मियां की पीठ ने कहा कि पुलिस अधिकारी ने जांच अधिकारी के साथ-साथ अदालत की भूमिका भी अपना ली। साक्ष्य अधिनियम को हवा में उछाल दिया गया और निष्कर्ष निकाल लिया कि पीड़िता का बयान झूठा है।
अदालत ने आदेश दिया कि जब तक उक्त पुलिस अधिकारी के खिलाफ जांच लंबित नहीं हो जाती, तब तक पुलिस किसी अन्य अपराध के मामले में उसे जांच अधिकारी नियुक्त ना करे। साथ ही यदि वह फिलहाल किसी मामले की जांच कर रहा है तो वह मामला तुरंत किसी और जांच अधिकारी को सौंपा जाए।
अदालत ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की ओर से दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका में एक पुलिस अधिकारी पर कदाचार के गंभीर आरोप लगाए गए। उस पर आरोपी परोक्ष रूप से प्रश्रय देने का आरोप लगाया गया।
मामला
पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसपर मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था, जिसके बाद 17 वर्षीय नाबालिग से बलात्कार के तीन आरोपियों के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था।
पीड़िता ने आरोप लगाया था कि उसका रिश्तेदार (5वां) प्रतिवादी) और उसके दो दोस्तों (प्रतिवादी संख्या 6 और 7) ने उसे बहला-फुसलाकर एक कमरे में ले गए, उसके बेहोश हो जाने के बाद उसका शारीरिक शोषण किया और घटना की मोबाइल क्लिपिंग बना ली।
इसके बाद आरोपी लगातार उसे वीडियो क्लिपिंग की धमकी देकर जबरदस्ती शारीरिक संबंध बनाने के लिए धमकाता रहा और अंत में उसके पति के मोबाइल फोन पर वीडियो क्लिपिंग भेजकर उसका वैवाहिक जीवन बर्बाद कर दिया।
आरोपियों पर धारा 363, 376-डी, 504, 506 आईपीसी और धाराएं ¾ पोक्सो अधिनियम और धारा 67-A आईटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया। हालांकि, मामले में जांच का निष्कर्ष निकालने के बाद, जांच अधिकारी (चौथे प्रतिवादी) ने केवल पांचवें प्रतिवादी के खिलाफ एक पुलिस रिपोर्ट दायर की और छठे और सातवें प्रतिवादियों को क्लीन चिट दे दी , इस आधार पर कि चूंकि वे वीडियो क्लिपिंग में दिखाई नहीं दे रहे थे, इसलिए, घटना के समय उनकी उपस्थिति संदिग्ध थी।
इसके अनुसरण में, याचिकाकर्ता/पीड़ित ने पुलिस रिपोर्ट के खिलाफ एक विरोध याचिका दायर की, जिसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया, जिसके बाद उसने प्रतिवादी संख्या चार के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए मौजूदा याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत के समक्ष, उसने प्रस्तुत किया कि पीड़िता, उसके माता-पिता और अन्य लोगों के सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान उनकी ओर से दिए गए बयान के अनुसार दर्ज नहीं किए गए हैं, बल्कि, चौथे प्रतिवादी ने बयानों में हेरफेर किया है ताकि डिस्चार्ज में मदद मिल सके।
निष्कर्ष
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान को उसके माता-पिता, मकान मालिक और धारा 161 सीआरपीसी के तहत दर्ज अन्य व्यक्तियों के बयानों के आधार पर खारिज कर दिया था।
इसे देखते हुए, न्यायालय ने टिप्पणी की कि चौथा प्रतिवादी या तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता में अनिवार्य प्रावधान के संदर्भ में जांच करने की प्रक्रिया से अवगत नहीं था या चौथे प्रतिवादी ने जानबूझकर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि अभियुक्तों को जांच के दरमियान बाहरी विचार के कारण आरोपमुक्त कर दिया जाए।
इस बात पर जोर देते हुए कि निष्पक्ष सुनवाई तभी शुरू होनी चाहिए जब जांच अपने आप में निष्पक्ष और न्यायपूर्ण हो, अदालत ने डीजीपी को कर्तव्य का पालन न करने और अपनी शक्तियों का उल्लंघन करने के लिए चौथे प्रतिवादी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देकर रिट याचिका का निस्तारण कर दिया।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि दूसरे जांच अधिकारी को नियुक्त कर एफआईआर की आगे जांच की जाए।
केस टाइटल- एक्स (पीड़ित) बनाम यूपी राज्य और 6 अन्य [CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 13325 of 2022]
केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 523