राजस्थान में प्रवासी पंचायत चुनावों या लोक सेवा की नौकरियों में आरक्षण के लाभ का दावा करने के हकदार नहीं हैं : राजस्थान हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

26 Sep 2020 12:50 PM GMT

  • राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट 

    राजस्थान हाईकोर्ट ने गुरुवार (24 सितंबर) को कहा है कि जो लोग शादी करने के कारण दूसरे राज्यों से राजस्थान में आए हैं, वे राजस्थान में चल रहे पंचायत चुनावों में आरक्षण के लाभ का दावा करने के हकदार नहीं हैं।

    न्यायमूर्ति सतीश कुमार शर्मा की एकल पीठ इस मामले में दायर कई सारी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में मांग की गई थी कि प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए कि वह याचिकाकर्ताओं के पक्ष में अनुसूचित जाति/ अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी के जाति प्रमाण पत्र जारी करें और उनको आरक्षण का लाभ देते हुए इस समय चल रहे पंचायत चुनाव में भाग लेने की अनुमति दी जाए।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राजस्थान में उनकी जाति उनके गृह राज्य के समान श्रेणी में ही आती है। उन्होंने दलील दी थी कि शादी के बाद वह राजस्थान में रह रहे हैं, इसलिए, उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट का विश्लेषण

    न्यायालय ने तय कानूनी स्थिति को स्वीकार करते हुए कहा कि आरक्षित वर्ग का व्यक्ति केवल अपने मूल राज्य में ही आरक्षण के लाभों को प्राप्त करने का हकदार है, न कि उस राज्य में है,जिसमें वह अब जाकर बस गया है या माइग्रेट होकर आया है। इस तथ्य से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उसकी जाति दोनों राज्यों में समान आरक्षित श्रेणी में शामिल की गई है।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पूनम यादव बनाम राजस्थान राज्य (डीबीएसएडब्ल्यू नंबर 749/2017) व राजस्थान राज्य बनाम मंजू यादव (डीबीएसएडब्ल्यू नंबर 1116/2018) मामलों में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसलों के तहत राज्य अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे उन महिलाओं के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी करें, जो अपनी शादी के बाद दूसरे राज्यों से राजस्थान में पलायन करके आई हैं।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि केवल ऐसे प्रमाण पत्रों के आधार पर, वे सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के लाभ के हकदार नहीं होंगी और ऐसे प्रमाण पत्र आवास योजना जैसे लाभों के अनुदान के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं, जो कि आवास या अधिवास के आधार पर दी जाती हैं।

    इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने किसी भी निर्णय में यह नहीं माना है कि आरक्षित वर्ग का व्यक्ति उस राज्य में होने वाले चुनावों में आरक्षण का हकदार है, जिसमें वह पलायन करके आया है।

    हालांकि, मंजू यादव (सुप्रा) के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट ने माना है कि ऐसे प्रवासियों को सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण का अधिकार नहीं है, लेकिन इस फैसले में चुनाव में आरक्षण के बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

    इसलिए, न्यायालय ने कहा कि ऐसा नहीं है कि ऐसे व्यक्तियों को पंचायत चुनावों सहित सभी चुनावों में आरक्षण का हकदार घोषित किया गया है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि चुनाव में आरक्षण का लाभ ऐसे प्रवासी व्यक्तियों को दिया जाता है, तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत जारी संवैधानिक जनादेश विफल/उपेक्षित होगा और यह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी उल्लंघन होगा।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    '' अन्य उद्देश्यों के लिए जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए मंजू यादव (सुप्रा) मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने 'बीर सिंह बनाम दिल्ली जल बोर्ड (2018) 10 एससीसी 312 मामले' में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय का हवाला दिया था। साथ ही साफ तौर पर माना था कि अन्य राज्यों से राजस्थान राज्य में प्रवासित महिलाएं सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के लाभ की हकदार नहीं हैं, लेकिन वे जाति प्रमाण पत्र की हकदार हैं क्योंकि ऐसे प्रमाण पत्र कुछ लाभों के अनुदान के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं, जैसे आवास योजना।"

    इसलिए, मंजू यादव (सुप्रा) मामले में इस न्यायालय के फैसले के अनुपालन में, राज्य प्राधिकरण अन्य राज्यों से राजस्थान में प्रवासित व्यक्तियों को जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए बाध्य हैं, लेकिन इस तरह के प्रमाण पत्र केवल सीमित उद्देश्यों के लिए जारी किए जाऐंगे।

    कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि-

    ''सार्वजनिक रोजगार और चुनावों में आरक्षण का लाभ लेने के लिए इस तरह के प्रमाण पत्र का उपयोग नहीं किया जा सकता है। इसलिए, ऐसे प्रवासी व्यक्तियों के मन में किसी भी प्रकार का भ्रम न रहे, ऐसे प्रमाणपत्रों के दुरुपयोग को रोकने और इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए, यह एकदम उपयुक्त रहेगा कि इस तरह के जाति प्रमाण पत्र पर एक प्रमुख नोट जोड़ दिया जाए ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि यह प्रमाण पत्र किस उद्देश्य के लिए आवश्यक है।''

    उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, सभी याचिकाओं को निम्नलिखित तरीके से निपटाया दिया गया है-

    (1) आॅन-गोइंग पंचायत चुनावों में आरक्षण के लाभ का दावा करने के मामले में याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया है।

    (2) जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए, याचिकाकर्ता सक्षम प्राधिकारी (संबंधित सब डिविजनल मजिस्ट्रेट) के समक्ष आवेदन करने के लिए स्वतंत्र हैं, जो उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद जल्दी से आवेदन का निपटारा कर दे। यदि आवेदन को अस्वीकृत किया जाता है तो याचिकाकर्ता उपलब्ध कानून का सहारा ले सकते हैं।

    (3) किसी भी प्रकार के भ्रम से बचने के लिए, जाति प्रमाण पत्र के दुरुपयोग को रोकने के लिए और उन व्यक्तियों के पक्ष में प्रमाण पत्र जारी करने में स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए जो अन्य राज्यों से राजस्थान राज्य में आए हैं, इन प्रमाण पत्रों पर एक नोट को प्रमुखता से जोड़ा जाए।

    जो इस प्रकार होना चाहिए -

    (ए) इस प्रमाण पत्र के आधार पर, प्रवासी व्यक्ति को पंचायत चुनाव सहित सभी चुनाव व सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण के लाभ का दावा करने का अधिकार नहीं होगा।

    (बी) यह प्रमाण पत्र सीमित उद्देश्य के लिए जारी किया गया है,विशेष रूप से ऐसे प्रवासी व्यक्तियों को सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए उपलब्ध कराया गया है।

    (सी) आवश्यक समझे जाने वाले कुछ अन्य स्पष्टीकरण भी दिए जा सकते हैं।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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