[27 साल की देरी] कानून उन लोगों की मदद करता है जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, न कि उनकी जो लापरवाह रहते हैं: मेघालय हाईकोर्ट

Shahadat

9 Sept 2022 12:51 PM IST

  • [27 साल की देरी] कानून उन लोगों की मदद करता है जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, न कि उनकी जो लापरवाह रहते हैं: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने दोहराया कि कानून केवल उन लोगों की सहायता करता है जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, न कि उन लोगों की जो अपने अधिकारों के प्रति लापरवाह रहते हैं।

    जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह ने उक्त टिप्पणी करते हुए कहा:

    "अधिकतम "विजिलेंटिबस नॉन डॉर्मिएंटिबस जुरा सबवेनियंट" जिसका अर्थ है कानून उन लोगों की सहायता करता है जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहते हैं, न कि उन लोगों की जो सोते रहते हैं। यह सिद्धांत याचिकाकर्ता के मामले में बहुत सटीक तरीके से लागू होता है, जैसा कि प्रतिनिधित्व के साथ प्राधिकरण के दृष्टिकोण के संबंध में है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए अधिग्रहित भूमि का पुन: सर्वेक्षण और पुन: माप अधिग्रहण के वर्ष से लगभग 27 वर्षों का अंतर है, जो 1983 से वर्ष 2010 तक का है, जब पहला प्रतिनिधित्व किया गया था।"

    याचिकाकर्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें विलियमनगर टाउनशिप की स्थापना के लिए प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा अधिग्रहित भूमि के पुन: सर्वेक्षण की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने समझौते में बताए अनुसार छह नोकमाओं के साथ सरकार द्वारा दर्ज समझौते का उल्लेख किया। हालांकि याचिकाकर्ता के पूर्ववर्ती हित में (एल) गोसिन मराक को उक्त समझौते दिनांक 08.01.1972 में शामिल नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि चूंकि सरकार द्वारा अधिग्रहित कुल भूमि में अंतर करने के लिए कोई उचित सीमांकन नहीं किया गया और न ही कोई चारदीवारी बनाई गई, इसलिए प्रतिवादी अधिकारियों को इसका निरीक्षण करने और उचित माप के बाद चारदीवारी बनाने के लिए निर्देशित किया जा सकता है, ताकि अतिक्रमण आदि की शिकायती विवाद से बचा जा सके।

    प्रतिवादी की ओर से सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिका को रोक, छूट और स्वीकृति के सिद्धांतों और अधिग्रहण की कार्यवाही के लिए देरी से रोक दिया गया है, जो वर्ष 1983 में समाप्त हुई थी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने वर्ष 2017 में अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    अदालत को यह भी बताया गया कि जिस समय भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4 के तहत अधिसूचना जारी की गई थी, उस समय याचिकाकर्ता को अन्य लोगों के साथ अपनी आपत्ति दर्ज करने का हर मौका दिया गया था, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा है।

    अदालत ने प्रतिवादी के साथ सहमति व्यक्त की कि याचिकाकर्ता ने केवल अपनी मर्जी और कल्पना के आधार पर भूमि के पुन: माप और पुन: सर्वेक्षण की मांग करना उचित समझा और वह भी केवल वर्ष 2010 में, जब इस संबंध में पहला प्रतिनिधित्व किया गया। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी के इस तर्क में दम है कि इस मामले में देरी और लापरवाही का सिद्धांत आकर्षित होता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि याचिकाकर्ता का मामला इस आधार पर खड़ा नहीं हो सकता कि देरी और लापरवाही का सिद्धांत आकर्षित किया गया है। उसी के अनुसार निर्णय लिया गया है। तदनुसार, न्यायिकता के मुद्दे पर प्रतिवादियों के तर्क की आवश्यकता नहीं है। आवश्यक रूप से चर्चा की जानी चाहिए और इस संबंध में उद्धृत प्राधिकरण को विस्तृत नहीं किया जा सकता।"

    तद्नुसार याचिका को योग्यताहीन पाते हुए खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: स्मृति देहिला डी. संगमा बनाम मेघालय और अन्य राज्य

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